आकाश में घर नहीं बनता
हमें बड़ा अजीब लगा रहा था कि गडकरी जी जैसे संत और जनहितकारी व्यक्ति की बात भी अन्ना, सभी गैर भाजपा दल और किसान पता नहीं क्यों नहीं मान रहे हैं ? बिना बात आन्दोलन और असहयोग की धमकी दे रहे हैं | अरे, जब गडकरी जी कह रहे हैं कि यह भूमि अधिग्रहण बिल किसान के लिए हितकारी है तो अवश्य ही हितकारी होगा | वे क्यों झूठ कहेंगे ?
जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- केजरीवाल ने अपने वादों की डिलीवरी एक हफ्ते में शुरू कर दी | जब कि इनके दिन पूरे हो गए | दसवाँ महिना चल रहा है | अब तो डिलीवरी हो ही जानी चाहिए | इधर लेबर पेन शुरू हो गया है और उधर विरोधी जच्चा-बच्चा केंद्र का दरवाज़ा रोके खड़े हैं | अगर ज्यादा देर हो गई तो क्या पता, कहीं खुले में ही विकास न हो जाए ?
कहने लगा- यह विकास साधारण नहीं है | विदेशी तर्ज़ का है | वहाँ बच्चे बहुत भारी होते हैं, यहाँ से कई गुना भारी | सो यह बच्चा भी भारी होगा | क्या पता भारत माता के स्तनों में इतना दूध है भी या नहीं ? कहीं भूखा मरता यह बच्चा उसका खून ही न पी जाए |
हमने चिढ़कर कहा- यह क्या बच्चा, दूध और भारत माता लगा रखी है ?
बोला- हद है यार, बड़ा कवि-लेखक बना फिरता है और इतना सा रूपक नहीं समझा |
देख, विकसित देशों के पास या तो अपने उपनिवेशों से चूसा हुआ धन है या अब भी उनसे अपने पक्ष में झुकते हुए व्यापार-संतुलन की कमाई है | जहाँ तक अमरीका की बात है तो उसके पास हमसे चार गुना ज़मीन है और एक चौथाई जनसंख्या |हमारे और उनके विकास के मानदंडों में अंतर होना ही चाहिए |यहाँ की अधिकतर जनसंख्या किसान या कृषि मज़दूरों की है | जहाँ तक ज़मीन की उत्पादकता का सवाल है तो कम से कम पाँच हजार वर्षों से इस धरती पर खेती हो रही है और खनिजों का भी दोहन हो रहा है | कहाँ जान बची है बेचारी इस भारत माता में |अब तो मितव्ययिता से रहेंगे तो किसी तरह काम चलेगा नहीं तो यह पतली छाछ राबड़ी बनाने के काबिल भी नहीं रहेगी |
हमने कहा- लेकिन किसानों को मुआवजा भी तो चार गुना दिया जा रहा है |
बोला- चार गुना ? कब का ? दस साल पुराना | विकास के लिए प्रतिबद्ध लोगों के निवेश सौ गुना बढ़ गए और किसान का केवल चार गुना | और फिर निवेशक तो यहाँ क्या विदेश में भी निवेश कर लेंगे लेकिन किसान को खेती के अलावा और क्या आता है ? जो थोड़ा बहुत मिलेगा उसे बाज़ार द्वारा बहकाए गए किसान के बच्चे उड़ा देंगे | फिर किसान के लिए शहरों में जाकर दो रोटी के लिए प्राण देने के अलावा और कुछ नहीं बचेगा और ये बेचारे कृषि मजदूर कहाँ जाएँगे ?
हमने कहा- देखो, जीवन-मरण, हानि-लाभ, सुख-दुःख तो सब विधि के हाथ है | मर्द की तो जुबान होती है | हरिश्चंद्र ने कहा था-चन्द्र टरे, सूरज टरे... | उनके वंशज दशरथ ने वचनों की रक्षा के लिए प्राण दे दिए |
हँसते हुए बोला- प्राण किसके ? अपने या किसान और सामान्य जनता के ?
