2015-03-17
चाय-पुरुष तोताराम
भगवान ने तो सृष्टि में दो ही बनाए थे- स्त्री और पुरुष लेकिन कभी-कभी टेस्टिंग विभाग की तकनीकी खराबी के कारण इन दोनों के बीच की भी कोई चीज मार्किट में आ जाती है |भाषा में तीन पुरुष पढ़ते-पढ़ाते थे - अन्य पुरुष, मध्यम पुरुष और उत्तम पुरुष | उत्तम पुरुष- मैं, हम | मतलब कि सब खुद को ही उत्तम समझते हैं |'मैं' बड़ी बुरी चीज है जिसके चलते महानीच भी धन-बल, पद-बल, बहु-बल से खुद को महापुरुष मानने लग जाते हैं और दूसरों से भी मनवाने की हर कोशिश करते हैं |महिलाओं के मामले में ऐसा नहीं है |उनसे पहले इस तरह का कोई भी विशेषण नहीं लगता | हो सकता है सब महिलाओं की महानता अंडरस्टुड हो |
पुरुषों को अपनी महानता पर शायद शंका रहती है इसलिए वे खुद के नाम से पहले विशेषण या तो खुद लगाने लग जाते हैं या अपने खुशामदियों से ऐसा कोई 'शोशा' छुड़वा देते हैं या फिर खुशामदिये ही उसे उल्लू बनाने के लिए या तो शतक/चालीसा लिखने लग जाते हैं या कोई बड़ा नाम दे देते हैं |
पशुओं में भी पुल्लिंग वर्ग में ही यह प्रवृत्ति दिखाई देती है |इसीलिए अच्छे बुरे सभी तरह के विशेषण उनके नाम से पहले ही लगते हैं जैसे रँगा सियार, धोबी का कुत्ता, गली का कुत्ता | पहाड़ के नीचे भी ऊँट ही आता है, ऊँटनी नहीं |वैसे कुछ प्रभावशाली कुत्ते 'अपनी गली के शेर' की उपाधि भी धारण कर लेते हैं |
कुछ महान व्यक्तियों को लोग आदर से महात्मा, राष्ट्रपिता, लोकनायक, लोकमान्य, लौहपुरुष, नेताजी आदि कहने लग जाते हैं और फिर ये विशेषण उनके नाम के पर्याय ही बन जाते हैं | जब से लोकतंत्र का अनर्थ हुआ है या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम लोगों ने गाली निकालने की छूट ले ली है तब से मूल राष्ट्रपिता के स्थान पर अपनी पसंद के राष्ट्रपिता, लौह पुरुष, नेताजी चुन लिए हैं | इसलिए जब कोई राष्ट्रपिता कहता है तो पता ही नहीं चलता कि गाँधी की चर्च चल रही है या गोडसे की |नेताजी शब्द भी सुभाष चन्द्र बोस, लोहिया जी और मुलायम जी के बीच दिमाग को दौड़ाने लग जाता है |
अभी हम इसी भ्रामक चिंतन में भ्रमित हो रहे थे कि अचानक आकाशवाणी की तरह एक आवाज़ गूँजी - हे आदि-पुरुष,प्रणाम स्वीकार करो |
हमने अचकचाकर आँखें खोलीं कि कहीं आसपास मनु महाराज तो नहीं आ बिराजे |
देखा तो तोताराम | हमने पूछा-किसे प्रणाम कर रहा था ? तो बोला- इस दुनिया में तेरे रहते मेरे लिए अब और कौन प्रणम्य बचा है ?
हमने कहा- लेकिन हम 'आदि पुरुष' थोड़े ही हैं | लोग मनु महाराज को आदि पुरुष कहते हैं हालाँकि कुछ समाज सुधारक उन्हें ढूँढ़ न पाने के कारण अन्य तीन वर्णों को ही मनुवादी कह कर चार-चार जूते मारने को उतारू रहते हैं | वैसे हमारे अनुसार मनु भी आदि पुरुष नहीं थे क्योंकि उनके भी मातापिता थे | लेकिन तू हमें आदि-पुरुष क्यों कह रहा है ?
बोला- हे भ्राताश्री, हर अखबार, समाचार, फोटो आदि में आप इसी नाम जाने,पहचाने और सर्वत्र उपस्थित पाए जाते हैं | जब भी कोई समाचार छपता है तो लिखा होता है- कार्यक्रम में फलाँ , फलाँ आदि उपस्थित थे, चित्र में बाएँ से दाएँ फलाँ,फलाँ आदि, कविसम्मेलन में कुल्हड़, भुक्कड़, चुक्कड़ आदि ने कविता पाठ किया | यह 'आदि' आप ही तो हैं |तो फिर आप 'आदि-पुरुष' हुए कि नहीं ?
