Mar 7, 2015

हँसूँ या रोऊँ  

पता नहीं, तोताराम किस कुंठा या बीमारी से ग्रसित हो गया है ? कल 'ढोल बाजे, ढोल बाजे' बुदबुदा रहा था और आज भी वही हाल | कभी आठ-आठ आँसू ढार रहा था तो कभी पेट पकड़कर हँस रहा था जैसे कि किसी प्रायोजित विशेषरूप से हास्य कार्यक्रम में टी.वी. पर बात बिना बात हर एक मिनट में नेपथ्य से ठहाकों की आवाज़ आती है या संसद या विधान सभा में माननीय सदस्य अपने नेता के भाषण पर तो कभी घटिया शे'र पर हँसते या मेजें थपथपाते हैं |  

 कई देर तक तोताराम का यह आलाप-प्रलाप जब बंद नहीं हुआ तो हमने उसका कन्धा पकड़कर जोर से हिलाया और मुँह पर ठंडे पानी के छींटे मारे तो कुढ़कर बोला- यह क्या तमाशा है ?

हमने कहा- तमाशा तो तू कर रहा है | कभी रोता है, कभी हँसता है | 'कभी ख़ुशी, कभी गम' हुआ जा रहा है |

बोला- मेरी भी स्थिति मोदी जी जैसी हो रही है |  गंगा सफाई पर मुलायम सिंह जी के भाषण पर उन्होंने कहा- मैं मुलायम सिंह जी की बात पर रोऊँ या हँसूँ ?

हमने कहा- देखो, मुलायम सिंह जी देसी आदमी हैं | खाँटी जनपदीय अस्टाइल में बोलते हैं |किसी पुराने एटा-इटावा वाले के अलावा उनकी पूरी बात समझना हर एक के वश का नहीं है | जब कोई कुछ समझता नहीं तो यह तो कह नहीं सकता कि तुम्हारी बात समझ में नहीं आई | बस, वह सामने वाले के उद्गारों का नहीं बल्कि उसके पद का सम्मान करते हुए कभी मुस्करा देता है तो कभी गमगीन होने का नाटक कर देता है | मोदी जी की भी यही हालत हुई होगी | अब चूँकि मोदी जी कोई मौनी बाबा तो हैं नहीं, वे हर बात का ज़वाब देते ज़रूर हैं | और फिर ज़वाब उनकी ही शैली में होगा |सो कह दिया- मैं मुलायम जी बात पर हँसूँ या रोऊँ ?

अब मज़े की बात देखिए कि संसद में इतने बुज़ुर्ग, बुद्धिमान संसद बैठे थे लेकिन किसी ने उनकी दुविधा पर ध्यान नहीं दिया |कम से कम एक विकल्प सुझा देते तो मामला एक तरफ होता और मोदी जी उसके अनुसार रो या हँस लेते और फिर निश्चिन्त होकर 'विकास' पर ध्यान देते | पता नहीं, अब भी वे दुविधा में होंगे या कोई एक निर्णय  लेकर उसके अनुसार रो या हँस रहे होंगे |

तोताराम ने बड़ी निरीह सूरत बनाते हुए कहा- मोदी जी की छोड़, उनके पास तो बहुत काम हैं | किसी तरह रो या हँस कर पाँच साल निकाल देंगे लेकिन मैं क्या करूँ ?मेरे पास तो समय ही समय है | अब क्या हँसता या रोता ही रहूँ ?

जब वे विकास की बात करते हैं तो हँसना आता है और जब अपने देश की सामान्य समस्याओं तक को उलझी और अनसुलझी पाता हूँ तो रोना आता है | जब औबेसी, तोगड़िया, अवैद्यनाथ आदि को सुनता हूँ तो रोना आता है |जब गंगा की सफाई की बात सुनता हूँ तो हँसना आता है और जब अपनी गली में इधर-उधर के गंदे पानी की वैतरणी देखता हूँ और अखबार में नगर परिषद् के सफाई अभियान के फोटो देखता हूँ तो रोना आता है |जब नेताओं के चुनाव पूर्व के भाषण और बाद के आचरण देखता हूँ और शब्दावली सुनता हूँ तो रोना आता है |और अब तो कभी रोते, कभी हँसते हालत यह हो गई है कि मुझे खुद ही पता नहीं चलता कि मैं हँस रहा हूँ या रो रहा हूँ ?

हमने कहा- यदि हमारी बात माने तो हम तुझे एक टाइम टेबल बना देते हैं जैसे विज्ञापनों में दो  फोटो के साथ आता है- इलाज़ से पहले और इलाज़ के बाद | या कोई 'राजा तेल' लगाने से पहले और तेल लगाने के बाद |वैसे  तू दोपहर का खाना खाने से पहले हँस लिया कर और खाना खाने के बाद रो लिया कर | 'चुनाव से पहले और चुनाव के बाद' की तरह |
01-03-2015 








No comments:

Post a Comment