Nov 6, 2008
मोती का डर
मोती हमारी गली का एक वरिष्ठ कुत्ता है । हालांकि उसका रंग काला है पर मन मोती की तरह उजला । हो सकता है इसीलिए बच्चों ने उसे मोती नाम दिया हो । मोती शुरु में हमारे घर के आँगन के एक कोने में गड्ढा खोद कर सोता था| थोड़ा बड़ा होने पर उसने गली के एक नुक्कड़ पर बने बिना दरवाजे के पम्प हॉउस को अपना मुख्यालय बनाया| यहीं से वह गली में आने जाने वाले संदेहास्पद लोगों पर सतर्क दृष्टि रखा करता है। वह रोटी के टुकड़े के लिए कभी कुत्तों की तरह नहीं लड़ता । उसने कभी बंगलादेशी या पाकिस्तानी घुसपैठियों की तरह दूसरी गली में अवैध प्रवेश नहीं किया । अनावश्यक रूप से भौंकता भी नहीं । अनावश्यक रूप से दुम भी नहीं हिलाता । कोई आहट होती है तो थोड़ा सा आँखे खोल कर देख लेता है कि कहीं कोई अवांच्छित तत्व तो नहीं है, बस ।
आज जैसे ही हम घर में घुसने लगे तो मोती हमारे साथ ही दरवाजे में घुसने लगा । हमें कुछ अस्वाभाविक सा लगा पर हमने मोती को रोका नहीं । बरामदे में रखी स्टूल पर बैठे तो वह हमारे पैरों के पास आकर बैठ गया और हमें घूरने लगा । हमें लगा जैसे मोती कुछ कहना चाहता है । यह क्या? मोती मनुष्यों की बोली में बोलने लगा- मास्टरजी, आप कुछ दिनों के लिए मुझे अपने चौक के एक कोने में सोने की अनुमति प्रदान कीजिए । हमने पूछा क्या बाहर ठण्ड लगती है या डर लगता है? उसने उत्तर दिया- ऎसी कोई बात नहीं है पर ऐसा है कि शीघ्र ही चुनाव होने वाले हैं और मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता ।
हमें आश्चर्य हुआ । तुम्हें चुनाव से क्या मतलब? न तो तुम्हारा नाम वोटर लिस्ट में है और न तुम कुत्तों की तरह लड़ते हो फिर तुम्हे चुनाव से क्या ख़तरा? वह बोला- मैं कल घूमता घामता एक पार्टी के चुनाव कार्यालय में चला गया था । वहाँ कुछ कार्यकर्ता बातें कर रहे थे कि चाहे काले कुत्ते का गू ही क्यों न खाना पड़े चुनाव अवश्य जीतना है । सो गुरुजी, क्या पता गू के चक्कर में कहीं मेरी आंतें ही न फाड़ डालें । हमें हँसी आगई, कहा- मोती यह साहित्यिक भाषा है । तुमने इसका शाब्दिक अर्थ ले लिया । कुत्ते के गू का मतलब है कि नीच से नीच काम करना । वे चुनाव जीतने के लिए कुछ कराने के लिए तैयार हैं जैसे-जातिवाद, धर्म, भाषा, प्रांत भेद फैलाना, दारू और पैसे से वोट खरीदना, ह्त्या, अपराध, दंगे करवाना, नकली वोट डलवाना, बूथ पर कब्जा करना आदि ।
मोती उदास हो गया, बोला- गुरुजी फिर तो यह काले कुत्ते का गू खाने से भी गया गुजरा काम है । हम मोती की बात से सहमत थे पर क्या कर सकते थे । हमारा लोकतंत्र साठा होकर पाठा जो हो गया था ।
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२० अक्टूबर २००८
छः राज्यों में चुनावों की घोषणा
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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अच्छा लिखा है और लगा भी अच्छा ही. लेकिन कुत्ते की जगह बिल्ली होती तो ज़्यादा उपयुक्त रहता.
ReplyDeletehttp://mallar.wordpress.com
जोशी कविराय पर कमेंट नहीं जा रहा, वही बाताना था. बहुत कोशिश की.
ReplyDeleteगाँव से उम्मीद लेकर तो चला था
खो गया पर आदमी आकर शहर में |
बहुत उम्दा!!
-बस, यही कहना चाह रहा था वहाँ और आपका ईमेल भी नही है प्रोफाइल में..वरना वैसे सूचित कर देता. माफी चाहूँगा यहां कमेंट करने की!!
धन्यवाद| अब ठीक कर दिया है|
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