आज तोताराम के आने के समय तोताराम तो नहीं आया मगर उसके स्थान पर उसका पोता बंटी हमारे नाम तोताराम का एक रुक्का लेकर आया जिस पर लिखा था- 'तोताराम का ट्वीट' | अभी तक तो हमने अमिताभ बच्चन, पूनम पांडे, मंदिरा बेदी, बिपाशा बासु, कबीर बेदी, राखी सावंत, दिग्विजय सिंह और अब रुश्दी के ही ट्वीट पढ़े थे कम्प्यूटर पर, मगर कागज की चिप्पी पर ट्वीट एक नई बात थी | वैसे ट्वीट एक सस्ता और उल्लू बनाने वाला साधन निकल आया है | पढ़ने वाला यह समझता है कि ट्वीट लिखने वाली हस्ती केवल उसी से मुखातिब है और उसे अपने जीवन की छोटी-छोटी बातों में शामिल कर रही है | जब कि वह हस्ती अपने फुर्सत के समय दो लाइनें यूँ ही लिखकर डाल देती है जैसे कि 'आज दिल्ली पहुँची हूँ | यहाँ मुम्बई से अधिक ठण्ड है | आज पिताजी का जन्म दिन है | बच्ची बहुत प्यारी है | आप सब को दिवाली की बधाई | आज कुछ करने का मन नहीं है | आज देर तक सोऊँगी | मुझे खाने में केवल खिचड़ी बनानी आती है | फलाँ हीरोइन मेरे सामने कुछ नहीं है | वह मुझसे जलती है | मैं नंबर की दौड़ में नहीं हूँ | अभी शादी का कोई इरादा नहीं है' |
अब इन बातों का क्या तो महत्त्व है और क्या ही पाठकों को इनकी ज़रूरत? अरे भई, तू खिचड़ी बना या पराँठा, ट्वीट पढ़ने वाले को तो कुछ मिलना नहीं | शादी करो न करो, पाठकों का इससे क्या संबंध है और न ही पाठक तुमसे शादी करने के उम्मीदवार | और यदि कोई पाठक ऐसा मान लेता ही तो उससे बड़ा गधा और कोई नहीं | पर साहब निठल्लों की कमी नहीं है इस दुनिया में | इन हस्तियों की सूक्तियों को पढ़ने के लिए रोज़ हजारों की संख्या में चले ही आते हैं |
हमने तोताराम के पोते बंटी से कहा- बेटा, यह कोई ट्वीट नहीं है | दादाजी से कहना कि यदि ट्वीट करने का शौक है तो कम्प्यूटर ख़रीदे | इस तरह किसी व्यक्ति के हाथ भेजे गए सन्देश को आजकल कूरियर कहते हैं | यह तो लोकल और घर का है सो कोई पैसा नहीं लगा वरना बिना बात पाँच रुपए लग जाते |
हमने उस पुर्जे को पढ़ा | बिलकुल वही सब कुछ था जो रुश्दी के ट्वीट में था, बस नाम का फर्क था- रुश्दी की जगह तोताराम और राजस्थान सरकार की जगह रमेश जोशी | लिखे का सार यह था कि मैं जयपुर साहित्य उत्सव में इसलिए भाग नहीं ले सका कि मास्टर रमेश जोशी ने मुझे डरा दिया था कि यदि तू वहाँ जाएगा और रुश्दी वाले कमरे में ठहरेगा तो हो सकता है कि रुश्दी के भ्रम में कोई तेरी हत्या न कर दे |
तभी तोताराम प्रकट हुआ, बोला- मैं भी इसके साथ हूँ | भले ही मेरे पास कम्प्यूटर नहीं है और मैनें इसे लिखित रूप में किसी सन्देश वाहक के हाथ भेजा है मगर फिर भी तू इसे वैसे ही ट्वीट मान जैसे कि भारत के साहित्य प्रेमियों, राजस्थान प्रशासन के नाम रुश्दी का ट्वीट | उसे भी गुमराह किया गया और तुमने भी मुझे गुमराह किया कि जयपुर जाने पर मेरी सुरक्षा को खतरा है | यदि रुश्दी को राजस्थान प्रशासन और मुझे तू नहीं डराता तो कोई एक तो जयपुर पहुँचता | अब न तो मैं पहुँच सका और न ही रुश्दी | अब आयोजकों का कमरे का किराया बेकार ही लगा ना? और रुश्दी के लिए बनवाया गया खाना भी बेकार गया होगा | और अगर उन्हें भेंट देने के लिए रजवाड़ी दारू की बोतल खरीद ली गई होगी तो उसका भी पता नहीं क्या हुआ होगा?
