Nov 23, 2008

तोताराम के तर्क - ओबामा की प्राथमिकता और अपने अपने लादेन


ओबामा के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बनने की घटना को व्यापार जगत भुना रहा है । प्रकाशक ओबामा की किताबें मँहगे दामों में बेच रहे हैं तो वस्त्र व्यापारी ओबामा के फोटो वाली टी शर्ट । व्यापारी दाह संस्कार में भी व्यापार कर लेता है तो यह तो एक अभूतपूर्व घटना है । पर हम कोई व्यापारी तो हैं नहीं जो धंधा करें । हम तो निस्वार्थ शुभचिंतक हैं और तिस पर ओबामा हमारे बेटे की उम्र का । उसे सही मार्गदर्शन देना हमारा कर्तव्य है । सो आज जैसे ही तोताराम आया हमने उसके सामने स्थिति रखी । देखा, बालक फँस गया न बुशवाले चक्कर में? अच्छा होता इस अवसर का सदुपयोग कालों के शैक्षणिक और सामाजिक विकास के लिए करता, नस्लीय भेदभाव को मिटा कर सद्भाव बढ़ाता, देश को मितव्ययिता की सीख देकर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करता पर यह तो पड़ गया ओसामा के पीछे बुश की तरह । कहता है ओसामा को जिंदा या मुर्दा पकड़ना मेरी पहली प्राथमिकता होगी । सोचते हैं एक पत्र उसे समझाने के लिए लिख ही दें ।

तोताराम हँसा, बोला- बच्चा ओबामा नहीं तू है । उम्र भले कम हो पर है पक्का घाघ । राज करने के लिए ओसामा ज़रूरी है । ओसामा का डर दिखा कर बुश आठ साल राज कर गये और अब यह इसी मुद्दे पर आराम से चार साल राज करेगा और अगर इस मुद्दे को आगे भी जिंदा रख सका तो एक टर्म और पेल जाएगा । ओसामा न पकड़ा गया और न पकड़ा जाएगा । जैसे समझदार डाक्टर न तो मरीज़ को मरने देता है और न ठीक ही होने देता है । बस जीवन भर कमाई करता रहता है । चतुर ट्यूटर कभी परीक्षा से पहले कोर्स पूरा नहीं करवाता है । राजनीति में सबके अपने-अपने ओसामा होते हैं जिन्हें सत्ता के लिए जिंदा रखना ज़रूरी होता है । पाकिस्तान के लिए कश्मीर एक ओसामा है तो भाजपा के लिए समान नागरिक संहिता, धारा ३७० और राम मन्दिर मुद्दा एक ओसामा है । तभी तो सत्ता मिलने पर भी इन मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाल दिया । अब जब लोकसभा चुनाव आएगा तो फिर इन मुद्दों को बाँस पर टाँग कर घूमेंगे । कांग्रेस के पास धर्मनिरपेक्षता और गरीबी हटाओ के ओसामा हैं भले ही वोट के लिए अल्पसंख्यक तुष्टीकरण करें । मायावती के ओसामा सवर्ण मनुवादी है । जयललिता और करूणानिधि एक दूसरे के ओसामा हैं ।

हमने पूछा- तो फिर ओबामा के जीतने से अमरीका में कोई परिवर्तन नहीं आएगा? तोताराम ने उत्तर दिया- यह भ्रम तुझे और संसार के सारे मतदाताओं को अपने मन से निकल देना चाहिए कि सरकारें उनका उद्धार करेंगी । चुनाव लड़ना ,सरकारें बनाना भी अन्य व्यवसायों की तरह एक व्यवसाय है और कौन व्यवसायी चाहेगा कि उसका ग्राहक समझदार हो या ग्राहक का भला हो । उसे तो अधिक से अधिक लाभ कमाना है । इसलिए भइया, अगर सुख शान्ति चाहते हो तो जाति, धर्म,नस्ल के झगड़े भुला कर प्रेम से रहो और टी.वी.और बाज़ार के बहकावे में मत आओ।

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१८ नवम्बर २००८

इंडियन एक्सप्रेस बीबीसी


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Jhootha Sach

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