Dec 7, 2008

आपके साथ हमारी पूरी सहानुभूति है मियाँ ज़रदारी



मियाँ ज़रदारी,
भगवान आपको सद्बुद्धिप्रदान करे । भले ही लोग आपकी आलोचना करें पर हमें आप से सहानुभूति है । वैसे आप खानदानी जागीरदार और ज़रदार हैं, तभी तो बेनज़ीर ने आपको चुना । जैसे डॉक्टर की पत्नी डॉक्टरनी और मास्टर की पत्नी बिना किसी डिग्री के ही मास्टरनी बन जाती है वैसे ही आप भी बिना चुनाव लड़े ही प्रधान मंत्री क्या, प्रधान मंत्री पति बन गए । हमारे यहाँ महिलाओं को आरक्षण मिलने के बाद महिला सरपंच चुनी जाने लगी हैं और उनका सारा काम उनके पति महोदय चलाते हैं, सील और लेटर पेड उन्ही की जेब में होते हैं । यहाँ तक कि वे सरपंच पति के नाम से जाने भी जाते हैं । नेतागिरी करते घूमते रहते हैं । आपने भी प्रधान मंत्री पति होने का बड़ा सुख लिया है । सेंट पर सेंट खा जाने पर भी आपको कौन पूछ सकता था पर हम आपके संतोष और पारदर्शिता की दाद देते हैं कि आपने केवल दस प्रतिशत ही खाया और पूरी पारदर्शिता से खाया कि लोग आपको मिस्टर दस परसेंट के नाम से ही जानने लगे । अब मिस राईस ने मुम्बई मामले की जाँच पूरी पारदर्शिता से करवाने के लिए कहा है, पर आप ही क्या पूरे पाकिस्तान का ही इतिहास कपड़ों के बावजूद पूरा पारदर्शी रहा है यह अमरीका से ज़्यादा और कौन जानता है? जब आप नवाज़ से गठबंधन कर रहे थे तब भले ही नवाज़ मूर्ख बन रहे थे या मज़बूरी में थे पर हमें तो सब कुछ पूरा साफ-साफ दिख रहा था ।

अगर बेनज़ीर वाला हादसा न होता और वे चुनी जाती तो फिर टेन परसेंट वाला मामला चल निकलता । पर अब क्या किया जाए पूरी हंड्रेड परसेंट की जिम्मेदारी आ गयी । आतंकवादियों को पकड़ें या नहीं पर हिसाब तो पूरा बना कर दिखाना पड़ेगा । और अब बुश की जगह यह ओबामा आ गया । यह हिसाब किताब का कुछ पक्का लगता है । आपसे ज़्यादा अनुभव नवाज़ को है । अच्छा होता आप उनको प्रधान मंत्री बना देते । पर यह साली कुर्सी होती ही बड़ी कुत्ती चीज । अच्छे अच्छों का दिल डोल जाता है । और दिल का क्या ? पालिन को देखते ही जूते खाने वाले डायलाग बोलने लगा । आपने कुर्सी सँभालते ही अच्छी अच्छी बातें बोलना शुरू किया तभी से हमारा माथा ठनकने लगा था । कवियों ने कहा भी है-
बुरो बुराई जो तजे, तो चित खरो सकात ।
ज्यों निकलंक मयंक लखि, गनें लोग उत्पात ॥

अर्थात यदि बुरा आदमी बुराई छोड़ने की बात करता है, तो मन में शंका होती है । जैसे यदि चन्द्रमा में दाग न दिखे तो लोग इसे किसी दुर्घटना की शंका के रूप में देखते हैं ।

अब देख लो मुम्बई वाला मामला हो गया ना ।

अब आप भारत द्वारा वांछित बीस आतंकवादियों के बारे में जो कुछ कह रहें हैं यदि वह आपकी बात है तो दुःख की बात है और यदि आई.एस.आई., कट्टरपंथियों और सेना के दबाव के कारण कह रहे हैं तो और भी भयंकर बात है । फिर क्या फ़ायदा हुआ, ऐसा लोकतंत्र तो पहले भी पाकिस्तान में चल ही रहा था । हमें आपकी हालत पर तरस आता है । कठपुतली राजा की हालत तो गुलाम से भी बुरी होती है । अगर और आतंकवादियों की बात छोड़ भी दें तो दाऊद इब्राहीम तो भारत का नागरिक है उसे सरंक्षण देने का क्या मतलब है ? यदि निर्दोष व्यक्ति को प्राणों का भय हो तो उसको शरण देना शरणागत वत्सलता हो सकती है जैसे राम ने विभीषण को शरण दी थी या राजा शिवि ने कबूतर को शरण दी थी या हम्मीर अलाउद्दीन के एक सेना अधिकारी को शरण दी थी । पर दाऊद इब्राहीम तो मुम्बई बम कांड का अपराधी है । उसे शरण देना तो शत्रुता है जैसे ब्रिटेन का फिजो, जगजीत सिंह चौहान या लाल डेन्गा को शरण देना था ।

आपकी वर्तमान स्थिति के बारे में हम आपको एक कहानी सुनाते हैं । एक बार एक गीदड़ ने देखा कि एक शेर दहाड़ा, उसकी पूँछ खड़ी हो गई, आँखें लाल हो गईं फिर वह शिकार पर टूट पड़ा और जानवर को मार लिया । गीदड़ को यह तरीका बड़ा सरल लगा । घर आकर उसने अपनी पत्नी से कहा अब मैं शिकार करूँगा । उसने ज़ोर से हुआं-हुआं की आवाज़ निकाली और पत्नी से पूछा- बता मेरी आँखें लाल हुई कि नहीं, पूँछ खडी हुई कि नहीं । पत्नीके मना करने पर उसने डाँट पिलायी । पत्नी ने डरकर हाँ कर दी । उत्साहित होकर गीदड़ पास ही एक छोटी झाड़ी में से पत्तियाँ खा रहे ऊँट की गर्दन पर टूट पड़ा । ज्यों ही ऊँट ने गरदन ऊँची उठाई, गीदड़ ज़मीन से आठ फुट ऊँचा उठ गया । गीदड़ी ने डर कर कहा- हे हठीले! शिकार करने का हठ छोड़ दे । तो गीदड़ ने एक दोहा कहा-
सुंदर का बोल मेरे मन भावे ।
पर धरती पर पैर मंडण नहीं पावे ॥

अर्थात हे सुन्दरी ! मुझे तुम्हारी बात अच्छी लगती है पर क्या करूँ मेरे पैर ही धरती पर नहीं टिक पा रहे हैं ।

यदि आप वास्तव में ही पाकिस्तान में लोकतंत्र को बचाना और मज़बूत करना चाहते हैं तो नवाज़ के साथ मिलकर
ईमानदारी से काम करिए । शुरू में इन आतंकवादियों को पालने वाला अमरीका ही है पर अब अपनी फटी में ही सही, मदद करने के लिए तैयार है सो अच्छा मौका है पाकिस्तान को कट्टरपंथियों से मुक्त कराने का । इतिहास में नाम दर्ज करवाने के मौके बहुत ही कम लोगों के जीवन में आते हैं । अब मौका है हिम्मत करने का वरना इतिहास का कूड़ेदान बहुत बड़ा है उसमें आप जैसे जाने कितने पड़े होंगे ।

आपका शुभचिंतक ,
रमेश जोशी

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४ दिसम्बर २००८



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Jhootha Sach

1 comment:

  1. बिल्ली के भागों छींका टूट ही गया है तो उतना ही खाए कि अपच ना हो। पर समझाए कौन !

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