और मान ले पैसा आयोजकों के घर का नहीं था, अनुदान का रहा होगा या फिर दारू के विज्ञापनों से आया होगा, खाना भी किसी ने खा ही लिया होगा मगर रुश्दी जी के न आने से, उनके मार्ग-दर्शन के अभाव में भारतीय साहित्य का जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कैसे होगी? आज तक राजस्थान के साहित्यकार या तो राजाओं की प्रशंसा, युद्धों का वर्णन लिखते रहे या फिर नीति और वीर रस के दोहे-सोरठे लिखते रहे या फिर मीराबाई 'मेरे तो गिरधर गोपाल' गाती रही | कहीं कोई 'शैतानी आयतों' जैसी रस-वर्षा नहीं | भारतीय साहित्य में भी वही आत्मा-परमात्मा, पुराण, उपनिषद, और चरवाहों के वैदिक गाने | ठीक है, कहीं कहीं वस्त्र-हरण और चीर-हरण जैसे प्रसंग हैं मगर उनको भी अध्यात्म से जोड़ कर मज़ा किरकिरा कर दिया | कहीं रुश्दी के साहित्य और जीवन जैसा बिंदासत्त्व, रस-टपकाऊ मदहोश बनाऊ लम्पटत्त्व नहीं |
अब तक हम तोताराम के एकालाप से दुखी हो चके थे सो हमने उसे रोककर अपनी बात शुरु की- देखो तोताराम, साहसी और सच्चे लोग न तो सरकारों से सुरक्षा माँगते हैं और न ही किसी धमकी से घबराते हैं | कबीर ने न तो किसी 'उत्सव' के निमंत्रण का इंतज़ार किया और न धमकियों की परवाह की | लुकाठी लेकर बाज़ार में खड़े होकर गरजते रहे, पंजाबी के कवि पाश को क्या पता नहीं था कि उसकी जान को खतरा है? इंदिरा गाँधी को भी कुछ लोगों ने सलाह दी थी कि वे अपनी सुरक्षा से सिक्ख कर्मचारियों को हटा दें मगर उन्होंने इसे एक बचकानी बात माना | गाँधी जी की सभा में बम फेंका गया फिर भी न तो उन्होंने कोई सुरक्षा प्रबंध किए और न ही अपने कार्यक्रम में कोई परिवर्तन किया | मीरा को तो राणा ने साफ़ धमकी दे ही रखी थी पर क्या मीरा ने साधु संगत छोड़ दी या गिरधर गोपाल से नाता तोड़ लिया? रुश्दी का यह नाटक चर्चा में रहने के लिए है जैसे कि राखी सावंत, विपाशा बसु, पूनम पांडे बोलें तो खबर और न बोलें तो खबर | दीपिका रणवीर के साथ घूमे तो लोगों को चैन नहीं और यदि रणवीर उसके पैर छू ले तो भी हाय-तौबा | और लोग भी कुछ तो कहेंगे ही चाहे रुश्दी आए या नहीं आए |
और भैया, यदि यहाँ के साहित्य प्रेमियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रुश्दी से मिलने वाले साहित्यिक और शालीनता के मार्ग-दर्शन के अभाव का इतना ही दुःख है और रुश्दी भारतीय साहित्य का कोई मार्ग-दर्शन करना ही चाहते हैं तो कोई गुरु-मन्त्र अब लिख कर भिजवा दें | किसने मना किया है?
तोताराम ने अपना ट्वीट-पत्र हमारे हाथ से छीन लिया और बोला- बहुत हो गई बकवास, अब चाय तो बनवा ले |
२३-१-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
अब इन बातों का क्या तो महत्त्व है और क्या ही पाठकों को इनकी ज़रूरत? अरे भई, तू खिचड़ी बना या पराँठा, ट्वीट पढ़ने वाले को तो कुछ मिलना नहीं | शादी करो न करो, पाठकों का इससे क्या संबंध है और न ही पाठक तुमसे शादी करने के उम्मीदवार | और यदि कोई पाठक ऐसा मान लेता ही तो उससे बड़ा गधा और कोई नहीं | पर साहब निठल्लों की कमी नहीं है इस दुनिया में | इन हस्तियों की सूक्तियों को पढ़ने के लिए रोज़ हजारों की संख्या में चले ही आते हैं |
हमने तोताराम के पोते बंटी से कहा- बेटा, यह कोई ट्वीट नहीं है | दादाजी से कहना कि यदि ट्वीट करने का शौक है तो कम्प्यूटर ख़रीदे | इस तरह किसी व्यक्ति के हाथ भेजे गए सन्देश को आजकल कूरियर कहते हैं | यह तो लोकल और घर का है सो कोई पैसा नहीं लगा वरना बिना बात पाँच रुपए लग जाते |
हमने उस पुर्जे को पढ़ा | बिलकुल वही सब कुछ था जो रुश्दी के ट्वीट में था, बस नाम का फर्क था- रुश्दी की जगह तोताराम और राजस्थान सरकार की जगह रमेश जोशी | लिखे का सार यह था कि मैं जयपुर साहित्य उत्सव में इसलिए भाग नहीं ले सका कि मास्टर रमेश जोशी ने मुझे डरा दिया था कि यदि तू वहाँ जाएगा और रुश्दी वाले कमरे में ठहरेगा तो हो सकता है कि रुश्दी के भ्रम में कोई तेरी हत्या न कर दे |
तभी तोताराम प्रकट हुआ, बोला- मैं भी इसके साथ हूँ | भले ही मेरे पास कम्प्यूटर नहीं है और मैनें इसे लिखित रूप में किसी सन्देश वाहक के हाथ भेजा है मगर फिर भी तू इसे वैसे ही ट्वीट मान जैसे कि भारत के साहित्य प्रेमियों, राजस्थान प्रशासन के नाम रुश्दी का ट्वीट | उसे भी गुमराह किया गया और तुमने भी मुझे गुमराह किया कि जयपुर जाने पर मेरी सुरक्षा को खतरा है | यदि रुश्दी को राजस्थान प्रशासन और मुझे तू नहीं डराता तो कोई एक तो जयपुर पहुँचता | अब न तो मैं पहुँच सका और न ही रुश्दी | अब आयोजकों का कमरे का किराया बेकार ही लगा ना? और रुश्दी के लिए बनवाया गया खाना भी बेकार गया होगा | और अगर उन्हें भेंट देने के लिए रजवाड़ी दारू की बोतल खरीद ली गई होगी तो उसका भी पता नहीं क्या हुआ होगा?
