Nov 5, 2008

जोन मकेन बनाम ओबामा उर्फ़ हम काले हैं तो क्या हुआ



जोन मकेन साहब ,

जय रामजी की। आपने अपना स्वयं का महत्व संक्षेप में बताते हुए कहा- 'आई हैव बीन टेस्टेड, सीनेटर ओबामा हजण्ट' ।

आपके पूर्ववर्ती बुश साहब को दुनिया ने आठ बरस झेला। अब यदि आपको भी अगले चार साल झेलना पड़ा तो क्या कर सकते हैं। भगवान की मर्जी। बुश साहब कैसे जीते यह तो अल गोर का जी जानता है। बुश के आते ही वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में आतिशबाजी हो गई और जाते-जाते सरकारी खजाने का भट्टा बैठा गए। ऐसा नहीं है कि बुश के ज़माने में धरती ने अनाज, फल-फूल नहीं दिए हों या अमरीकी मज़दूरों और कारीगरों ने काम नहीं किया हो या बादलों ने वर्षा नहीं की हो, या दुनिया के मूर्ख देशों ने हथियार नहीं खरीदे हों। कारण यह है कि टेक्सास की तेल लाबी ने अपने फायदे के लिए अफगानिस्तान, ईराक़ में टांग फंसाती और जनता की पसीने की कमाई सेना पर बहाई। पहले विनाश किया और फिर रम्सफील्ड जैसों ने निर्माण के नाम पर जम कर कमाई । अब अगर आपका नंबर आया तो क्या होगा इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है ।

जहाँ तक आपका टेस्ट होने की बात है तो अमरीका की सेना ने कभी अपने देश की रक्षा के लिए युद्ध नहीं किया। सैनिक नौकरी के चक्कर में झींकते-झींकते कभी कोरिया गए तो कभी वियतनाम, कभी कुवैत तो कभी अफगानिस्तान तो कभी ईराक़ जाना पड़ा। जैसे-तैसे टाइम पास करके वापस आ गये जान बचाते-बचाते। कुछ मारे गए यह बात और है।

जहाँ तक आपकी व्यकिगत वीरता का सवाल है, हम तो इतना जानते हैं कि सच्चे वीर पीठ दिखाने या बंदी होने की बजाय वीर गति को प्राप्त होना ज्यादा बेहतर समझते हैं। हमारे स्वतन्त्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद कहा करते थे कि मैं जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं आऊँगा। भगत सिंह जानबूझकर इस लिए गिरफ्तार हुए थे कि वे अंग्रजों की न्याय व्यवस्था का सच लोगों के सामने लाना चाहते थे। आप वियतनाम युद्ध जीत कर आते तो और बात । वैसे आपके पिताजी भी सेना में उच्चअधिकारी थे और आप भी। पता नहीं कैसे कैद कर लिए गए ।

ख़ैर जान बची और लाखों पाये, लौट कर सूरमा घर आए। अब आराम से फौज की पेंसन पेल रहें हैं। जहाँ तक अमरीका के द्वितीय विश्व युद्ध में विजयी होने की बात है तो जापान को अणु बम डालकर हथियार डालने के लिए विवश किया । ज़मीनी लडाई में हराते तो बात और थी। और हिटलर को अमरीका ने नहीं सोवियत रूस ने हराया था। अमरीका तो रूस की हार के इंतज़ार में तमाशा देख रहा । जब हिटलर हारता दिखा तो जहाँ मौका मिला कब्ज़ा कर लिया।

वैसे सेना में है मज़ा। अधिकतर तो मेस का खाना खाकर और सस्ती दारू पीकर ही रिटायर हो जातें है। युद्ध का मौका ही नहीं आता। फील्ड में रहो तो सब कुछ मुफ्त, तनख्वाह घर भेजो। पीस एरिया में रहो तो केन्टीन का सामान और दारू बाज़ार में बेचो। रिटायर होने पर पेंशन। बीच में मर जाओ तो पूरे कार्यकाल तक बच्चों को पूरी तनख्वाह और बाद में पेंशन। मुसीबत तो साधारण जनता की है- कभी बेकारी, कभी महंगाई, कभी छंटनी। आपको इसका क्या पता? आप तो खानदानी सरकारी दामाद रहें हैं ।

वैसे आपके अनुसार ओबामा का टेस्ट होना अभी बाक़ी । हमारे अनुसार तो उसने टेस्ट दे दिया साधारण स्थिति में रहकर, मेहनत की रोटी खाकर आपके सामने खड़ा है- यह क्या कम है। और फिर स्वप्न भी तो बड़ा देख रहा है, इसी बात की दाद दो बालक को । बड़ा सपना ईसा ने देखा, लिंकन ने देखा, गांधी ने देखा, मार्टिन लूथर ने देखा और अब ओबामा देख रहा है। आदमी का सपना ही उसकी पहचान होती है। त्वचा का रंग मत देखो उसके सपनों का रंग देखो।

बड़े घरानों की चमक और आतंक और गोरे रंग की कुंठा से बाहर आओ मियाँ मेकेन। अंत में एक हिन्दी गाने की पंक्ति- हम काले हैं क्या हुआ दिल वाले हैं ।

आपका,
रमेश जोशी

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

४ नवम्बर २००८



---(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी प्रकाशित या प्रकाशनाधीन
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach

3 comments:

  1. बहुत सटीक, जोशी जी. बस, रेजेल्ट आये जा रहा है. :)

    ReplyDelete
  2. पिछले दो चुनाओं को देखते हुए तो लगता है की मकेन की पार्टी ओबामा को जीतने नहीं देगी, जनता चाहे जो चाहे!

    ReplyDelete
  3. बस घंटों में सब साफ हो जाना है।

    ReplyDelete