Nov 16, 2008

प्रथम विश्व युद्ध के बेगाने शहीद


आज प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त हुए नब्बे वर्ष हो गए। ११ नवम्बर १९१८ को ११ बजकर ११ मिनिट पर युद्ध की समाप्ति के दस्तावेज़ों पर विधिवत हस्ताक्षर हुए। यह युद्ध योरप की साम्राज्यवादी शक्तियों में वर्चस्व के लिए था इसलिए इसका विस्तार योरप के साथ साथ एशिया, अफ्रिका के उन क्षेत्रों में भी फ़ैल गया जहाँ-जहाँ योरप के उपनिवेशवादी देशों का साम्राज्य था। इस युद्ध ने जहाँ इटली, जर्मनी और सोवियत रूस का नक्शा ही बदल कर रख दिया वहाँ रूस की साम्यवादी क्रान्ति के लिए भी मार्ग प्रशस्त किया। इस युद्ध में जीवित बचे सैनिकों में अब कोई जीवित नहीं है।

आज इस युद्ध की समाप्ति की ९० वीं वर्षगाँठ योरप के कुछ देशों में मनाई जा रही है। ठीक है, भारत का इस युद्ध से कुछ लेना देना नहीं था किंतु ब्रिटेन का उपनिवेश होने के कारण यहाँ के लाखों सैनिकों को एशिया, अफ्रीका और योरप में झोंक दिया गया। ये सैनिक सस्ते थे, मुट्ठी भर चने खाकर लड़ सकते थे,पेंशन भी इनको ब्रिटिश सैनिकों से कहीं कम देनी पड़ती थी। मात्र नौकरी के लिए भारत के नब्बे हज़ार सैनिकों ने ब्रिटेन को युद्ध जिताने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। इसका ख्याल हमारी भागती दौड़ती जिंदगी और व्यक्तिवादी सोच में आता ही नहीं। चाहें तो दिल्ली के इंडिया गेट पर खुदे इन सैनिकों के नाम देख सकते हैं। ब्रिटेन ने यह स्मारक बना कर शिष्टाचार का परिचय दिया पर क्या आज़ाद होने के बाद हम अपने ही वीरों के लिए सामान्य सा शिष्टाचार भी निभा पाते है? नाचने-गाने वालों के गू-मूत के बड़े बड़े समाचार छापने-दिखाने वाले मीडिया के पास इन अनाम और बेगानी आग में कूदने वाले शहीदों के लिए कुछ स्थान और समय है?

बचपन में ननिहाल जाता था तो प्रथम विश्व युद्ध में भाग ले चुके नानाजी के कई मित्र उनके पास आते थे। कभी-कभी प्रथम विश्व युद्ध की चर्चा चलती थी जिसे सुनकर रोमांच हो आता था।

चलो और कोई नहीं तो आप और हम ही उन सैनिकों को याद करें।

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११ नवम्बर २००८



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Jhootha Sach

1 comment:

  1. जोशीजी, चुनावों का समय है, शहीदों की किसे पडी है, हिन्दू आतंकवादियों को पकड़ने से ही फुर्सत नहीं|

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