Nov 18, 2008

तोताराम के तर्क - कलावती के कारण



एन गाना था- 'ये जो तन मन में हो रहा है, ये तो होना ही था।' लोग बताते हैं कि बड़ा मादक और उल्लासपूर्ण गाना था। वैसे हमको इसका कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है क्योंकि पिताजी ने इस महामारी से हमें बचाने के लिए सत्रह साल पूरे होने से पहले ही शादी कर दी थी। अब सड़सठ पार कर गए हैं सो घुटने में दर्द रहने लग गया है। और कुछ हो न हो पर ये तो होना ही था। जब प्रधानमंत्री के घुटनों में दर्द रहने लग गया हो तो हम तो एक साधारण रिटायर्ड मास्टर हैं। घुटनों में दर्द होने से उठते बैठते समय भले आदमियों के मुँह से हे राम निकलता है पर हमारे मुँह से निकालता है- ये तो होना ही था।

आज सवेरे जब तोताराम आया तो पोते पोतियाँ स्कूल जा चुके थे। पत्नी रसोई में थी, बोली- चाय ले जाओ। हम घुटनों पर हाथ रखकर उठने लगे तो मुँह से निकल गया- ये तो होना ही था। पर तोताराम ने न तो सहानुभूति कटाई और न ही ख़ुद चाय लेने के लिए उठा। उलटे बड़े व्यंगपूर्ण लहजे में बोला- ये तो होना ही था ! जैसे कोई बाढ़ ,सूखे या बम विस्फोट की तरह अपने आप हो गया है। अरे, इसके लिए बुश, मनमोहन, श्यामशरण, प्रणवमुखर्जी, राईस, मेनन, नारायणन ने दिन रात एक कर दिए। बुश ने तो आर्थिक संकट के समय भी रात-रात भर भाग-भाग कर किसी तरह सीनेट में पास करवा ही लिया। मनमोहन जी ने तो अपनी सरकार तक दाँव पर लगा दी। अमर सिंह ने तो सारी बेइज़्ज़ती भूल कर संप्रग को सहयोग दिया।

हमने कहा- कोई नेता देश और जनता के लिए कष्ट नहीं उठाता। सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं। बुश अमरीका की डूबती अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए और भारतीय विशेषज्ञों द्बारा अमरीका में कमाए गए डालरों को वापस लेने के लिए कोई न कोई फायदे का सौदा जाते-जाते कर जाना चाहते थे। अगर मनमोहन जी थोडा इंतज़ार करते तो बुश ख़ुद दिल्ली में आकर डेरा डाल देते और सौदा करके ही जाते। जब हजारों करोड़ की मेहंदी बट रही हो तो कौन हाथ पीले नहीं करना चाहेगा। पर भैया, जब दूल्हे को ही लार टपक रही हो तो कोई क्या कर सकता है। अमरसिंह तो मायावती से डरकर संप्रग के साथ आए हैं। मनमोहनजी को भी चुनाव से पहले कुछ कर दिखाना था। वैसे यह कोई उपलब्धि नहीं है बल्कि चौथाये उठाये खर्चे में ही हम सौर ऊर्जा का उपयोग करके भारत को ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बना सकते हैं। और यदि तू किसी को श्रेय ही देना चाहता है तो अटलजी को इसका श्रेय दे जिनके कार्यकाल में इस समझौते की योजना बनी थी। यदि थोड़ा समय और मिल जाता तो वे यह समझौता कर भी जाते। हाँ, आज राजनीति के कारण भाजपा विरोध कर रही है तो उस स्थिति में कांग्रेस भी ऐसे ही विरोध करती।

तोताराम बोला- यदि एक ही व्यक्ति को श्रेय देना हो तो मैं इसका श्रेय राहुल बाबा को देना चाहूँगा। जैसे सत्यनारायण की कथा में सत्यनारायण भगवान ने कलावती के दुःख दूर किए वैसे ही राहुल बाबा ने भी कलावती नाम की एक दलित महिला के घर में बिजली की रोशनी पहुँचाने के लिए पूरा ज़ोर लगा कर यह परमाणु समझौता करवाया।

हमें बड़ी कोफ़्त हुई । हमने व्यंग्य किया- तब तो तोताराम,यह चंद्रयान भी शायद इसलिए भेजा गया है कि चंद्रमा से पानी लाकर कलावातियों की पानी की समस्या हल की जा सके। तोताराम ने बिना किसी झिझक के, बड़ी बेशर्मी से कहा- और नहीं तो क्या? तू समझता होगा चाँद पर घूमने के लिए चार सौ करोड़ रुपये खर्च किए हैं।

हमें लगा, हमारे घुटनों से भी ज्यादा दर्द हमारे सिर में हो रहा है।

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach

1 comment:

  1. बहुत सुंदर| आपका कहने का अंदाज़ मुद्दे पर सीधे चोट करता है|

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