Nov 23, 2008

मधुशाला पर फ़तवा और मोबाइल मैखाने


मौलाना कादरी जी,
अस्सलाम वालेकुम । हम आपको केवल मौलाना कादरी के नम से ही संबोधन कर रहे हैं । वैसे आपका पूरा नाम जो अंग्रेज़ी के अखबार में छ्पा था वह था- मौलाना मुफ़्ती अबुल इरफ़ान अहमद जैमुल अलीम कादरी । हमें लगा मौलाना शब्द सब के साथ कॉमन है और बाकी छः आपके सप्त ऋषि मंडल के सदस्य हैं । यदि ऐसा है तो ठीक है वरना हमें क्षमा करना । यदि यह सारा आप ही का नाम है तो गज़ब है साहब! इतने लंबे नाम तो अरब के शाहों के भी नहीं होते । ठीक भी है जितना बड़ा आदमी, उतना बड़ा नाम । हमारे यहाँ तो राम, शिव जैसे छोटे-छोटे नाम होते हैं ।

१० नवम्बर २००८ को मध्य प्रदेश के एक मुस्लिम संगठन ने आपकी अदालत में, हरिबंश राय बच्चन की मधुशाला की एक प्रति के साथ विचारार्थ एक मामला रखा । मधुशाला जैसी कृति का मूल्यांकन करने के लिए आपसे बेहतर साहित्य प्रेमी और हो भी कौन सकता था । आपने इस पुस्तक को इस्लाम विरोधी पाया और शैक्षणिक संस्थाओं के पाठ्यक्रम में रखे जाने के अनुपयुक्त पाया । वैसे यह कोई धार्मिक पुस्तक नहीं है । गुजरात को छोड़ कर भारत के सभी राज्यों में शराब का व्यवसाय खूब फल-फूल रहा है । मिलाने को तो सब तरह की शराबें गुजरात में भी खूब मिलती हैं पर शराब-बंदी होने के कारण थोड़े दाम ज़्यादा देने पड़ते हैं । इतिहास पर नज़र डालें तो महान न्यायप्रिय बादशाह जहाँगीर रोजाना एक बोतल शराब पीता था । ऐसा संतोषी संत कैसा न्याय करता होगा ये तो अनुमान ही लगाया जा सकता है । बाबर जब राणा सांगा के साथ युद्ध में हारने लगा तो उसने मन्नत माँगी कि यदि वह युद्ध में जीत गया तो वह शराब पीना छोड़ देगा । इसका मतलब की वह पहले पीता था । बाद में उसने छोड़ी कि नहीं पता नहीं । अपने यहाँ नवाबी युग में तो शराब की नदियाँ बहती थीं । यहाँ के राजाओं, नवाबों ने शासन चलाने का काम तो अंग्रेज़ों को सौंप दिया था तो शराब पीने के अलावा और काम ही क्या रह गया था ।

स्थिति यह है कि न तो आप देश में शराब बनानेवालों को रोक सकते हैं और न बेचने वालों को । हमारे हिसाब से तो करनेवाले की बजाय किसी काम की प्रेरणा देनेवाला ज़्यादा बड़ा गुनाहगार होता है । एक युद्ध में कुछ सैनिकों को बंदी बना लिया गया । सबकी पेशी हुई और पूछताछ की गई । अंत में जिसका नंबर आया उसके पास कोई हथियार नहीं था । थी तो मात्र एक ढोलक थी । पूछा गया कि तू सेना में क्या काम करता था तो बोला- हुज़ूर मैं तो ढोलक बजा कर गाता था उससे जोश में आकर सैनिक लड़ते थे । पूछताछ करनेवाले अधिकारी ने कहा- सैनिकों को छोड़ दो और इस ढोलक बजाने वाले को फाँसी दे दो । यही सारी खुराफ़ात की जड़ है । सो बनाने, पीने, पिलाने और बेचनेवालों को छोड़ कर आपने इस सारी खुराफात की जड़ को धर दबोचा, अच्छा किया ।

वैसे दंड तो पीनेवालों को भी मिलना चाहिए । अरब में एक ख़लीफा हुए हैं । वे शराब को बहुत बुरा मानते थे । शराब पीने वालों को एक सौ कोड़ों की सज़ा तय कर रखी थी । शराबियों की आफ़त । उन्होंने एक योजना बनी । किसी तरह उन्हीं के बेटे को शराब पिला दी, गिरफ़्तार भी करवा दिया और अंत में सिफ़ारिश भी करने पहुँच गए- हुज़ूर बच्चा है, माफ़ कर दीजिये । पर ख़लीफा उनकी चाल समझ गए । बोले- नहीं, कोड़े लगेंगे और पूरे एक सौ । और कोड़े भी हम लगायेंगे । पचास कोड़ों में ही साहबजादे बफ़ात पा गए । उसी दिन दफ़ना भी दिया गया । अगले दिन ख़लीफा को ख्याल आया कि कोड़े पचास ही लगाये थे । सो लाश को कब्र से निकलवाया गया और पचास कोड़े और लगाये ।

