Dec 17, 2008

जूता प्रक्षेपण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता




१४ दिसम्बर को ईराक में एक पत्रकार सम्मलेन में एक पत्रकार मंजूर अल जैदी ने बुश को कुत्ता संबोधित करते हुए एक-एक कर के अपने दोनों जूते उन पर प्रक्षेपित कर दिए । अगर हम उसकी जगह होते और यदि निहायत ही ज़रूरी होता तो पत्थर फेंकते । अब दोनों जूते फ़ेंक कर पछता रहा होगा, बच्चू । अरे, ज़्यादा नहीं तो हज़ार डेढ़ हज़ार के तो होंगे ही । ठीक है दो-चार दिन अख़बार में चर्चा होगी पर कोई उसके लिए जूतों का इंतज़ाम करने के लिए चंदा नहीं देगा । ठीक है, अमेरिका विरोधी ईराकियों का सीना गर्व से फूल रहा होगा पर जैदी के पैर तो जेल में ठण्ड के मारे सिकुड़ रहे होंगे । भले आदमी ने दोनों ही जूते फ़ेंक दिए । अगर एक ही फेंका होता तो देर-सबेर दूसरे के आने की भी उम्मीद रहती पर अब तो दोनों ही दूसरे पक्ष के पास चले गए अब वह उनका सदुपयोग करने के लिए स्वतंत्र है ।

एक बार एक सेल्समैन ने एक अनजान आदमी को जूते उधार दे दिए । पता चला तो मालिक बड़ा नाराज़ हुआ, बोला- बेवकूफ, क्या तू सोचता है कि वह पैसे देने वापिस आएगा । ऐसा सतयुग नहीं है । नौकर बोला- साहब, वह ज़रूर आयेगा क्योंकि मैंने उसे दोनों जूते एक ही पैर के दिए हैं । समझदारी से काम करने से आगे भी इसी तरह व्यवहार बने रहने की संभावना रहती है । एक ही फेंका होता तो या तो अपना जूता माँगने जैदी जाता या दूसरा माँगने बुश आते ।

अब आगे से पत्रकार सम्मेलन में घुसने से पहले बाहर ही जूते उतरवा लिए जायेंगे । फिर कल को कोई थूक देगा तो फिर पत्रकारों के मुँह पर टेप लगा कर अन्दर घुसायेंगे । आदमी की खुराफ़ात का कुछ पता नहीं, अच्छा हो टेलेकान्फ़्रेन्सिन्ग से ही पत्रकार सम्मेलन कर लें । वैसे इस लोकतांत्रिक नाटक की कोई ज़रूरत भी नहीं क्योंकि पंचों के कहने के बावजूद पतनाला तो वहीं गिरना है । भविष्य में ध्यान रखेंगे । पर अब तो जो होना था सो हो गया।

जिस टी.वी.का वह पत्रकार था उसके प्रबंधकों ने कहा है कि बुश ने ईराक के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का वादा किया था सो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है इसलिए जैदी को तुंरत छोड़ दिया जाना चाहिए । सभी मनुष्य एक जैसे नहीं होते इसलिए उनके अभिव्यक्ति के रूप भी अलग अलग होंगे । ९/११ अलकायदा की अभिव्यक्ति थी तो इराक पर हमला अमरीका की । भारत में मूर्तियाँ और मन्दिर तोड़ना आतताइयों की अभिव्यक्ति थी तो गांधार (कंधार) में बुद्ध की मूर्तियाँ तोड़ना तालिबानों का अभिव्यक्ति का तरीका । गधा दुलत्ती से अपने आप को अभिव्यक्त करता है तो कुत्ते के पास पूँछ हिलाने, टांगों के बीच पूँछ दबाने, गुर्राने या टाँग उठाकर पेशाब कर देने के अलावा अभिव्यक्ति का और कोई तरीका नहीं है ।

गांधी, बुद्ध और ईसा ने भी अपने को व्यक्त किया था और लोगों को समझ भी आगया था पर पता नहीं आज आदमी की भाषा क्यों बदल गयी है । हमें तो इस मामले में कुत्ते के अवमूल्यन का दुःख है । अपमान करने के लिए कुत्ते शब्द का प्रयोग किया गया जबकि किसी घटिया आदमी के लिए कुत्ते शब्द का प्रयोग करने से कुत्ते का अपमान होता है ।

कबीर ने अपने को राम का कुत्ता कहकर गर्व का अनुभव किया था । और एक ये हैं जो कभी अमरीका के कुत्ते बनते हैं तो कभी किसी अज़हर के तो कभी किसी लखवी के । तो फिर ऐसे ही करम करेंगे ।भक्त भगवान को समर्पित होता है पर कुत्ता किसी आदमी को समर्पित होता है और यह नहीं देख पाता कि वह आदमी उसे जो रोटी खिलाता है वह कैसी कमाई की है या वह उसके इशारे पर किसे काट रहा है ? इन कुत्तों के लिए कुत्तों वाली ही भाषा काम आएगी । डंडा ।

यह भाषा आपद्धर्म हो सकता है पर कामना तो यही है कि आदमी आदमी से आदमी की बोली में बात करे ।

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१६ दिसम्बर २००८



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Jhootha Sach

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