हमने तोताराम से प्रश्न किया- तोताराम, यह देश सुनते हैं, प्राचीन काल में एक विकसित देश था मगर अब आजादी के बाद साठ से भी अधिक वर्ष बीत गए मगर यह विकासशील ही बना हुआ है तो फिर विकसित कब होगा?
तोताराम ने कहा- देखो, विकासशील बने रहने में गति है । यदि विकसित हो गया तो गति रुक जाएगी और पतन शुरु हो जाएगा । अब देख लो ना, जो देश विकसित हो चुके अब पतन की ओर जा रहे हैं । योरोपीय यूनियन कर्ज़ा दे रही है, बेल-आउट पैकेज दिए जा रहे हैं । मगर बधिया ऐसी बैठी कि उठने का नाम ही नहीं ले रही है । इससे तो हम विकासशील अच्छे जो रेंग तो रहे हैं ।
और फिर सोच 'शील' को त्यागना कहाँ तक उचित है? भले ही कुछ भी हो जाए मगर महान लोग और महान देश कभी 'शील' को नहीं छोड़ते । यह बात और है कि 'प्रगतिशील' होकर घोटालों के गड्ढे में गिर पड़ें या पंचशील के चक्कर में चीन से पिट जाएँ या पाकिस्तान घुसपैठ करे या चीन अरुणाचल पर दावा ठोंकने लगे या पृथ्वीराज की तरह बंदी बनाकर काबुल-कंधार ले जाए जाएँ और आँखें ही फोड़ दी जाएँ ।
हमने कहा- लेकिन अपने कलाम साहब तो कह रहे थे कि २०२० तक विकसित हो जाएँगे । अब २०२० में देर ही कितनी है? बस अगले पे-कमीशन के आने तक की बात ही तो है ।
तोताराम ने कहा- कलाम साहब आशावादी व्यक्ति हैं और चाहते हैं कि लोग निराश न हों इसलिए हिम्मत बँधा रहे हैं वैसे अभी तक तो उस विकास की कोई झलक भी दिखाई नहीं दे रही है । यदि घोटालों का साइज़ देखें तो कह सकते हैं कि देश विकसित हो रहा है । पहले जितना जी.डी.पी. हुआ करता था उतने का तो छोटा-मोटा मंत्री या मुख्यमंत्री घोटाला कर जाता है । और हर दिन घोटाले का साइज़ बढ़ता ही जा रहा है । इसे चाहे तो विकास मान ले ।
मुझे तो यह देश विकासशील नहीं बल्कि एक 'पिछड़न शील' देश है । पिछड़ता ही जा रहा है । स्वतंत्रता के समय थोड़े से लोग पिछड़े या अविकसित थे जिन्हें आरक्षण देकर ऊपर उठाने की योजना थी । अम्बेडकर भी सोचते थे कि दस साल में यह काम हो जाएगा । मगर साठ साल में भी गाड़ी आगे बढ़ने की बजाय पीछे ही खिसकती जा रही है । जिनको आरक्षण दिया गया वे तो आगे बढ़े ही नहीं बल्कि और नए-नए लोग पिछड़े बनते जा रहे हैं । अटल जी ने चुनाव के समय 'अन्य पिछड़े' खोज लिए । अब दलितों के अलावा 'महा-दलितों' का भी पता चला है । दूध, खेती और पशुपालन का अच्छा-भला धंधा करने वाले गूजर भी इतने पिछड़ गए कि रेल की पटरियों पर रहना-खाना करने की नौबात आ गई ।
यहाँ के भारतीयों को मानवता की सेवा करने वाले पादरियों और अंग्रेज बहादुर ने विकसित बनाने के लिए ईसाई बनाया । जब मुसलमान यहाँ आए तो वे शासक जाति के थे और इसी आधार पर विकसित भी हो गए । मगर अब पिछड़ गए । जैनियों के आदिदेव राजा थे और जैन लोग अच्छे व्यापारी और समृद्ध थे । बौद्ध-धर्म के प्रवर्तक भी राजा थे । बौद्ध भी पिछड़े नहीं माने गए थे । सरदार लोग तो खैर मेहनती हैं और अपनी मेहनत के झंडे भारत ही नहीं, विदेशों में भी गाड़े । कोई भी सरदार भिखारी नहीं मिलता था मगर लोकतंत्र और जन-कल्याण के इन मसीहाओं के प्रयत्नों से वे भी अब पिछड़ गए । और अब इन्हें अल्पसंख्यकों के नाम से विशेष पैकेज देना पड़ रहा है । अब जब यह हाल है तो फिर विकसित देश बनने की बात तो भूल जा । यदि विकासशील का दर्ज़ा ही बना रहे तो बड़ी बात है । जिस तरह से गरीब, बेकार, कुपोषित बढ़ रहे हैं, गरीब-अमीर का अन्तर बढ़ रहा है उस हिसाब से तो मामला घाटे में अर्थात माइनस में चला जाएगा ।
