Feb 21, 2012

तोताराम - कंडीशंस अप्लाई


कंडीशंस अप्लाई

सोच रहे थे कि बैंक में जाकर पासबुक पूरी करवा लें और यह भी पता कर आएँ कि नया डी.ए. इस महिने लग रहा है या नहीं मगर क्या करें,आज तोताराम नहीं आया । और अकेले जाने का मन नहीं किया सो तोताराम को साथ लेने उसके घर पहुँचे गए । पता चला कि आज तोताराम अपने कमरे में ही बंद है । न नहाया और न नाश्ता ही किया है । अजीब सा लगा ।

दरवाजा खुलवाया तो देखा तोताराम कुछ लिखने में व्यस्त है । पास में ही कैलक्यूलेटर पड़ा है और बीसियों कागज इधर-उधर बिखरे पड़े हैं । पूछा- क्या चक्कर है ? किसी को वेलेंटाइन डे का सन्देश लिख रहा है क्या ? इतना कन्फ्यूजन तो किसी पहले प्रेमपत्र के लेखन में भी नहीं होता है ।

तोताराम ने कोई उत्तर नहीं दिया मगर हमने अपने अनुमान जारी रखे,पूछा- क्या यू.पी. के चुनावों का हिसाब लगा रहा है कि राहुल बाबा कितने सफल होंगे या नए डी. ए. का कैलक्यूलेशन कर रहा है या कहीं अपने जन्म तिथि बदलने की कोई योजना बना रहा है कि अपने को सत्तर से अस्सी का सिद्ध करके एक ही झटके में अपनी पेंशन एक चौथाई बढ़वा लेगा ?

तोताराम ने कागज फेंक दिए और हमारी तरफ हिकारत की दृष्टि से देखते हुए बोला- बस,वही मास्टर वाली सोच । डी.ए. और पेंशन से आगे जाता ही नहीं । अरे,आज का अखबार देखा कि नहीं ? सी.बी.आई. के डाइरेक्टर ने बताया है कि भारत का २४ लाख करोड़ से भी ज्यादा रुपया स्विस बैंक में है । अन्य विदेशी बैंकों और घरेलू तहखानों में पड़े धन का हिसाब तो उन्होंने लगाया ही नहीं है । खैर,उसका हिसाब तो बाद में देखा जाएगा । अभी तो मैं इस २४ लाख करोड़ वाले का हिसाब लगा रहा हूँ कि अपने हिस्से में कितना आएगा ?

कभी इतना बड़ा हिसाब लगाया नहीं ना सो बार-बार शून्य लगाते,गिनते सिर में चक्कर सा आने लगता है । लगता है धरती घूम रही है । करोड़-अरब और खरब के बाद शंख तक आते-आते दिमाग में ढपोर शंख सा बजने लगता है । रामदेव तो खैर किसी खास योगासन के बल पर इससे भी बड़ा हिसाब लगाकर भी नोर्मल है । ये अधिकारी लोग भी विदेशी तरीके से गिनती करने लगते हैं । सीधे -सीधे तुलसीदास जी की तरह नहीं कह देते कि 'पदम अठारह जूथप बंदर' । पहले जब अडवाणी जी ने हिसाब लगाया था तो साफ बता दिया था कि काला धन आ जाने के बाद किसी को ३० वर्ष तक टेक्स नहीं लगाना पड़ेगा । अब भी सी.बी.आई. के डाइरेक्टर बता देते कि एक भारतीय के हिस्से में इतना रुपया आएगा तो कम से कम मेरा आधा दिन तो खराब नहीं होता ।

तभी तोताराम की पत्नी चाय ले आई । चाय की चुस्की लेकर हमने कहा- तोताराम,मान ले यदि यह असंभव संभव हो भी गया तो तू क्या समझता है कि तुझे तेरा हिस्सा मिल जाएगा ? फिर इस धन से कल्याणकारी योजनाएँ बनेगीं और फिर आधे से ज्यादा धन काला होकर फिर स्विस बैंक में जाएगा । जब इसे वहीं रहना है तो क्यों लाने,जमा करवाने के चक्कर में पड़ा जाए । बार-बार रुपए को डालर में बदलने में भी तो कम से कम दस प्रतिशत का फर्क पड़ जाता है ।

तोताराम ने कहा- भले ही मुझे अपना हिस्सा न मिले पर धन तो आना ही चाहिए क्योंकि इन देशों का कोई भरोसा नहीं ।

हमने कहा- तोताराम ऐसा नहीं सोचना चाहिए । जिन देशों का पैसा वहाँ रखा है वे अविकसित या विकासशील देश हैं और जहाँ रखा है वे सब विकसित देश हैं । उन्हें क्या कमी है जो बेईमानी करेंगे ?

तोताराम ने पलटी मारी- इन विकसित देशों की भी हालत बहुत खराब है । तभी न पहले हवाई जहाज देने में नाटक करने वाले इंग्लैड,अमरीका,फ़्रांस सब रेहड़ी पर हवाई जहाज रखे दिल्ली के चक्कर लगा रहे हैं । पैसा देखकर जब अमीरी में ही दिमाग ठिकाने नहीं रहता तो आज कल तो इन देशों में मंदी चल रही है । कहीं यह न कह दें हमारे यहाँ कोई कुछ नहीं रखकर गया । काले धन वाले भी फिर छाती ठोककर कुछ नहीं कह सकेंगे । और अब तो जर्मनी ने भी चीन से यूरोप की सहायता करने के लिए साफ़ साफ़ गुहार कर दी है । कहीं उनकी नज़र हमारे पैसे पर ना पड़ जाये ।

हमने कहा- तोताराम,फिर भी अन्तराष्ट्रीय स्तर पर इतना विश्वास तो करना ही पड़ता है ।

तोताराम बोला- बहुत देखा है इन विश्वसनीयों को । प्लासी के युद्ध से पहले सेठ अमीचंद से समझौता किया था मगर युद्ध जीतते ही फिर गए अपनी जुबान से । और अमीचंद को आत्महत्या करनी पड़ी । ठीक है,अमीचंद ने गद्दारी की थी भारत से मगर समझौता तो समझौता ही होता हैं ना । और फिर ये सब काम अंग्रेजी में करते हैं । ऐसी अंग्रेजी लिखी होगी कि हमारे रामदेवों,लालुओं,मुलायमों और मायावतियों को कुछ समझ में नहीं आना । और यदि चिदंबरम और मनमोहन जी की मदद से कुछ समझ में आ भी गया तो कहीं,किसी कोने में,सूक्ष्मदर्शी यंत्र से भी न पढ़ी जा सकने वाली छपाई में,छपा हुआ दिखा देंगे- 'कंडीशंस अप्लाई' । और फिर उन कंडीशंस में देश की कंडीशन खराब हो जाएगी ।

बात तो तोताराम की ठीक ही है मगर जन-धन सेवकों को समझ में आए तब ना ।

१४-२-२०१२

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

4 comments:

  1. यही तो असली खेल है - कंडीशंस अप्लाई का.

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  2. आपके इस पोस्ट की चर्चा यहाँ पर है...

    http://tetalaa.nukkadh.com/2012/03/blog-post_20.html

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  3. बहुत सटीक व्यंग...

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