Mar 13, 2015

   २०१५-०३-०३ 
सकुशल समापन का श्रेय

कोई भी कार्यक्रम होता है तो वह स्वागत से शुरू होकर धन्यवाद पर समाप्त होता है |
कार्यक्रम में जो मुखिया होता है वह वे सारे काम करता है जो महत्वपूर्ण होते हैं | उसी के सबसे अधिक फोटो खिंचते हैं और अखबारों में भी सबसे अधिक वे ही फोटो छपते हैं जिनमें वह प्रमुखता से दिखाई पड़ता है | वही सबकी निगाहों और दिमागों में घुसता है |लेकिन काम करने वाले तो बेचारे दूसरे होते हैं | वे कार्यक्रम  में दरी बिछाने से लेकर समेटने तक के सारे काम करते हैं |बीच-बीच में अन्य छोटे-मोटे कामों के लिए भागते रहते हैं |मुख्यअतिथि के पास बैठकर फोटो खिंचवाना तो दूर, उससे उनका परिचय भी नहीं करवाया जाता | 

कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन की परंपरा भी होती है जिसे किसी विद्यालय के कार्यक्रम में सेकण्ड इन कमांड अर्थात उपप्राचार्य निभाता है क्योंकि एक हफ्ते ही हाड़ तोड़ मेहनत के बाद उसका इतना हक़ तो बनता ही है || जैसे ही धन्यवाद ज्ञापन के लिए किसी के नाम की घोषणा होने वाली होती है,तभी लोग गेट पर की भीड़  से बचने के लिए  उठना  शुरू  हो जाते  हैं | अपने-अपने बच्चों को समेटने के लिए आवाजें लगाने लग जाते हैं | ऐसे में धन्यवाद ज्ञापन करने वाला क्या कहे और क्या करे ? उसकी हालत तो मुलायम सिंह की  'गंगा सफाई' पर प्रतिक्रिया की तरह हो जाती है जिसे सुनकर मोदी जी ने कहा था-'इस पर हँसा जाए या रोया जाए '?

उसे तो मंच पर जमी विशिष्ट लोगों की भीड़ से लेकर टेंट, बिजली, पानी,बच्चों, बूढों, दारू न पीकर आने वाले दर्शकों, लडकियाँ न छेड़कर कार्यक्रम को सफल बनाने वालों से लेकर गली के कुत्तों तक को धन्यवाद देना पड़ता है जिन्होंने आगंतुकों को नहीं काटा और कार्यक्रम में भौंक कर उसे असफल नहीं बनाया | मज़े की बात यह है कि इसे कोई नहीं सुनता लेकिन धन्यवाद ज्ञापन करने वाला पूरी ईमानदारी से अपना फ़र्ज़ निभाता है |

सो शपथ ग्रहण समारोह के बाद मुफ़्ती मोहम्मद जी ने जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय पाकिस्तान और हुर्रियत को दिया तो इस पर पता नहीं क्यों हल्ला मचा |  फील्ड में तो मुफ्ती जी ही हैं | वे जानते हैं  कि कौन, क्या खुराफात कर सकता था और किसने, किस आश्वासन पर मतदान में बाधा नहीं डाली ? लोग तो चुनाव को छुट्टी का दिन मानकर घर में टी.वी. देखते रहते हैं, वोट डालने नहीं जाते |और जब पड़ोस के किसी भाई की धमकी मिल जाए तो फिर कौन होगा जो पुलिस और सरकार के सुरक्षा के कमजोर आश्वासन और चुनाव आयोग के वोट के महत्त्व वाले विज्ञापन को गंभीरता से लेकर अपनी जान  संकट में डालेगा |

तुलसीदास ने तो सबसे पहले पाकिस्तान और हुर्रियत के सगोत्री  उन खलों की वंदना की है जो 'बिनु काज दाहिने बाएँ' लगे रहते हैं |भले ही पाकिस्तान से अपनी रेंट नहीं पोंछी जा रही हो लेकिन खुद की नाक कटा कर भी तो किसी का सगुन बिगाड़ा जा सकता है |अपने लोकतांत्रिक पड़ोसी का तो यह हाल है कि जब सुबह एक हाथ में पानी का डिब्बा और एक हाथ में ए.के.४७ लेकर दिशा-जंगल फिरने आएँ तो किसे पता डिब्बा यहीं छोड़ जाए और ई.वी.मशीन उठा ले जाएँ |

 हमारे एक मित्र जब अमरनाथ की यात्रा पर जाने लगे तो सबसे पहले मियाँ मुशर्रफ की फोटो के सामने सिर नवाया और चिल्ला चढ़ाया |जब हमने कारण पूछा तो बोले- यह ठीक है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है लेकिन जान की अमान तो भारत सरकार नहीं बल्कि मुशर्रफ के हाथ ही है |हमें तो उनकी बात में कोई गलती नहीं लगी |

अब फिर कश्मीर में पाकिस्तान और हुर्रियत की वही चाल बेढंगी शुरू हो जाएगी क्योंकि अगर  वे अपना सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू नहीं करेंगे तो राज्य सरकार को स्पेशल पैकेज नहीं मिलेगा | और जब पैकेज नहीं मिलेगा तो राजनीति में खाली-पीली तनख्वाह से किस ससुर का काम चला है ?
०३-०३-२०१५





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