तोताराम के आते ही हमने उसके सामने चाय के साथ लड्डू का एक टुकड़ा रखते हुए कहा- ले, सेलिब्रेट कर ।
खुश होने की बजाय तोताराम उफन पड़ा- क्या सेलिब्रेट करूँ? क्रिकेट में भारत का इंग्लैण्ड के बाद अब आस्ट्रेलिया में सूपड़ा साफ़ या भारत का फ़्रांस के साथ ५०४ अरब रुपए का विमान समझौता?
हमने कहा- ये सब अपने मतलब की बातें नहीं हैं । तू तो डी.ए. की सात परसेंट की एक नई किस्त सेलिब्रेट कर । रात को ही न्यूज थी । अभी अखबार आया जाता है, विश्वास नहीं हो तो पढ़कर कन्फर्म कर लेना ।
'अच्छा'- कहते हुए तोताराम झूमने सा लगा और फिर एक तरफ झुकता हुआ गिरने को हुआ । हमने उसे थामकर वहीं चबूतरे पर लिटाया और पोती को जल्दी से ब्लड प्रेशर नापने वाला यंत्र लाने को कहा तो तोताराम ने इशारे से मनाकर दिया । हमें लगा कोई बड़े खतरे की बात नहीं है । फिर भी कहा- कुछ बोल भी तो सही जिससे कुछ तसल्ली हो ।
तो बोला- एम.एम. का पाठ.... एम.एम.
हमनें सोचा- यह महामृत्युंजय का शोर्ट फॉर्म होगा, सो कहा-ठीक है, अभी शुरु करते हैं महामृत्युंजय का पाठ ।
तोताराम ने गर्दन हिला दी और चुप हो गया । तब तक पत्नी चाय ले आई । तोताराम ने चाय पी और खखार कर उठ बैठा ।
हमने सहानुभूति दिखाते हुए कहा- क्या पहले भी कभी ऐसा हुआ है? आज ही किसी अच्छे से डाक्टर के पास चलते हैं और पूरा चेकप कराते हैं । लापरवाही ठीक नहीं ।
तोताराम ने धीरे-धीरे बोलते हुए कहा- वैसे तो सब कुछ ठीक है । पर अचानक डी.ए. की किस्त की सुनकर आँखों के आगे अँधेरा छा गया और चक्कर आ गया ।
हमने कहा- खुश होने की बात पर चक्कर? तू भी अजीब है ।
बोला- अजीब का पता तो जब थोड़ी देर में लाला की दुकान पर जाएगा तब पता चलेगा । उसने पहले से ही पन्द्रह प्रतिशत भाव बढ़ाकर तैयार कर लिए होंगे । मीडिया को देने से पहले सरकार लाला को खबर देती है । सात प्रतिशत महँगाई बढ़ने का मतलब है हमारी ताकत पन्द्रह प्रतिशत कम होना । अब सोच ऐसे ही बैठे बिठाए साल में दो बार महँगाई भत्ता बढ़ता है और अपनी रिटायरमेंट की पोस्ट ऑफिस में जमा राशि की ताकत तीस प्रतिशत कम हो जाती है ।
हमने कहा- लेकिन महँगाई बढ़ने पर भत्ता भी तो बढ़ता है । क्या फर्क पड़ता है?
