Nov 26, 2008

बंधुआ मज़दूरी के लिए विधवा-विक्रय


आंध्र और कर्नाटक की सीमा पर की ढाणियों (हेमलेट्स) में सूअर पालने वाले कंचालू कोरचा या हंडी कोरचा नामक समुदाय में आज भी एक पुराना स्त्री-विरोधी, अन्यायपूर्ण रिवाज 'रुका' कायम है । इसमें विधवा स्त्री को उसकी ससुराल वाले किसीको भी बंधुवा मज़दूरी के लिए उसके बच्चों समेत बेच देते हैं जहाँ वे सूअर पालती हैं, झाड़ू बनाती हैं और घर के अन्य काम भी करती हैं और जो भी अन्याय, यंत्रनाएँ और शोषण हो सकते हैं उन्हें भोगती हैं ।

चार वर्ष पूर्व सोदगु वेंकटेश नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा नागम्मा नामक एक ३६ वर्षीया की त्रासदी तत्कालीन मंत्री बी.डी.ललिता नायक के सामने रखी तो मंत्री ने नागम्मा के लिए एक घर, सूअर पालन के लिए ऋण एवं अन्य लाभों का वादा किया । किंतु जैसा कि होता है, अभी तक कुछ नहीं हुआ । अब जब यह मामला पुनः समाज कल्याण मंत्री डी. सुधाकर के सामने लाया गया तो फिर घर, ऋण और बच्चों की मुफ्त शिक्षा का वादा किया गया है जो पता नहीं कब पूरा होगा या होगा भी कि नहीं ।

आज ४० बरस की हो चुकी नागम्मा की १४ वर्ष की उमर में नारायणप्पा से शादी हुई जिससे नागम्मा को चार बच्चे हैं । चार बरस पूर्व नारायणप्पा की मृत्यु हो गई । इसके बाद ससुराल वालों ने नागम्मा को सम्पत्ति में कोई हिस्सा नहीं दिया और उसे बच्चों सहित ३२ हज़ार रुपयों में मद्दलेती नामक सम्पन्न सूअर पालक को बेच दिया । घटना प्रकाश में आने पर मद्दलेत्ती और उसके रिश्तेदारों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया जिन्हें छुड़ाने के लिए नागम्मा को १२ हज़ार का इकरारनामा भरना पड़ा । नागम्मा को अपने आप को बंधन से छुड़ाने के लिए अपने नए मालिक द्वारा ससुराल वालों को दी गई ३२ हज़ार की राशिः भी उधार लेकर चुकानी पड़ी । इस प्रकार नागम्मा पर ४४ हज़ार का कर्जा हो गया । जिसे वह आज भी चुका रही है ।

नागम्मा को रहने के लिए झोंपड़ी बनाने के लिए एक किसान ने बंजर भूमि का एक टुकड़ा दे रखा है । जहाँ नागम्मा झाड़ू बनाती है । चार रुपये की एक झाड़ू बिकती है । चार बच्चों का पालन पोषण । कब तक चुकेगा नागम्मा का कर्ज़ा? घर में न पानी है और न बिजली । नागम्मा ने किसी तरह दो बेटियों का विवाह कर दिया है । सबसे छोटी ने पढ़ना छोड़ दिया है, एक बेटी दसवीं में पढ़ रही है जिसे सरकार से एक साईकिल मिली हुई है ।

नागम्मा के जीवन, संघर्षों और कष्ट की क्या हम कल्पना करना चाहेंगे? क्या रोजाना हजारों रुपये दारू में बहा देने वाले और नए साल के स्वागत में लाखों रुपये नाच गान में फूँक देने वाले इस पर विचार करेंगे? क्या राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश की दलित महिला कलावती की तरह नागम्मा के घर पधारेंगे? क्या विन्धेश्वर पाठक अब भी कलावती के मामले जैसी उदारता दिखाएँगे?

अभी तो सभी सेवक लोकतंत्र की रक्षा के लिए खून, पसीना और पैसा बहने में व्यस्त हैं ।

एक शे'र सुनिए-
बंधुआ है मज़दूर अभी तक
मगर मुक्त व्यापार हो गया ।

पाप बहुत बढ़ गए धरा पर,
पर मुश्किल अवतार हो गया ।

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२३ नवम्बर २००८



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Jhootha Sach

1 comment:

  1. भाई , आप क्यों नहीं समझते यह सब कर्मों का फल है ! और नागम्मा को आपने स्त्री होने पर व्तक्ति क्यों माना? स्त्री है तो उसका मूल्य तो चुकाना ही होगा ! फिर विधवा होना ! करेला नीम चढ़ा !
    घुघूती बासूती

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