2015-02-28 ढोल बाजे
ढोल बाजे
तोताराम चबूतरे पर आकर बैठा लेकिन वह कहीं भी, किसी की तरफ भी नहीं देख रहा था | मन ही मन कुछ बुदबुदा रहा था और बीच-बीच में थोड़ा उछल भी रहा था | ऐसे लगता था जैसे उसमें किसी अन्य आत्मा का प्रवेश हो गया हो या जगराते में माता का भाव आ गया हो |चाय दी तो भी एकदम निस्पृह रहा |
हमने उसे झिंझोड़ा तो बड़ी मुश्किल से थोड़ा सामान्य हुआ |
हमने पूछा- क्या बड़बड़ा रहा है ? हमें तो उत्तर नहीं दिया लेकिन हमने उसके शब्दों से अनुमान लगाया कि वह बार-बार 'ढोल बाजे, ढोल बाजे' बुदबुदा रहा है |हमने फिर प्रश्न किया- क्या है ? कहाँ बज रहा है ढोल ?
उसने अपने ओठों पर अँगुली रखते हुए कहा- चुप, ध्यान से सुन |कितनी मधुर है यह ढोल-ध्वनि ? मंद-मंद |
यह मोदी जी ढोल की ध्वनि है जो दिल्ली से आ रही है |
हमने कहा- ढोल दूर से ही सुहावने लगते हैं | असली संकट तो उस पर होता है जिसके सिर पर बजते हैं |अरे, वह ढोल वाली बात तो पुरानी होगई | जब वे प्रधान मंत्री बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा पर जापान गए थे तब उन्होंने वहाँ ढोल बजाया था | भारत का विकास करने के लिए 'मेक इन इण्डिया' के नारे से दुनिया को गुँजा दिया लेकिन वह तो पुरानी बात हो गई | अब तक कहाँ उसकी ध्वनि या प्रतिध्वनि ?
बोला- इसका मतलब तू खबरें सुनता ही नहीं | अभी दो दिन पहले ही उन्होंने कहा है-मेरी सूझ-बुझ बहुत अच्छी है |मैं मनरेगा को बंद नहीं करूँगा क्योंकि वह कांग्रेस की असफलता का जीता-जागता उदाहरण है |मैं तो इसका जोर-शोर से ढोल पीटूँगा |
हमने कहा- इसका मतलब अब उन्हें पाँच साल ढोल ही पीटना है क्या ? पहले विकास के वादों का पीटा, फिर जापान में 'मेक इन इण्डिया ' का पीटा और अब कांग्रेस के मनरेगा की असफलता का पीटते रहेंगे | थक नहीं जाएँगे ?हालाँकि आवाज़ तो जोर से होती है लेकिन ढोल में होती तो पोल ही है ना ?
अचानक बात को थोड़ा ट्विस्ट देते हुए बोला- लेकिन पता नहीं, क्यों जेतली जी ने इस कार्यक्रम की असफलता के बावजूद मनरेगा का बजट क्यों बढ़ा दिया ?
हमने कहा- भैया, मनरेगा बिना घास खाए दूध देने वाली गाय है और लोकतंत्र को मज़बूत बनाने के लिए दूध तो सभी पार्टियों के कार्यकर्ताओं को चाहिए ही ना ? वैसे कांग्रेस के राज में भी मनरेगा का पैसा भाजपा शासित राज्यों को भी तो मिलता ही होगा ?तो सारी ज़िम्मेदारी अकेले कांग्रेस पर डालना कहाँ तक ठीक है ?
बोला- बन्धु, ढोल चीज ही ऐसी है कि बजाते समय सुर-ताल का ध्यान रखना बहुत कठिन होता है क्योंकि जान और ध्यान तो बजाने में ही खर्च हो जाते हैं |
हमने कहा- अब तो बता दे कि वे तो ढोल बजाकर अपना राज-धर्म निभा रहे हैं लेकिन तू क्यों 'ढोल बाजे, ढोल बाजे' बुदबुदा रहा था |
बोला- ढोल तो बजेगा ही | जब मोदी जी का थोड़ा सा धीमा पड़ेगा तो जेतली जी का शुरू हो जाएगा | उन्होंने भी तो कहा है-मध्य वर्ग अपना खयाल खुद रखे | अब सरकार या तो मनरेगा का गुड़ बाँटेगी या कोरपोरेट के नीचे गलीचा बिछाएगी |
हमने कहा- फिर तो तेरा- ढोल-बाजे मंत्र ठीक ही है | अन्यथा इससे पहले तो मध्य वर्ग को रोजगार देने, उसकी रक्षा करने, बढ़िया और सस्ती स्वास्थ्य तथा शिक्षा सेवाएँ उपलब्ध करवाने का काम सरकारें ही बड़ी ईमानदारी से करती रही हैं ना ? पता नहीं फिर कुपोषण, नकली दवाओं, धार्मिक-जातीय दंगों, और क़र्ज़ से अब तक किस देश के लोग मरते रहे थे ? पता नहीं, किस देश के लोगों से सड़क चलती लडकियाँ और औरतें डरती थीं ?
लगता है, अब ढोल के दामों में भी भारी वृद्धि हो चुकी होगी फिर भी यदि कल मिल गया तो बाज़ार से एक ढोल ले ही आते हैं और रोज इस चबूतरे पर बैठकर बजाया करेंगे- ढोल बाजे, ढोल बाजे | मोदी जी का नहीं- आम आदमी का, भले आदमी का, मध्यम वर्ग का |
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