सो कादरी साहब, फ़तवा हो तो ऐसा, सज़ा हो तो ऐसी और क्रियान्वयन हो तो भी ऐसा ही । वैसे मधुशाला लिखनेवाले बच्चन साहब तो इस दुनिया में हैं नहीं । यदि आप कोड़े लगाने कि सज़ा देते भी तो किसे, वे तो पंचतत्त्व में विलीन हो चुके । यह सुविधा तो दफ़नाने वाले समाजों में ही है । सैंकडों साल बाद भी चाहो तो कब्र में से कंकाल निकलवा कर उसकी मिट्टी पलीद कर दो । अब देखिये ना, पॉप साहब ने केरल की एक नन को संत का दर्जा दिया तो उसकी मिट्टी खुदवा कर वेटिकन में मँगवा ली । किसी हिंदू को मृत देह के अभाव में संत का दर्जा नहीं दिया जा सकता है कि भारत में कोई हिंदू संत बनने के काबिल है ही नहीं ।

आप इन साहित्य वालों की एक मत सुनना । ये कुछ कह देते हैं और फिर कहते हैं यह तो प्रतीक था या यह तो रूपक था । हम आपको कुछ उदहारण देते हैं आप इन पर भी विचार करके बैक डेट से फ़तवे सुना दीजियेगा । कबीर का एक पद है- पीले ना प्याला, हो मतवाला । उमर खैयाम ने तो जो रुबाइयाँ लिखी हैं उनसे तो आप वाकिफ़ होंगे ही । दारू के अलावा कुछ नहीं । गुरु नानक जी जब एक बार मक्का-मदीना की यात्रा पर जा रहे थे तो रस्ते में उनको एक रईस ने शराब पेश की तो गुरु बोले- हम ने तो ऐसी शराब पी रखी है जिसका नशा कभी उतरता ही नहीं । अब आपको और क्या प्रमाण चाहिए । ग़ालिब तो पक्का शराबी था ही । एक बार ग़ालिब दरी बिछा कर नमाज़ पढ़ने की तैयारी कर रहा था । लोगों को आश्चर्य । ग़ालिब और नमाज़? तभी ग़ालिब ने दरी समेटी और चल दिये । लोगों ने पूछा- मियाँ यह क्या? ग़ालिब बोले- जिसके लिए नमाज़ पढ़ रहा था वह तो ख़ुदा ने अता फरमा ही दी तो नमाज़ पढ़ कर क्या करना । लोगों ने देखा की गली के नुक्कड़ पर ग़ालिब का दोस्त शराब की बोतल हिला-हिला कर ग़ालिब को बुला रहा था । लाहौल विला कुव्वत! उसी ग़ालिब की कब्र दिल्ली में है । खुदवा कर उसकी मिट्टी पलीद करें । हम आपके साथ हैं । यदि आधुनिक युग में सुधार करना चाहें तो बड़े-बड़े सूफियों का खून टेस्ट करवाएँ । अल्ला कसम! सबके खून में लाल परी दौड़ती मेलेगी । वैसे ये शराब का धंधा करने वाले, पीने और पिलाने वाले हैं बड़े जालिम । शरबती आँखों से ही पी पिवा लेते हैं । ऐसे मोबाइल मैखानों को कहाँ तक कंट्रोल करेंगे? अच्छा हो कि अपन भी एक-एक पैग दबा लें । फिर दुनिया जाए भाड़ में ।

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मधुशाला की जिन पंक्तियों पर एतराज़ जताया गया है वो इस प्रकार हैं —

शेख कहाँ तुलना हो सकती मस्ज़िद की मदिरालय से,
चिर विधवा है मस्ज़िद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला ।

बजी नफीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीने वाला ।

शेख बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को,
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला ।

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१७ नवम्बर २००८

बी-बी-सी की ख़बर - कराची में तो शराब पीने वालों में अधिकतर मुसलमान हैं, पत्रिका की ख़बर


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Jhootha Sach

1 comment:

  1. बहुत सुंदर!

    आजकल मुद्दे कुछ कम ही हैं, या फिर स्वास्थ्यमंत्री रोम्दोसजी के लिए भुमिका बना रहे हैं कि शराब पर पाबंदी में सुविधा हो!

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