Jan 24, 2024

विज्ञापन का बॉयकाट

  विज्ञापन का बॉयकाट 


आज सुबह तोताराम नहीं आया।  हो सकता है कोई और कारण रहा हो।  अयोध्या जाने का तो प्रश्न नहीं क्योंकि वहाँ तो सचिन की कार को ही पार्किंग की जगह नहीं मिली।  प्रतिष्ठितों की भीड़ में तोताराम को अयोध्या में कौन पूछता।चप्पे चप्पे पर तैनात पुलिस दस कोस पहले से ही हड़काकर भगा देती।  

लेकिन जैसे महान सेवक छुट्टी के दिन भी २०-२० घंटे काम करने से बाज नहीं आते वैसे ही तोताराम भी हमें रोज अपनी चाय-सेवा का अवसर दे ही देता है।   आज कोई ११ बजे आया।  आते ही बोला- लंच वंच कुछ नहीं करेंगे, बस प्राणप्रतिष्ठा का सीधा प्रसारण देखेंगे और मंचिंग करेंगे। 


हमने कहा- मंच पर तो मोदी जी, योगी जी, भागवत जी, आनंदी बेन, एक दो और ऐसे ही मनोनीत यजमान होंगे ।  जहां राष्ट्रपति और शंकराचार्य उपेक्षित हैं वहाँ हमें मंच पर कौन चढ़ने देगा ?


बोला- अपनी शेक्सपीयर के युग वाली अंग्रेजी को थोड़ा इम्प्रूव कर।  ‘मंचिंग’ का मतलब मंच पर चढ़ना नहीं होता है । मंचिंग का मतलब होता है-  ‘नो फॉर्मल लंच ओर डिनर’ ओनली पॉपकॉर्न, चिप्स, वेफर्स, चॉकलेट, आइसक्रीम, कोल्ड  ड्रिंक, चाय एटसेट्रा एटसेट्रा  । और इनका सेवन करते करते कोई मैच या फिल्म देखने जैसा कोई ऐसा ही नॉन-प्रॉडक्टिव काम ।


हमने कहा- लेकिन ये सब चीजें पोषणहीन, हानिकारक और महँगी, अराष्ट्रीय  और असांस्कृतिक हैं।  ये सब तो विज्ञापन के बल पर चल रहे हैं । यदि विज्ञापनों पर रोक लगा दी जाए तो सब ठीक हो जाए।


बोला- बिल्कुल ।तभी तो मेरी आज की ‘मन की बात’ का विषय है ‘बॉयकाट विज्ञापन’ . 

 

हमने कहा- यह बात तो ठीक है । गांधी जी ने बॉयकाट के बल पर अंग्रेज सरकार के घुटने टिकवा दिए थे । भारतीय खादी पहनना गर्व की बात समझने लगे तो मेनचेस्टर की कपड़े की मिलें बंद होने लगीं ।लेकिन बॉयकाट तो मालदीव का करना है । विज्ञापन का नहीं ।वैसे सबसे जरूरी बॉयकाट तो चीन से आयात का करना जरूरी है लेकिन उतनी हमारी हिम्मत और औकात नहीं । 

 

बोला- हम स्वतंत्र देश के नागरिक हैं । हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है । बॉयकाट और समर्थन सब अभिव्यक्ति ही तो हैं ।


हमने कहा- फिर भी विज्ञापन का पूरी तरह बॉयकाट संभव नहीं है । विज्ञापन के बिना गुड़ को गोबर और गोबर को गणेश बनाना संभव नहीं हो सकता । चोर को विज्ञापन के बल पर तो चाणक्य बनाया जा सकता है । विज्ञापन से ही तो छवि बनती है और छवि के बल पर चुनाव जीते जा सकते हैं । अखबारों और मीडिया को विज्ञापन के बल पर खरीदकर गुणगान के लिए विवश किया जा सकता है ।  

मंदिर पहले भी बने थे, शिलान्यास और प्राणप्रतिष्ठा भी हुए ही थे । सोमनाथ का भव्य मंदिर भी हमारे देखते देखते बना ही था लेकिन ऐसा धूम धड़ाका, ऐसी हाय तौबा कभी नहीं देखी । घर-घर दीये जलाने के धमकीनुमा सुझाव कभी नहीं आए थे । न केवल किन्हीं तथाकथित प्रतिष्ठित लोगों को  बुलाया गया था और न ही आडवाणी जी की तरह किसी को न आने जैसा नियंत्रण दिया गया था ।जनता को आने से मना नहीं किया गया था । लगता है यह भगवान का नहीं बल्कि किसी खरबपति सेठ का कार्यक्रम था ।   

अब निर्बल के बल राम नहीं रहे । धनिकों और बलियों के मनोरंजन राम हो गए । 

यह सब विज्ञापन के बल पर ही तो संभव हुआ । जनता के टेक्स के पैसे से पाँच किलो अनाज बांटकर दाने दाने पर अपना नाम लिखवाना विज्ञापन के बल पर ही तो संभव हुआ है । 

बोला- लेकिन मास्टर, याद रख अति बहुत बुरी होती है । तभी चाणक्य कहते है-


अति रूपेण वै सीता चातिगर्वेण रावणः।

अतिदानाद् बलिर्बद्धो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत्।।


अत्यधिक सुन्दरता के कारण सीता हरण हुआ। अत्यंत घमंड के कारण रावण का अंत हुआ। अत्यधिक दान देने के कारण 

राजा बलि को बंधन में बंधना पड़ा। अतः सर्वत्र अति को त्यागना चाहिए।


विटामिन सी बहुत महत्वपूर्ण होता है लेकिन अधिक सेवन करने से खुजली होने लगती है । अधिक पालक और टमाटर खाने से पथरी बनने लगती है । अधिक घी खाने से दस्त लगने लग जाते हैं । 



हमने कहा- लेकिन पांच सौ साल के कठिन परिश्रम और त्याग बलिदान से मोदी जी ने राम मंदिर बनवाया है । अब अगर राम का भव्य मंदिर न बने, सारा देश दिवाली न मनाए, घर घर दीये न जलाएं जाएँ, पटाखे न फोड़े जाएँ तो क्या बुराई है । 


बोला- जिस तरह से निठल्ले आवारा युवक राम के नाम से लोगों से जबरदस्ती कर रहे हैं उससे इनका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन लोगों को राम से जरूर चिढ़ होने लग जाएगी । तुझे याद है अपन मार्च 1958 में मेट्रिक की परीक्षा देने पिलानी गए थे और बिरला जी के नोहरे के सामने वाली धर्मशाला में ठहरे थे । याद है तब एक दिन क्या हुआ था ?


हमने कहा- अब 66 साल हो गए । कुछ याद नहीं पड़ रहा । 


बोला- याद है, उस धर्मशाला का चौकीदार था धूँकल । वह रोज शाम को अफीम का अंटा लगाता था । एक दिन जब हम आठ दस लड़के बिट्स पिलानी वाली नहर ‘शिवगंगा’ घूम कर आए थे और सब चबूतरे पर बैठे धूँकल को बारी बारी से ‘राम-राम’ बोले थे । तब उसने क्या कहा था ?


हमने कहा- हाँ, अब याद आ गया । उसने चिढ़कर राम को ही उलट सीधा कह दिया था-

सालो, राम की ....।   कुचरणी करके मेरा नशा खराब मत करो ।


अब हम वे शब्द दुहराकर रामभक्तों का दिल नहीं दुखाना चाहते । फिर भी यह ‘राम-राम’ की अति का ही दुष्परिणाम था ।  

 




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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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