तोताराम ने ऐतराज़ किया- पड़ता है, बहुत फर्क पड़ता है । यह ठीक है कि कुछ नेताओं के चहेते, कुछ दादा टाइप, कुछ वोट बैंक के अम्मर बकरे सरकारी नौकरी में मौज कर रहे हैं, कुछ साहसी और नेताओं और अफसरों के चमचे घूस भी खाते हैं मगर अधिकतर ईमानदार कर्मचारी काम भी करते हैं, घर से दूर कठिन स्थानों में रहकर सेवा अंजाम दे रहे हैं । उनके लिए तो यह महँगाई भत्ते और वेतन आयोग का चक्कर ऐसी हड्डी है जिसे चबाते रहो और अपना ही खून चाटते रहो । यह बड़ा दुष्चक्र है । इसका कहीं अंत नहीं है । बस, समझो कि न तो मरीज़ ठीक होता है और न मरता है । डाक्टर और दवा वालों का धंधा चलता रहता है । जब नौकरी शुरु की थी तब जितना दूध लाते थे आज भी उतना ही दूध आता है । बस, फर्क इतना है कि अब पानी अधिक होता है । पानी तक भी ठीक है मगर अब तो उसके सिंथेटिक होने का भी खतरा रहता है यह एक प्रकार से नशीली चाय पिलाकर माल उड़ा ले जाने वाली हरकत है ।
और फिर तुमने कभी यह भी सोचा है कि जिन को इस वैश्वीकरण के समय में नौकरी या मज़दूरी नहीं मिलती, वे कहाँ जाएँ? । कौन सी सरकारी नौकरी है जो भत्ता बढ़ जाएगा । ऐसे लोगों के नाम पर जो अरबों-खरबों का दान-पुण्य करने वाली योजनाएँ बनती हैं उनका पैसा भी अधिकतर नेता लोग ही खा जाते हैं । ऐसे गरीब लोग कहाँ जाएँ? जब यह देश आज की तरह तथाकथित रूप से विकसित नहीं था तब कोई गरीब को दो मुट्ठी आटे से या और भी इसी तरह से कुछ मदद कर दिया करता था मगर अब तो हाल यह है कि बीस-तीस हज़ार रुपए महिने के कमाने वाले भी गिनकर रोटियाँ बनाते हैं । किसी की क्या मदद करेंगे । मेरे ख्याल से अपनी वह एक सौ रुपए महिने की नौकरी वाला समय ही अच्छा था । आज जब सरकार के आँकडे बताते हैं कि भारत में प्रतिव्यक्ति आय पचास हजार सालाना हो गई तो उसके साथ-साथ किसानों की आत्महत्या और भूख और कुपोषण से मरने के भी समाचार कम नहीं होते ।
यदि यह मुक्त अर्थव्यवस्था इसी गति से बढती चली गई तो वह दिन दूर नहीं जब हम बाज़ार से पाँच किलो आटा और पाँव भर सब्जी लेकर आएँगे और कोई उसे रस्ते में ही लूट लेगा । जहाँ तक कानून व्यवस्था की बात है तो वह हमेशा एक जैसी ही रहती है जैसी आज वैसी ही कल । बड़े लोगों को तो खैर, तब भी सुरक्षा मिल जाएगी पर अपना क्या होगा? हम तो कहते हैं भैय्या, छोड़ो यह महँगाई भत्ता और पे-कमीशन, क्रिकेट, कोकाकोला, मोबाइल, ट्विटर और छम्मक-छल्लो । बस, आप तो यह कर दो कि हर पेट को रोटी, पढ़ने वाले को स्कूल और मरीज को इलाज मिल जाए ।
हमारे पास तोताराम के प्रश्नों और शिकायतों का तो कोई हल नहीं था मगर फिर भी बात बदलकर माहौल ठीक करने के लिए कहा- तू वह महामृत्युंजय के जाप वाली क्या बात कर रहा था?
बोला- एम.एम. से मेरा मतलब मनमोहन का जाप करने से था क्योंकि देश में इस संवेदनहीन मुक्त बाजार की गंगा को लाने वाले भागीरथ वे ही हैं । क्या पता, जाप से प्रसन्न होकर केवल 'मन-मोहन' ही नहीं, कुछ 'तन-मोहन' का भी इंतज़ाम कर दें । वैसे पता तो जब कुछ होगा तभी चलेगा क्योंकि शक्ल और शब्दों से तो पता चलता नहीं कि रो रहे हैं या हँस रहे हैं? कृपा करेंगे या क़त्ल?
खैर, एक छोटी सी क्षणिका सुन ।
हमने पूछा- किसकी है?
बोला- खाकसार की है ।
हमने तोताराम को बहुत सी कविताएँ सुनाई हैं तो फिर उसे मना कैसे कर सकते थे और फिर कुछ उत्सुकता भी थी । क्षणिका इस प्रकार है-
मनमोहन जी,
आप सात प्रतिशत महँगाई भत्ते की खबर उड़ा देते हैं
और परचून वाले लालजी पन्द्रह प्रतिशत महँगाई बढ़ा देते हैं ।
आप देने वाले और वे लेने वाले,
हमें इस लेन-देन के बीच फँसाना छोड़ दीजिए
हो सके तो
हमारे इस महँगाई भत्ते को लालाजी की दुकान से जोड़ दीजिए ।
२-२-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
खुश होने की बजाय तोताराम उफन पड़ा- क्या सेलिब्रेट करूँ? क्रिकेट में भारत का इंग्लैण्ड के बाद अब आस्ट्रेलिया में सूपड़ा साफ़ या भारत का फ़्रांस के साथ ५०४ अरब रुपए का विमान समझौता?
