Nov 9, 2008
तोताराम के तर्क - ज़रदारी की बीमारी
जब से समाचार पढ़ा, हम तो भरे बैठे थे । जैसे ही तोताराम आया हम उस पर ही पिल पड़े- यार, यह ज़रदारी भी अजीब आदमी है । पहले नवाज़ शरीफ़ को चरका दिया और अब अमरीका यात्रा पर गया तो पालिन को देखते ही लार टपकाने लगा । कहता है- जितना सुना था उससे ज्यादा खूबसूरत पाया आपको । इसके बाद फोटोग्राफरों ने हाथ मिलाते हुए पोज़ देने को कहा तो क्या बोलता है- ये कहें तो गले लगा लूँ । कोई बात हुई ? ठीक है, विधुर है । मात्र तरेपन बरस का है पर शिष्टाचार भी कोई चीज़ है । तीन तीन बेटे-बेटियों का बाप है । बच्चे भी क्या सोच रहे होंगे? अपने मनमोहन जी को देखो, बेचारे आँख तक नहीं उठाते- पर दारेषु मातृवत ।
तोताराम ने तर्क फेंका- मनमोहनजी की भी भली कही । एक तो जन्मजात अध्यापक, दूसरे संयास की उम्र, तीसरे पौरुष ग्रंथि निकलवादी और चौथे मैडम साथ में । ज़रदारी की बात और है । एक तो उम्र 'अभी तो मैं जवान हूँ ', दूसरे ज़मींदारी खानदान, तीसरे चार-चार की परमीशन और फिलहाल एक भी नहीं । लोग तो पत्नी के मरने के बारह दिन के भीतर ही वैवाहिक विज्ञापन देखने लग जाते हैं । प्रेम का प्रतीक ताजमहल बनवाने वाले शाहजहाँ के हरम में पाँच हज़ार बेगमों का रेवड़ था । और तो और मुमताज़ महल के मरने के बाद भी कई और बेगमें कबाडी । ज़रदारी को दोष देने से पहले दुनिया के बड़े बड़े पत्नीशुदा लोगों का इतिहास तो देख ले । रीगन थेचर पर फ़िदा थे,सरकोजी समुद्र तट पर अठखेलियाँ करती ब्रूनी को देखते ही पत्नी को भूल गए, क्लिंटन महाराज की लम्पट लीलाएं तो जगजाहिर हैं ही । मियाँ भुट्टो का किस्सा भी अनजान नहीं है, नेहरू जी का भी अडविना पर माधुर्य भाव था । अटल जी ने भी अपने एक इंटरव्यू में कहा था की कुंवारा हूँ , ब्रह्मचारी नहीं । तो फिर ज़रदारी के पीछे ही दुधारी तलवार लेकर क्यों पड़ा है? और जब पालिन ने ही एतराज नहीं किया तो तू क्यों परेशान हो रहा है? और फिर ज़रदारी को तो भूलने की बीमारी है । मुशर्रफ़ के समय जाँच के दौरान ज़रदारी ने एक मनोचिकित्सक का प्रमाण पत्र भी पेश किया था की उन्हें भूलने की बीमारी है । तो हो सकता है कि भूल से पालिन को उसने कुछ और समझ लिया हो । और फिर यदि दो देशों के नेताओं में मधुर सम्बन्ध होंगें तो उन देशों के सम्बन्ध भी मधुर होंगे ही और इस प्रकार विश्वशांति को बढ़ावा मिलेगा ।
हमें तोताराम के दूसरे तर्क में दम लगा ।
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
२७ सितम्बर २००८
-----
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी | प्रकाशित या प्रकाशनाधीन |
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
aadarniya joshiji,aapki upasthiti kaafi dino baad nazar ayee. hum dono 'jansatta' ke puraane chitthikaar hain. ek baar 'hindi bhavan'delhi me aapse mulaqat bhi huyee thi. aapki kundaliyan badi achchhi lagti thi.achanak 'hindustan' me blogcharcha(12-11-08)me aapka ullekh mila to kisi tarah aapse roobroo hoon. main delhi admn. me shikshak hoon tatha abhi blogging me naya hoo. 'jansatta' ki 'chaupal' se aap mujhse parichit honge,ab aksar aapse mulaqaat hoti rahegi ,kripya mujhe apna margadarshan pradaan karen kyunki mai abhi is field me naya hoon......santosh kumar trivedi'chanchal'raebareli[u.p.] blog:chanchalbaiswari.blogspot.com, email:chanchalbaiswari@gmail.com
ReplyDelete