Feb 22, 2012

तोताराम की टी.डी.पी.


आज तोताराम कागजों का एक बण्डल लेकर हाज़िर हुआ और हमसे पढ़ने का आग्रह करने लगा मगर दूसरों का लिखा पढ़े वह भी लेखक होता है ? और आजकल चूँकि हम अपने को लेखक मानने लगे हैं सो उसका आग्रह अनसुना कर दिया और बड़े बेमन से कहा- तू ही सुना दे क्या लिखा है ?

तोताराम ने भी अधिक कष्ट नहीं किया और कहा- बात यह है कि मैनें एक पार्टी बनाई है ।
हमने कहा-पार्टियों की क्या कमी है पहले से ही ए. से जेड. तक सैंकडों जनता, समाज, लोक, शक्ति और कांग्रेस आदि पार्टियाँ हैं । तेरे एक और पार्टी बनाने से क्या फर्क पड़ जाएगा ? फिर भी बता दे क्योंकि तू बताए बिना तो मानेगा नहीं ।

उसने कहा- मेरी पार्टी का नाम होगा टी.डी.पी. ।

हमने कहा- इस नाम की पार्टी तो पहले से मौजूद है- तेलगू देशम पार्टी ।

बोला- है मगर यह तो शोर्ट फॉर्म है मेरी पार्टी का पूरा नाम है 'तोताराम दारू पार्टी' और उसका चुनाव चिह्न होगा 'बोतल' ।

हमने कहा- यह तो समाज विरोधी और अनैतिक है । शराब तो आत्मा और शरीर दोनों का नाश करती है । गाँधी जी ने भी कहा था कि यदि मैं एक दिन के लिए भी देश का डिक्टेटर बन जाऊँ तो शराब बंद करवा दूँगा ।

तोताराम कहने लगा- तभी तो नहीं मिला कोई भी पद । बस, राष्ट्रपिता बना कर खुश कर दिया और आजकल घर में पिता की कितनी चलती है, सब जानते हैं । राहुल गाँधी ने भी कुछ वर्षों पहले कहा था कि युवा कांग्रेस में शराब पर प्रतिबन्ध और खादी की अनिवार्यता रहेगी मगर क्या किसी ने मानी ? और अब तो २२ जनवरी २०१२ को खबर आई है कि कांग्रेस की चुनाव सामग्री भी दारू के कार्टनों में बंद होकर लखनऊ जा रही थी सो पुलिस और दारू समर्थक पीछे लग लिए ।

हमने कहा- मगर उनमें दारू थी तो नहीं ना ? लोग काला धन पूजा घर में भगवान की मूर्ति के नीचे रखते है । अवैध वस्तु सब्जी और फलों के बीच दबाकर ले जाई जाती है । अरे, दारू के खाली डिब्बे सस्ते में मिल गए होंगे सो उनमें रखकर ले गए । उनके मन में चोर होता तो ऐसा क्यों करते ?

बोला- यह एक तकनीक भी तो हो सकती है कि अगली बार जब वास्तव में ही दारू के कार्टनों में दारू ही ले जाई जाएगी तो लोग समझेंगे कि चुनाव सामग्री होगी और कोई कुछ शक नहीं करेगा । और पुलिस तो हर सत्ताधारी की सेवा करती है वरना और सब सूफी हैं क्या ? भैया, भले ही फिर चाहे पाँच साल हराम की खाएँ मगर चुनाव के दिनों में सभी पार्टियों के कार्यकर्ता हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं । यदि दो घूँट न लें तो अगले दिन उठना भी मुश्किल हो जाए । हाथी से भी दिन भर काम लेने के बाद शाम को एक बोतल रम की दी जाती है । और फिर दारू इतनी ही बुरी है तो कौन मना करता है सभी पार्टियाँ अपने-अपने राज्यों में कर दें बंद । और बंद करने से ही कौन सा फर्क पड़ जाएगा । गुजरात में दारू बंदी है मगर जब, जहाँ जिस ब्रांड की चाहो ले लो । बस, दो पैसे ज्यादा लगेंगे । वैसे दारू से ही तो एक्साइज़ आता है जिससे जन-कल्याण के कार्य किए जाते हैं ।

हमने कहा- क्या ख़ाक जनकल्याण होता है ? अरे, दारू पीने से जितने अपराध और बीमारियाँ होती उनके इलाज में ही आमदनी से ज्यादा खर्च हो जाता है । और फिर जब हमेशा दारू बुरी नहीं है तो फिर चुनाव के समय में ही क्या खास बुराई आ गई ? बिना दारू के ही जनता कौन सी बढ़िया सरकारें चुन लेगी ? चाहे दारू पीकर चुनो, चाहे बिना पिए; आने तो वही नागनाथ के भाई साँपनाथ । फिर जनता को दो-चार दिन के लिए ही सही अच्छी दारू तो मिलेगी ।

अब तो तोताराम उछल पड़ा, बोला- देख ले, आ गया ना मेरी ही राह पर । क्यों चिंता करता है, चाहे जितने प्रबंध करने का दिखावा कर लें मगर दारू-बल, धन-बल, परिवार-बल और बाहु-बल के प्रभाव में कोई अंतर नहीं आने वाला है ।

हमने कहा- मगर चुनाव आयोग तेरी ऐसी पार्टी को मान्यता नहीं देगा जो सीधे-सीधे दारू की बात करती है ।

बोला- क्यों नहीं देगा ? जब अल्प संख्यकों को आरक्षण की घूस दी जा रही है, लेपटोप का लालच दिया जा रहा है, टी.वी., मुफ्त बिजली और पानी की बात की जा रही है तो दारू में ही क्या खराबी है ? यह तो इस देश में सच्ची शांति, सम-भाव और तनाव मुक्तता लाएगी । दारू पीने वाले कभी भी महँगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन नहीं करते, एक ही प्याले में हिंदू और मुसलमान पी लेते हैं और सारी समस्याओं को दो पेग लगाते ही भूल जाते हैं । तभी इसे मधु कहा है । मधु से ही जीवन में मधुरता आएगी ।

हमने कहा- एक तो वैसे ही अब चुनाव होने वाले हैं तो पार्टी बनाने का क्या फायदा, दूसरे यदि तेरी इस पार्टी को मान्यता मिल भी गई तो एक भी सीट तुझे नहीं मिलने वाली क्योंकि नाम से ही क्या होता है वास्तव में तेरे पास मतदाताओं को दारू पिलाने के लिए पैसे हैं क्या ?

फिर भी तोताराम ने हिम्मत नहीं हारी,बोला- रामविलास के पास कौन से बीस एम.पी. हैं मगर दिल्ली में कार्यालय तो मिला हुआ है । क्या पता, मेरी पार्टी को भी दिल्ली में कार्यालय ही मिल जाए ?

हमने अब कुछ न कहना ही उचित समझा क्योंकि ऐसे आशावादी का कोई कुछ नहीं कर सकता ।

२४-१-२०१२
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

1 comment:

  1. आशावादी नहीं बल्कि प्रैक्टिकल हैं टीडीपी के संस्थापक.

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