हमने कहा- विकास तो होगा, हर कीमत पर होगा | प्राण जाय पर वचन न जाई |
उठते हुए तोताराम ने कहा- तो फिर कर लें |शेर जंगल का राजा होता है | उसकी मर्जी-बच्चा दे या अंडा | याद रख, कोई पक्षी क्या, गरुड़ भी कितना ही ऊँचा उड़ ले लेकिन अंततः ज़मीन पर आना ही पड़ता है | आकाश में घर नहीं बनता |
हमें बड़ा अजीब लगा रहा था कि गडकरी जी जैसे संत और जनहितकारी व्यक्ति की बात भी अन्ना, सभी गैर भाजपा दल और किसान पता नहीं क्यों नहीं मान रहे हैं ? बिना बात आन्दोलन और असहयोग की धमकी दे रहे हैं | अरे, जब गडकरी जी कह रहे हैं कि यह भूमि अधिग्रहण बिल किसान के लिए हितकारी है तो अवश्य ही हितकारी होगा | वे क्यों झूठ कहेंगे ?
जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- केजरीवाल ने अपने वादों की डिलीवरी एक हफ्ते में शुरू कर दी | जब कि इनके दिन पूरे हो गए | दसवाँ महिना चल रहा है | अब तो डिलीवरी हो ही जानी चाहिए | इधर लेबर पेन शुरू हो गया है और उधर विरोधी जच्चा-बच्चा केंद्र का दरवाज़ा रोके खड़े हैं | अगर ज्यादा देर हो गई तो क्या पता, कहीं खुले में ही विकास न हो जाए ?
कहने लगा- यह विकास साधारण नहीं है | विदेशी तर्ज़ का है | वहाँ बच्चे बहुत भारी होते हैं, यहाँ से कई गुना भारी | सो यह बच्चा भी भारी होगा | क्या पता भारत माता के स्तनों में इतना दूध है भी या नहीं ? कहीं भूखा मरता यह बच्चा उसका खून ही न पी जाए |
हमने चिढ़कर कहा- यह क्या बच्चा, दूध और भारत माता लगा रखी है ?
बोला- हद है यार, बड़ा कवि-लेखक बना फिरता है और इतना सा रूपक नहीं समझा |
देख, विकसित देशों के पास या तो अपने उपनिवेशों से चूसा हुआ धन है या अब भी उनसे अपने पक्ष में झुकते हुए व्यापार-संतुलन की कमाई है | जहाँ तक अमरीका की बात है तो उसके पास हमसे चार गुना ज़मीन है और एक चौथाई जनसंख्या |हमारे और उनके विकास के मानदंडों में अंतर होना ही चाहिए |यहाँ की अधिकतर जनसंख्या किसान या कृषि मज़दूरों की है | जहाँ तक ज़मीन की उत्पादकता का सवाल है तो कम से कम पाँच हजार वर्षों से इस धरती पर खेती हो रही है और खनिजों का भी दोहन हो रहा है | कहाँ जान बची है बेचारी इस भारत माता में |अब तो मितव्ययिता से रहेंगे तो किसी तरह काम चलेगा नहीं तो यह पतली छाछ राबड़ी बनाने के काबिल भी नहीं रहेगी |
हमने कहा- लेकिन किसानों को मुआवजा भी तो चार गुना दिया जा रहा है |
बोला- चार गुना ? कब का ? दस साल पुराना | विकास के लिए प्रतिबद्ध लोगों के निवेश सौ गुना बढ़ गए और किसान का केवल चार गुना | और फिर निवेशक तो यहाँ क्या विदेश में भी निवेश कर लेंगे लेकिन किसान को खेती के अलावा और क्या आता है ? जो थोड़ा बहुत मिलेगा उसे बाज़ार द्वारा बहकाए गए किसान के बच्चे उड़ा देंगे | फिर किसान के लिए शहरों में जाकर दो रोटी के लिए प्राण देने के अलावा और कुछ नहीं बचेगा और ये बेचारे कृषि मजदूर कहाँ जाएँगे ?
हमने कहा- देखो, जीवन-मरण, हानि-लाभ, सुख-दुःख तो सब विधि के हाथ है | मर्द की तो जुबान होती है | हरिश्चंद्र ने कहा था-चन्द्र टरे, सूरज टरे... | उनके वंशज दशरथ ने वचनों की रक्षा के लिए प्राण दे दिए |
हँसते हुए बोला- प्राण किसके ? अपने या किसान और सामान्य जनता के ?
हमने कहा- विकास तो होगा, हर कीमत पर होगा | प्राण जाय पर वचन न जाई |
उठते हुए तोताराम ने कहा- तो फिर कर लें |शेर जंगल का राजा होता है | उसकी मर्जी-बच्चा दे या अंडा | याद रख, कोई पक्षी क्या, गरुड़ भी कितना ही ऊँचा उड़ ले लेकिन अंततः ज़मीन पर आना ही पड़ता है | आकाश में घर नहीं बनता |
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