हमने कहा- तोताराम, तू समझदार है, ज्ञानी है, दुनिया भर की ऊँच-नीच जानता है, तेरे पास सारे आँकड़े हैं । कुछ तो सोच कि यह देश पिछडने की बजाय धीरे-धीरे ही सही आगे बढ़े ।
हमारी इस प्रशंसा से लगा कि तोताराम का आकार कुछ बढ़ने लगा है । अगर थोड़ी और प्रशंसा की तो शायद फूलकर कुप्पा हो जाए । कहने लगा- मास्टर, इस संसार में सब कुछ है । यदि कारण है तो कार्य भी है । बीमारी है तो इलाज़ भी है, चोंच है तो चुग्गा भी है । बस, देखने वाली दृष्टि, समझने वाली बुद्धि और निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए ।
अब हमारी भी उत्सुकता बढ़ गई, आग्रह किया कि बता तो सही उपाय । जब उपाय का पता चलेगा तो उस पर आचरण करने वाले भी पैदा हो जाएँगे ।
बोला- यदि कट्टर पंथी मानें तो जितने भी पिछड़े, दलित, महादलित, अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति-जन जाति, मुसलमान, सिक्ख, पारसी, बौद्ध, ईसाई हैं सब को पकड़ कर उनकी खोपड़ी घुटा दो, जनेऊ पहना दो, ब्राह्मण बना दो फिर देखो कि कैसे 'पिछड़-प्रूफ' बन जाते हैं । भले ही भूखे मरें, अपने राज्य से डरा कर भगा दिए जाएँ, बेकार हों, कुपोषित हों, अशिक्षित हों, प्रताड़ित हों, भीख माँगते हों, जीमने के न्यौते की बाट देखते हों, बी.पी.एल. का कार्ड न बने- कुछ भी हो जाए मगर पिछड़ नहीं सकते और न ही अल्पसंख्यक बन सकते ।
हमने कहा- तोताराम, बात तो तुम्हारी ठीक है मगर फिलहाल वोट बैंक के हिसाब से फिट नहीं बैठ रही है ।
६-२-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
तोताराम ने कहा- देखो, विकासशील बने रहने में गति है । यदि विकसित हो गया तो गति रुक जाएगी और पतन शुरु हो जाएगा । अब देख लो ना, जो देश विकसित हो चुके अब पतन की ओर जा रहे हैं । योरोपीय यूनियन कर्ज़ा दे रही है, बेल-आउट पैकेज दिए जा रहे हैं । मगर बधिया ऐसी बैठी कि उठने का नाम ही नहीं ले रही है । इससे तो हम विकासशील अच्छे जो रेंग तो रहे हैं ।
और फिर सोच 'शील' को त्यागना कहाँ तक उचित है? भले ही कुछ भी हो जाए मगर महान लोग और महान देश कभी 'शील' को नहीं छोड़ते । यह बात और है कि 'प्रगतिशील' होकर घोटालों के गड्ढे में गिर पड़ें या पंचशील के चक्कर में चीन से पिट जाएँ या पाकिस्तान घुसपैठ करे या चीन अरुणाचल पर दावा ठोंकने लगे या पृथ्वीराज की तरह बंदी बनाकर काबुल-कंधार ले जाए जाएँ और आँखें ही फोड़ दी जाएँ ।
हमने कहा- लेकिन अपने कलाम साहब तो कह रहे थे कि २०२० तक विकसित हो जाएँगे । अब २०२० में देर ही कितनी है? बस अगले पे-कमीशन के आने तक की बात ही तो है ।
तोताराम ने कहा- कलाम साहब आशावादी व्यक्ति हैं और चाहते हैं कि लोग निराश न हों इसलिए हिम्मत बँधा रहे हैं वैसे अभी तक तो उस विकास की कोई झलक भी दिखाई नहीं दे रही है । यदि घोटालों का साइज़ देखें तो कह सकते हैं कि देश विकसित हो रहा है । पहले जितना जी.डी.पी. हुआ करता था उतने का तो छोटा-मोटा मंत्री या मुख्यमंत्री घोटाला कर जाता है । और हर दिन घोटाले का साइज़ बढ़ता ही जा रहा है । इसे चाहे तो विकास मान ले ।
मुझे तो यह देश विकासशील नहीं बल्कि एक 'पिछड़न शील' देश है । पिछड़ता ही जा रहा है । स्वतंत्रता के समय थोड़े से लोग पिछड़े या अविकसित थे जिन्हें आरक्षण देकर ऊपर उठाने की योजना थी । अम्बेडकर भी सोचते थे कि दस साल में यह काम हो जाएगा । मगर साठ साल में भी गाड़ी आगे बढ़ने की बजाय पीछे ही खिसकती जा रही है । जिनको आरक्षण दिया गया वे तो आगे बढ़े ही नहीं बल्कि और नए-नए लोग पिछड़े बनते जा रहे हैं । अटल जी ने चुनाव के समय 'अन्य पिछड़े' खोज लिए । अब दलितों के अलावा 'महा-दलितों' का भी पता चला है । दूध, खेती और पशुपालन का अच्छा-भला धंधा करने वाले गूजर भी इतने पिछड़ गए कि रेल की पटरियों पर रहना-खाना करने की नौबात आ गई ।