हमने कहा- ये सब अपने मतलब की बातें नहीं हैं । तू तो डी.ए. की सात परसेंट की एक नई किस्त सेलिब्रेट कर । रात को ही न्यूज थी । अभी अखबार आया जाता है, विश्वास नहीं हो तो पढ़कर कन्फर्म कर लेना ।
'अच्छा'- कहते हुए तोताराम झूमने सा लगा और फिर एक तरफ झुकता हुआ गिरने को हुआ । हमने उसे थामकर वहीं चबूतरे पर लिटाया और पोती को जल्दी से ब्लड प्रेशर नापने वाला यंत्र लाने को कहा तो तोताराम ने इशारे से मनाकर दिया । हमें लगा कोई बड़े खतरे की बात नहीं है । फिर भी कहा- कुछ बोल भी तो सही जिससे कुछ तसल्ली हो ।
तो बोला- एम.एम. का पाठ.... एम.एम.
हमनें सोचा- यह महामृत्युंजय का शोर्ट फॉर्म होगा, सो कहा-ठीक है, अभी शुरु करते हैं महामृत्युंजय का पाठ ।
तोताराम ने गर्दन हिला दी और चुप हो गया । तब तक पत्नी चाय ले आई । तोताराम ने चाय पी और खखार कर उठ बैठा ।
हमने सहानुभूति दिखाते हुए कहा- क्या पहले भी कभी ऐसा हुआ है? आज ही किसी अच्छे से डाक्टर के पास चलते हैं और पूरा चेकप कराते हैं । लापरवाही ठीक नहीं ।
तोताराम ने धीरे-धीरे बोलते हुए कहा- वैसे तो सब कुछ ठीक है । पर अचानक डी.ए. की किस्त की सुनकर आँखों के आगे अँधेरा छा गया और चक्कर आ गया ।
हमने कहा- खुश होने की बात पर चक्कर? तू भी अजीब है ।
बोला- अजीब का पता तो जब थोड़ी देर में लाला की दुकान पर जाएगा तब पता चलेगा । उसने पहले से ही पन्द्रह प्रतिशत भाव बढ़ाकर तैयार कर लिए होंगे । मीडिया को देने से पहले सरकार लाला को खबर देती है । सात प्रतिशत महँगाई बढ़ने का मतलब है हमारी ताकत पन्द्रह प्रतिशत कम होना । अब सोच ऐसे ही बैठे बिठाए साल में दो बार महँगाई भत्ता बढ़ता है और अपनी रिटायरमेंट की पोस्ट ऑफिस में जमा राशि की ताकत तीस प्रतिशत कम हो जाती है ।
हमने कहा- लेकिन महँगाई बढ़ने पर भत्ता भी तो बढ़ता है । क्या फर्क पड़ता है?
