2015-02-12 तोताराम का मंदिर
तोताराम का मंदिर
आज तोताराम ने आते ही एक रसीद बुक निकाली और हमारे सामने रखता हुए बोला- कितना चंदा लिखूँ ?
हमने कहा- चंदा किस बात का ?
बोला- मेरे मंदिर के लिए |
हमने कहा- तेरा मंदिर ?
कहने लगा- क्यों ? मंदिर बनाने के क्या कोई नियम कायदे कानून होते हैं ? जो चाहे मंदिर बना सकता है | किसी का भी बना सकता है |मुझसे किसी को कोई राजनीतिक या आर्थिक लाभ तो मिलने वाला है नहीं जो मेरा मंदिर बनाएगा | आजकल मंदिरों का चलन चल पड़ा है | कोई मोदी जी का मंदिर बन रहा है, किसी ने इंदिरा जी का मंदिर तो किसी ने सोनिया जी का मंदिर बना रखा है | किसी ने अमिताभ का तो किसी ने सचिन का मंदिर बना लिया |मायावती बहन जी ने तो खुद अपनी ही मूर्तियाँ लगवा दीं | चूँकि नेता जी मुलायम सिंह मुख्यमंत्री के पिता श्री है तो आज़म खां उनका मंदिर बनवाना चाहते हैं |सोचता हूँ मैं भी अपना एक मंदिर बनवा ही लूँ | पता नहीं, बाद में इस दिशा में कोई कुछ करे या नहीं |
हमने कहा- कहाँ बनाएगा और कितना खर्चा आएगा ?
बोला- खर्चा क्या है, बरामदे के कोने में दो दीवारें तो हैं ही,एक साइड में चार इंच की एक दीवार और खींच देंगे और एक साइड में पर्दा लगा देंगे | बस, हो गया मंदिर |
हमने कहा- सुना है, साधारण मूर्ति भी लाख-पचास हजार की आती है,उसका क्या करेगा ?
कहने लगा- करना क्या है ? तेरे बरामदे में उकडूँ बैठे चाय पीते हुए का फोटो रख देंगे | हो गया काम |और जब तक फोटो तैयार न हो तब तक सुबह-सुबह मैं, न सही दस लाख का सूट, खुद गमछा लपेट कर बैठ जाऊँगा | यदि अष्टधातु की मूर्ति लगवाएँगे तो कोई चोर ले जाएगा | इसे किसी तरह का कोई खतरा नहीं |
हमने कहा- देख, मंदिर उनके बनवाए जाते हैं जो अमर हैं जैसे शिव, हनुमान आदि या फिर मरने के बाद बनवाए जाते हैं | और जीते जी जिनके मंदिर-मूर्तियाँ बनाते हैं वह उन्हीं के लिए अशुभ होता है जैसे इंदौर में २००४ के चुनाव से थोड़ा पहले एक वकील साहब अटल जी का मंदिर बनवा रहे थे |हुआ क्या ?अटल जी हार गए और अब अस्वस्थ हैं | सोनिया जी का मंदिर बना तो लगातार पार्टी हार रही है |मायावती बहन जी की पार्टी का राष्ट्रीय दर्ज़ा समाप्त होने वाला है |अच्छा हुआ जो मोदी जी ने उस भक्त को मना कर दिया | अभी दिल्ली वाला झटका ही लगा है , मंदिर बनने पर पता नहीं क्या होता ?वैसे ही सत्ता मिलने पर आदमी का दिमाग खराब हो जाता है, ऊपर से ये स्वार्थी भक्त; कभी चालीसा तो कभी शतक | आदमी को आदमी रहने ही नहीं देते |
बोला- कोई बात नहीं पेंशन निबट गई है पाँच सौ उधार दे दे | एक मार्च को लौटा दूँगा |
हमने कहा- तो यह चंदा क्या था ?
कहने लगा- मैं तो वैसे ही ठरक ले रहा था वरना जहाँ गोडसे का मंदिर बनाने वाले हैं वहाँ मंदिर श्रद्धा नहीं, शंका पैदा करता है |
बहुत हो गया मंदिर-मस्जिद | जो हैं उनमें कोई दिया जलाने वाला नहीं मिल रहा है |
बात ख़त्म, चाय मँगवा |
हमने कहा- जा,अन्दर जा कर अपनी भाभी से चाय और पाँच सौ का एक नोट भी ले आ |
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