हालांकि कि हम न तो इतने बड़े आदमी हैं कि खर्च सरकारी हो और विज्ञापन में फोटो छपे हमारा और न ही इतने पैसे वाले कि अपने खर्चे से अखबारों में अपने फोटो के साथ विज्ञापनात्मक बधाई छपवा सकें | और न ही ज़बरदस्ती कार्यक्रमों में थोबड़ा दिखाने के लिए लालायित रहते हैं फिर भी हमें अपना यह मूल्यांकन अच्छा नहीं लगा |
हमने कहा- २०१० में गड़करी जी ने राजकोट में मोदी जी को 'विकास-पुरुष' कहा था | और फिर चुनाव में विकास-विकास का ऐसा शोर मचा कि लगा- विकास न तो आज से पहले संभव हुआ और न ही इस देश में विकास किसी और के वश का काम है | तो हमने यह विशेषण मोदी जी के लिए तय कर लिया लेकिन अब दो दिन पहले ही समाजवादी पार्टी ने अपने शासन की तीसरी वर्ष गाँठ पर अखिलेश यादव को विकास-पुरुष घोषित कर दिया |क्या बताएँ ? हम तो कन्फ्यूजियाये हुए हैं, तोताराम |
बोला- कन्फ्यूज़ होने की कोई आवश्यकता नहीं है | इस देश में लाखों 'विकास-पुरुष' हैं | जिसकी संपत्ति नेता बनते ही दसगुना हो गई, नेता बनते ही जिसका वज़न चालीस किलो से अस्सी किलो का हो गया, जिसका सीना गद्दी पाते ही छब्बीस से छप्पन इंच का हो गया, जिसने अपनी पचास वर्ग फुट की दुकान के आगे सौ फुट का बरामदा बना लिया, जिसने सार्वजनिक ज़मीन, रास्ता घेर लिया, जिसने अपने सभी घर वालों और रिश्तेदारों को पार्टी का टिकट देकर घर में ही बहुमत बना लिया हो वे सब 'विकास-पुरुष' नहीं तो और क्या हैं ?
हमने कहा- तू हमारे यहाँ, विशेष परिस्थितियों को छोड़कर, लगातार चाय पीता रहा है इसलिए हम आज तुम्हें 'चाय-पुरुष' की उपाधि से सम्मानित करते हैं |
बोला- लेकिन कहीं इस उपाधि से मोदी जी या उनके समर्थकों को कोई ऐतराज़ तो नहीं होगा ?
हमने कहा- बिलकुल नहीं, मोदी जी अब इन सबसे ऊपर उठ गए हैं क्योंकि अब राम जेठमलानी जी के अनुसार वे मानव नहीं बल्कि 'विष्णु के अवतार ' हैं |
चाय-पुरुष तोताराम
भगवान ने तो सृष्टि में दो ही बनाए थे- स्त्री और पुरुष लेकिन कभी-कभी टेस्टिंग विभाग की तकनीकी खराबी के कारण इन दोनों के बीच की भी कोई चीज मार्किट में आ जाती है |भाषा में तीन पुरुष पढ़ते-पढ़ाते थे - अन्य पुरुष, मध्यम पुरुष और उत्तम पुरुष | उत्तम पुरुष- मैं, हम | मतलब कि सब खुद को ही उत्तम समझते हैं |'मैं' बड़ी बुरी चीज है जिसके चलते महानीच भी धन-बल, पद-बल, बहु-बल से खुद को महापुरुष मानने लग जाते हैं और दूसरों से भी मनवाने की हर कोशिश करते हैं |महिलाओं के मामले में ऐसा नहीं है |उनसे पहले इस तरह का कोई भी विशेषण नहीं लगता | हो सकता है सब महिलाओं की महानता अंडरस्टुड हो |
पुरुषों को अपनी महानता पर शायद शंका रहती है इसलिए वे खुद के नाम से पहले विशेषण या तो खुद लगाने लग जाते हैं या अपने खुशामदियों से ऐसा कोई 'शोशा' छुड़वा देते हैं या फिर खुशामदिये ही उसे उल्लू बनाने के लिए या तो शतक/चालीसा लिखने लग जाते हैं या कोई बड़ा नाम दे देते हैं |
पशुओं में भी पुल्लिंग वर्ग में ही यह प्रवृत्ति दिखाई देती है |इसीलिए अच्छे बुरे सभी तरह के विशेषण उनके नाम से पहले ही लगते हैं जैसे रँगा सियार, धोबी का कुत्ता, गली का कुत्ता | पहाड़ के नीचे भी ऊँट ही आता है, ऊँटनी नहीं |वैसे कुछ प्रभावशाली कुत्ते 'अपनी गली के शेर' की उपाधि भी धारण कर लेते हैं |
कुछ महान व्यक्तियों को लोग आदर से महात्मा, राष्ट्रपिता, लोकनायक, लोकमान्य, लौहपुरुष, नेताजी आदि कहने लग जाते हैं और फिर ये विशेषण उनके नाम के पर्याय ही बन जाते हैं | जब से लोकतंत्र का अनर्थ हुआ है या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम लोगों ने गाली निकालने की छूट ले ली है तब से मूल राष्ट्रपिता के स्थान पर अपनी पसंद के राष्ट्रपिता, लौह पुरुष, नेताजी चुन लिए हैं | इसलिए जब कोई राष्ट्रपिता कहता है तो पता ही नहीं चलता कि गाँधी की चर्च चल रही है या गोडसे की |नेताजी शब्द भी सुभाष चन्द्र बोस, लोहिया जी और मुलायम जी के बीच दिमाग को दौड़ाने लग जाता है |
अभी हम इसी भ्रामक चिंतन में भ्रमित हो रहे थे कि अचानक आकाशवाणी की तरह एक आवाज़ गूँजी - हे आदि-पुरुष,प्रणाम स्वीकार करो |
हमने अचकचाकर आँखें खोलीं कि कहीं आसपास मनु महाराज तो नहीं आ बिराजे |
देखा तो तोताराम | हमने पूछा-किसे प्रणाम कर रहा था ? तो बोला- इस दुनिया में तेरे रहते मेरे लिए अब और कौन प्रणम्य बचा है ?
