2015-02-05
तोताराम का गोत्र
आज तोताराम जल्दी में था | हमने बैठने को कहा तो बोला- बैठने का टाइम नहीं है | जल्दी के सब्बल और हथौड़ा दे, छत को तोड़ना है और फिर उसकी जगह छप्पर लगाना है |
हमने कहा- क्या बेवकूफी कर रहा है |पक्की छत को तोड़कर छप्पर ? छप्पर से पानी टपका तो ?
कहने लगा- सदियों तक चलने वाली सीमेंट से बनवाई थी लेकिन एक दशक भी नहीं चली और टपकने लगी | सुना है, मोदी जी २०२२ तक सब झुग्गी वालों को पक्का मकान देने वाले हैं | सो अभी से छप्पर का फोटो भेजकर लाइन में लग जाऊँगा |
हमने कहा-यह डेटलाइन दिल्ली वालों के लिए है , राजस्थान का नंबर आते-आते तो तुझे ऊपर वाला ही अपने छप्पर में बुला लेगा |
बोला- कोई बात नहीं, यदि बीच में ज्यादा ज़रूरत आ पड़ी तो काले धन वाले १५ लाख में से काम करवा लेंगे |बस, दिल्ली के चुनाव जीत लें और कश्मीर में सत्ता में घुस जाएँ, उसके बाद मोदी जी को यही काम करना है |
हमने हँसते हुए कहा- उन रुपयों के भरोसे मत रहना | अमित शाह ने साफ़ कर दिया है कि मोदी जी ने यह कहावत के रूप में कहा था | इसका शाब्दिक अर्थ नहीं लिया जाना चाहिए |
तोताराम ने चकित होते हुए प्रश्न किया- मतलब ?
हमने कहा- मतलब यह कि मोदी जी ने चुनाव के दौरान यह सब अतिशयोक्ति अलंकार में कहा था और अब मोदी-साहित्य के अधिकारी समीक्षक शाह साहब ने उस वादे का वास्तविक अर्थ अभिधा में समझाया है |
बोला- साहित्य की बात और है | वहाँ तो प्रेमिका को पलकों पर या दिल के झरोखे में बिठाया जा सकता है, उसके लिए तारे तोड़ कर लाए जा सकते हैं, सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था- कह कर फुसलाया जा सकता है लेकिन राजनीति में ऐसे थोड़े ही चलता है |
हमने कहा- सबसे ज्यादा अतिशयोक्ति और ढपोरशंखत्त्व राजनीति में ही चलता है | सभी नेता वोट देते ही धरती पर स्वर्ग उतारने की बात करते हैं लेकिन आज तक किसी देश में स्वर्ग नहीं उतरा | कहावत है-आप मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता |उसके लिए तो खुद मरना पड़ता है | मतलब चुनाव लड़ो, जीतो और इस मृत्युलोक में जीते जी ही स्वर्ग का मज़ा लो |वैसे 'बाई द वे' तुम्हारा गोत्र क्या है ?
तोताराम का पारा एक दम चढ़ गया- शब्दशक्ति,अलंकार,राजनीति में यह ससुर गोत्र कहाँ से आ टपका ? और गोत्र पूछकर कौन सी मेरी शादी करवाएगा |
हमने कहा- कोई बात नहीं | मत बता | हम ही 'अमित शाह-गोत्र-दिग्दर्शिका' देखकर बता देते हैं |पहले की बात और थी लेकिन अब गोत्र पिता नहीं बल्कि 'वैचारिकता' के आधार पर तय होते हैं जैसे केजरीवाल का गोत्र 'अग्रवाल' नहीं बल्कि 'उपद्रवी' है | वैसे ही तेरे चुनावी-भाषणों पर सहज विश्वास कर लेने के कारण तेरा गोत्र 'गोबर-गणेश' है |
तोताराम अजीब सा मुँह बनाकर, बिना चाय पिए ही उठ लिया |
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