Nov 16, 2008
तोताराम के तर्क - हाथ की सफाई
तोता राम के आते ही पत्नी चाय ले आई। तोताराम जैसे ही पकौड़ों पर झपट्टा मारने लगा, हमने कहा- पहले हाथ धो। तुझे पता नहीं, आज संयुक्त राष्ट्र संघ ने हस्त प्रक्षालन (हाथ-सफाई) दिवस घोषित किया है। हाथ न धोने से संसार के पिछडे देशों में हर साल लाखों लोग छूत की बीमारियों से मर जाते हैं। पकौड़ों के लालच में तोताराम हाथ धोने लगा। हमने उसे साबुन दिया और हाथ धोने का सही तरीका बताया। जब वह हाथ धो रहा था तो हमने हाथ-सफाई का गीत भी गाना शुरू कर दिया- 'वाश, वाश, हैण्ड वाश। खाने से पहले वाश, खाने के बाद वश। वाश, वाश, हैण्ड वाश।'
अब तो तोताराम चिढ़ गया- क्या तमाशा लगा रखा है? यह कोई स्कूल का प्रोग्राम चल रहा है क्या? क्या कोई टी.वी. या अखबारवाला यहाँ खड़ा है जो इतना नाटक कर रहा है? चार पकौड़ों के लिए क्यों इतना व्यायाम करवा रहा है? अरे, मरने वाले हाथ न धोने से नहीं बल्कि भूख और कुपोषण से मरते हैं। और जब खाने को ही कुछ नहीं है तो कैसा हाथ धोना और क्या मंजन करना। मुझे तो आश्चर्य इस बात का हो रहा है कि हमें हाथ धोने के बारे में पश्चिमवाले समझा रहे हैं जो ख़ुद शौच के बाद या खाना खाने के बाद धोने की बजाय कागज़ से पोंछ कर ही कम चला लेते हैं। अपने यहाँ तो बात-बात में हाथ धोते हैं और कुल्ले करते हैं अगर खाने को कुछ हो तो। पश्चिमवालों को किसीने हाथ धोने का महत्त्व बताया होगा तो उन्हें यह बात नई लगी होगी सो उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ से कह कर 'हाथ-धो दिवस' घोषित करवा दिया होगा। और तू जानता है कि अपने भारतवाले तो हैं ही उत्सवधर्मी। ये 'हाथ दिवस' तो क्या, घोषित हो जाने तो थूक दिवस, पाद दिवस, छींक दिवस, डकार दिवस कुछ भी मना सकता है।
हमने भाषण से बचने के लिए तोताराम को पकौड़ों तक पहुँचाया पर वह चुप नहीं न हुआ, बोला- अरे हाथ धोने के लिए तो सब तैयार हैं पर सामने कोई बहती गंगा तो हो। और फिर चाहे दिवस मनाएँ या नहीं पर बता क्या तूने किसी के हाथ गंदे देखे? कोलतार, चारा, यूरिया ताबूत- जाने क्या-क्या इधर-उधर हो गए पर क्या तूने किसी के हाथ पर कुछ लगा देखा? हाथ की सफ़ाई का क्या, वह तो साठ साल से देख ही रहे हैं। जिसे भी सत्ता मिलती है वही सब कुछ साफ़ कर जाता है। और सफ़ाई ऐसी सफ़ाई से करता है कि कोई पकड़ भी नहीं पाता। यदि हो सके तो हाथ की सफ़ाई बजाय अब दिल की सफ़ाई की बात कर। और वह भी एक दिन अख़बारों में समाचार छपवाने के लिए ही नहीं बल्कि वास्तव में चौबीसों घंटे, सातों दिन और बारहों महीने।
हमारा तोताराम से असहमत होने का प्रश्न ही नहीं था।
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८ अक्टूबर २००८
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Jhootha Sach
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हमें उनसे बहुत कुछ सीखना है अभी तो| कि कैसे दुनिया को अपना गुलाम बनाया जाए| जबरदस्ती ना चले तो कैसे ऐसा हो की दुनिया कहे कि भाई हमें अपना गुलाम बनने दो प्लीज़ ! जैसे अभी भी हमारा युवा वर्ग और नेता वर्ग पश्चिम की नक़ल और सेवा करते नहीं धापता|
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