हमने कहा- लेकिन हम 'आदि पुरुष' थोड़े ही हैं | लोग मनु महाराज को आदि पुरुष कहते हैं हालाँकि कुछ समाज सुधारक उन्हें ढूँढ़ न पाने के कारण अन्य तीन वर्णों को ही मनुवादी कह कर चार-चार जूते मारने को उतारू रहते हैं | वैसे हमारे अनुसार मनु भी आदि पुरुष नहीं थे क्योंकि उनके भी मातापिता थे | लेकिन तू हमें आदि-पुरुष क्यों कह रहा है ?
बोला- हे भ्राताश्री, हर अखबार, समाचार, फोटो आदि में आप इसी नाम जाने,पहचाने और सर्वत्र उपस्थित पाए जाते हैं | जब भी कोई समाचार छपता है तो लिखा होता है- कार्यक्रम में फलाँ , फलाँ आदि उपस्थित थे, चित्र में बाएँ से दाएँ फलाँ,फलाँ आदि, कविसम्मेलन में कुल्हड़, भुक्कड़, चुक्कड़ आदि ने कविता पाठ किया | यह 'आदि' आप ही तो हैं |तो फिर आप 'आदि-पुरुष' हुए कि नहीं ?
हालांकि कि हम न तो इतने बड़े आदमी हैं कि खर्च सरकारी हो और विज्ञापन में फोटो छपे हमारा और न ही इतने पैसे वाले कि अपने खर्चे से अखबारों में अपने फोटो के साथ विज्ञापनात्मक बधाई छपवा सकें | और न ही ज़बरदस्ती कार्यक्रमों में थोबड़ा दिखाने के लिए लालायित रहते हैं फिर भी हमें अपना यह मूल्यांकन अच्छा नहीं लगा |
हमने कहा- २०१० में गड़करी जी ने राजकोट में मोदी जी को 'विकास-पुरुष' कहा था | और फिर चुनाव में विकास-विकास का ऐसा शोर मचा कि लगा- विकास न तो आज से पहले संभव हुआ और न ही इस देश में विकास किसी और के वश का काम है | तो हमने यह विशेषण मोदी जी के लिए तय कर लिया लेकिन अब दो दिन पहले ही समाजवादी पार्टी ने अपने शासन की तीसरी वर्ष गाँठ पर अखिलेश यादव को विकास-पुरुष घोषित कर दिया |क्या बताएँ ? हम तो कन्फ्यूजियाये हुए हैं, तोताराम |
बोला- कन्फ्यूज़ होने की कोई आवश्यकता नहीं है | इस देश में लाखों 'विकास-पुरुष' हैं | जिसकी संपत्ति नेता बनते ही दसगुना हो गई, नेता बनते ही जिसका वज़न चालीस किलो से अस्सी किलो का हो गया, जिसका सीना गद्दी पाते ही छब्बीस से छप्पन इंच का हो गया, जिसने अपनी पचास वर्ग फुट की दुकान के आगे सौ फुट का बरामदा बना लिया, जिसने सार्वजनिक ज़मीन, रास्ता घेर लिया, जिसने अपने सभी घर वालों और रिश्तेदारों को पार्टी का टिकट देकर घर में ही बहुमत बना लिया हो वे सब 'विकास-पुरुष' नहीं तो और क्या हैं ?
हमने कहा- तू हमारे यहाँ, विशेष परिस्थितियों को छोड़कर, लगातार चाय पीता रहा है इसलिए हम आज तुम्हें 'चाय-पुरुष' की उपाधि से सम्मानित करते हैं |
बोला- लेकिन कहीं इस उपाधि से मोदी जी या उनके समर्थकों को कोई ऐतराज़ तो नहीं होगा ?
हमने कहा- बिलकुल नहीं, मोदी जी अब इन सबसे ऊपर उठ गए हैं क्योंकि अब राम जेठमलानी जी के अनुसार वे मानव नहीं बल्कि 'विष्णु के अवतार ' हैं |
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