तोताराम ने ऐतराज़ किया- पड़ता है, बहुत फर्क पड़ता है । यह ठीक है कि कुछ नेताओं के चहेते, कुछ दादा टाइप, कुछ वोट बैंक के अम्मर बकरे सरकारी नौकरी में मौज कर रहे हैं, कुछ साहसी और नेताओं और अफसरों के चमचे घूस भी खाते हैं मगर अधिकतर ईमानदार कर्मचारी काम भी करते हैं, घर से दूर कठिन स्थानों में रहकर सेवा अंजाम दे रहे हैं । उनके लिए तो यह महँगाई भत्ते और वेतन आयोग का चक्कर ऐसी हड्डी है जिसे चबाते रहो और अपना ही खून चाटते रहो । यह बड़ा दुष्चक्र है । इसका कहीं अंत नहीं है । बस, समझो कि न तो मरीज़ ठीक होता है और न मरता है । डाक्टर और दवा वालों का धंधा चलता रहता है । जब नौकरी शुरु की थी तब जितना दूध लाते थे आज भी उतना ही दूध आता है । बस, फर्क इतना है कि अब पानी अधिक होता है । पानी तक भी ठीक है मगर अब तो उसके सिंथेटिक होने का भी खतरा रहता है यह एक प्रकार से नशीली चाय पिलाकर माल उड़ा ले जाने वाली हरकत है ।
और फिर तुमने कभी यह भी सोचा है कि जिन को इस वैश्वीकरण के समय में नौकरी या मज़दूरी नहीं मिलती, वे कहाँ जाएँ? । कौन सी सरकारी नौकरी है जो भत्ता बढ़ जाएगा । ऐसे लोगों के नाम पर जो अरबों-खरबों का दान-पुण्य करने वाली योजनाएँ बनती हैं उनका पैसा भी अधिकतर नेता लोग ही खा जाते हैं । ऐसे गरीब लोग कहाँ जाएँ? जब यह देश आज की तरह तथाकथित रूप से विकसित नहीं था तब कोई गरीब को दो मुट्ठी आटे से या और भी इसी तरह से कुछ मदद कर दिया करता था मगर अब तो हाल यह है कि बीस-तीस हज़ार रुपए महिने के कमाने वाले भी गिनकर रोटियाँ बनाते हैं । किसी की क्या मदद करेंगे । मेरे ख्याल से अपनी वह एक सौ रुपए महिने की नौकरी वाला समय ही अच्छा था । आज जब सरकार के आँकडे बताते हैं कि भारत में प्रतिव्यक्ति आय पचास हजार सालाना हो गई तो उसके साथ-साथ किसानों की आत्महत्या और भूख और कुपोषण से मरने के भी समाचार कम नहीं होते ।
यदि यह मुक्त अर्थव्यवस्था इसी गति से बढती चली गई तो वह दिन दूर नहीं जब हम बाज़ार से पाँच किलो आटा और पाँव भर सब्जी लेकर आएँगे और कोई उसे रस्ते में ही लूट लेगा । जहाँ तक कानून व्यवस्था की बात है तो वह हमेशा एक जैसी ही रहती है जैसी आज वैसी ही कल । बड़े लोगों को तो खैर, तब भी सुरक्षा मिल जाएगी पर अपना क्या होगा? हम तो कहते हैं भैय्या, छोड़ो यह महँगाई भत्ता और पे-कमीशन, क्रिकेट, कोकाकोला, मोबाइल, ट्विटर और छम्मक-छल्लो । बस, आप तो यह कर दो कि हर पेट को रोटी, पढ़ने वाले को स्कूल और मरीज को इलाज मिल जाए ।
हमारे पास तोताराम के प्रश्नों और शिकायतों का तो कोई हल नहीं था मगर फिर भी बात बदलकर माहौल ठीक करने के लिए कहा- तू वह महामृत्युंजय के जाप वाली क्या बात कर रहा था?
बोला- एम.एम. से मेरा मतलब मनमोहन का जाप करने से था क्योंकि देश में इस संवेदनहीन मुक्त बाजार की गंगा को लाने वाले भागीरथ वे ही हैं । क्या पता, जाप से प्रसन्न होकर केवल 'मन-मोहन' ही नहीं, कुछ 'तन-मोहन' का भी इंतज़ाम कर दें । वैसे पता तो जब कुछ होगा तभी चलेगा क्योंकि शक्ल और शब्दों से तो पता चलता नहीं कि रो रहे हैं या हँस रहे हैं? कृपा करेंगे या क़त्ल?
खैर, एक छोटी सी क्षणिका सुन ।
हमने पूछा- किसकी है?
बोला- खाकसार की है ।
हमने तोताराम को बहुत सी कविताएँ सुनाई हैं तो फिर उसे मना कैसे कर सकते थे और फिर कुछ उत्सुकता भी थी । क्षणिका इस प्रकार है-
मनमोहन जी,
आप सात प्रतिशत महँगाई भत्ते की खबर उड़ा देते हैं
और परचून वाले लालजी पन्द्रह प्रतिशत महँगाई बढ़ा देते हैं ।
आप देने वाले और वे लेने वाले,
हमें इस लेन-देन के बीच फँसाना छोड़ दीजिए
हो सके तो
हमारे इस महँगाई भत्ते को लालाजी की दुकान से जोड़ दीजिए ।
२-२-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
वह दिन अधिक दूर नहीं जिसकी आशंका जताई है.
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