और मान ले पैसा आयोजकों के घर का नहीं था, अनुदान का रहा होगा या फिर दारू के विज्ञापनों से आया होगा, खाना भी किसी ने खा ही लिया होगा मगर रुश्दी जी के न आने से, उनके मार्ग-दर्शन के अभाव में भारतीय साहित्य का जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कैसे होगी? आज तक राजस्थान के साहित्यकार या तो राजाओं की प्रशंसा, युद्धों का वर्णन लिखते रहे या फिर नीति और वीर रस के दोहे-सोरठे लिखते रहे या फिर मीराबाई 'मेरे तो गिरधर गोपाल' गाती रही | कहीं कोई 'शैतानी आयतों' जैसी रस-वर्षा नहीं | भारतीय साहित्य में भी वही आत्मा-परमात्मा, पुराण, उपनिषद, और चरवाहों के वैदिक गाने | ठीक है, कहीं कहीं वस्त्र-हरण और चीर-हरण जैसे प्रसंग हैं मगर उनको भी अध्यात्म से जोड़ कर मज़ा किरकिरा कर दिया | कहीं रुश्दी के साहित्य और जीवन जैसा बिंदासत्त्व, रस-टपकाऊ मदहोश बनाऊ लम्पटत्त्व नहीं |
अब तक हम तोताराम के एकालाप से दुखी हो चके थे सो हमने उसे रोककर अपनी बात शुरु की- देखो तोताराम, साहसी और सच्चे लोग न तो सरकारों से सुरक्षा माँगते हैं और न ही किसी धमकी से घबराते हैं | कबीर ने न तो किसी 'उत्सव' के निमंत्रण का इंतज़ार किया और न धमकियों की परवाह की | लुकाठी लेकर बाज़ार में खड़े होकर गरजते रहे, पंजाबी के कवि पाश को क्या पता नहीं था कि उसकी जान को खतरा है? इंदिरा गाँधी को भी कुछ लोगों ने सलाह दी थी कि वे अपनी सुरक्षा से सिक्ख कर्मचारियों को हटा दें मगर उन्होंने इसे एक बचकानी बात माना | गाँधी जी की सभा में बम फेंका गया फिर भी न तो उन्होंने कोई सुरक्षा प्रबंध किए और न ही अपने कार्यक्रम में कोई परिवर्तन किया | मीरा को तो राणा ने साफ़ धमकी दे ही रखी थी पर क्या मीरा ने साधु संगत छोड़ दी या गिरधर गोपाल से नाता तोड़ लिया? रुश्दी का यह नाटक चर्चा में रहने के लिए है जैसे कि राखी सावंत, विपाशा बसु, पूनम पांडे बोलें तो खबर और न बोलें तो खबर | दीपिका रणवीर के साथ घूमे तो लोगों को चैन नहीं और यदि रणवीर उसके पैर छू ले तो भी हाय-तौबा | और लोग भी कुछ तो कहेंगे ही चाहे रुश्दी आए या नहीं आए |
और भैया, यदि यहाँ के साहित्य प्रेमियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रुश्दी से मिलने वाले साहित्यिक और शालीनता के मार्ग-दर्शन के अभाव का इतना ही दुःख है और रुश्दी भारतीय साहित्य का कोई मार्ग-दर्शन करना ही चाहते हैं तो कोई गुरु-मन्त्र अब लिख कर भिजवा दें | किसने मना किया है?
तोताराम ने अपना ट्वीट-पत्र हमारे हाथ से छीन लिया और बोला- बहुत हो गई बकवास, अब चाय तो बनवा ले |
२३-१-२०१२
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