यहाँ के भारतीयों को मानवता की सेवा करने वाले पादरियों और अंग्रेज बहादुर ने विकसित बनाने के लिए ईसाई बनाया । जब मुसलमान यहाँ आए तो वे शासक जाति के थे और इसी आधार पर विकसित भी हो गए । मगर अब पिछड़ गए । जैनियों के आदिदेव राजा थे और जैन लोग अच्छे व्यापारी और समृद्ध थे । बौद्ध-धर्म के प्रवर्तक भी राजा थे । बौद्ध भी पिछड़े नहीं माने गए थे । सरदार लोग तो खैर मेहनती हैं और अपनी मेहनत के झंडे भारत ही नहीं, विदेशों में भी गाड़े । कोई भी सरदार भिखारी नहीं मिलता था मगर लोकतंत्र और जन-कल्याण के इन मसीहाओं के प्रयत्नों से वे भी अब पिछड़ गए । और अब इन्हें अल्पसंख्यकों के नाम से विशेष पैकेज देना पड़ रहा है । अब जब यह हाल है तो फिर विकसित देश बनने की बात तो भूल जा । यदि विकासशील का दर्ज़ा ही बना रहे तो बड़ी बात है । जिस तरह से गरीब, बेकार, कुपोषित बढ़ रहे हैं, गरीब-अमीर का अन्तर बढ़ रहा है उस हिसाब से तो मामला घाटे में अर्थात माइनस में चला जाएगा ।
हमने कहा- तोताराम, तू समझदार है, ज्ञानी है, दुनिया भर की ऊँच-नीच जानता है, तेरे पास सारे आँकड़े हैं । कुछ तो सोच कि यह देश पिछडने की बजाय धीरे-धीरे ही सही आगे बढ़े ।
हमारी इस प्रशंसा से लगा कि तोताराम का आकार कुछ बढ़ने लगा है । अगर थोड़ी और प्रशंसा की तो शायद फूलकर कुप्पा हो जाए । कहने लगा- मास्टर, इस संसार में सब कुछ है । यदि कारण है तो कार्य भी है । बीमारी है तो इलाज़ भी है, चोंच है तो चुग्गा भी है । बस, देखने वाली दृष्टि, समझने वाली बुद्धि और निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए ।
अब हमारी भी उत्सुकता बढ़ गई, आग्रह किया कि बता तो सही उपाय । जब उपाय का पता चलेगा तो उस पर आचरण करने वाले भी पैदा हो जाएँगे ।
बोला- यदि कट्टर पंथी मानें तो जितने भी पिछड़े, दलित, महादलित, अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति-जन जाति, मुसलमान, सिक्ख, पारसी, बौद्ध, ईसाई हैं सब को पकड़ कर उनकी खोपड़ी घुटा दो, जनेऊ पहना दो, ब्राह्मण बना दो फिर देखो कि कैसे 'पिछड़-प्रूफ' बन जाते हैं । भले ही भूखे मरें, अपने राज्य से डरा कर भगा दिए जाएँ, बेकार हों, कुपोषित हों, अशिक्षित हों, प्रताड़ित हों, भीख माँगते हों, जीमने के न्यौते की बाट देखते हों, बी.पी.एल. का कार्ड न बने- कुछ भी हो जाए मगर पिछड़ नहीं सकते और न ही अल्पसंख्यक बन सकते ।
हमने कहा- तोताराम, बात तो तुम्हारी ठीक है मगर फिलहाल वोट बैंक के हिसाब से फिट नहीं बैठ रही है ।
६-२-२०१२
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और वोट बैंक के आगे सब कुछ खत्म.
ReplyDeletepadhte padhte chehre par muskan aa gai. "pichhad prof" bahut khoob.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा | आप रामचरितमानस पढ़ रहे हैं . अच्छी बात है | इसे बार-बार पढेंगे तो अपने आप ही अर्थ स्पष्ट होता जाएगा | फिर भी यदि संभव हो तो गीता प्रेस की टीका सहित मँगवा लीजिए | हो सकता है कहीं आपके वहाँ यु.के. में ही उपलब्ध हो जाए |
ReplyDeleteआपके चेहरे पर मुस्कान आ गई पढ़कर . और क्या चाहिए |
रमेश जोशी