Jan 4, 2024

अगर मैं सरपंच होता

 अगर मैं सरपंच होता 


आज तोताराम ने आते ही कहा- मास्टर, कितना अच्छा होता अगर मैं सरपंच होता । 

हमने कहा- कौन क्या हो यह जीव के हाथ में नहीं होता । यह तो भगवान के हाथ में होता है । और भगवान के भी  हाथ में क्या ? यह तो धर्म के ठेकेदारों के हाथ में होता है । वे जिसे चाहें, जब चाहें जिस योनि में पटक सकते हैं । वैसे यह भी माना जाता है कि यदि कोई मनुष्य योनि में अच्छे कर्म करता है तो उसकी मोक्ष हो जाती है । फिर बार बार जन्म-मरण का चक्कर खत्म हो जाता है जैसे कि जब कोई नेता पार्टी अध्यक्ष या प्रधान मंत्री बन जाता है तो फिर उसे बार बार राज्य की राजधानी और दिल्ली के बीच बार बार चक्कर नहीं लगाने पड़ते । 

यदि मनुष्य अच्छे कर्म नहीं करता तो फिर उसका चक्कर शुरू हो जाता है । मक्खी-मच्छर, कुत्ता-बिल्ली से होते हुए 84 लाख योनियों की लंबी भारत-यात्रा । अब तू इस जन्म में तो जो बनना था बन चुका। आगे क्या बनेगा यह कोई तेरे हाथ में थोड़े है ? जो शक्तिशाली होते हैं वे शुरू में ही सीधे मुख्यमंत्री बनते हैं और जब कभी केंद्र में आते हैं तो सीधे प्रधानमंत्री ही बनते हैं । 

बोला- लेकिन कल्पना करने में क्या बुराई है ? हमें बचपन में निबंध भी तो लिखवाए जाते थे- अगर मैं भारत का प्रधानमंत्री होता या अगर मैं अपने विद्यालय का प्रधानाध्यापक होता आदि-आदि । 

हमने कहा- उस समय की बात और थी। तब तो वही बनने की कल्पना करनी पड़ती थी जो मास्टर जी कहते थे लेकिन अब वह बात नहीं है । अब तो कोई भी कल्पना की जा सकती है ।जब नेहरू जी प्रधानमंत्री बने तब तो  मोदी जी का जन्म भी नहीं हुआ था तो कैसे प्रधानमंत्री बन जाते लेकिन पैदा होने के बाद उन्होंने देखा कि नेहरू जी  देश का सत्यानाश कर रहे हैं तो उन्होंने कल्पना ही नहीं की बल्कि निश्चय कर लिया कि वे भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे और अमुक अमुक कम करेंगे । और आज देख वे भारत के प्रधानमंत्री हैं और जो उन्होंने उस समय निश्चय किया था वह सब धड़ाधड़ किये जा रहे हैं । 

तेरी तरह सरपंच की कल्पना करते तो अब तक अधिक से अधिक किसी छोटे मोटे राज्य के पंचायत राज्य मंत्री बन पाते । 

वास्तव में तू बहुत गरीब ही नहीं, सोच से भी बहुत गरीब प्राणी है । कल्पना भी की तो सरपंच बनने की । 

बोला- तूने कभी इस दिशा में सोचा ही नहीं। ज़िंदगी भर कभी डी ए,  तो कभी डी ए के एरियर, कभी मेडिकल अलाउंस, तो कभी इंक्रीमेंट में ही उलझा रहा । और अब दो रोटी और एक चाय में खुद को अंबानी-अदानी समझकर 'मगन गधा' बना हुआ है ।  

हमने कहा- तोताराम, अब तू अपनी सीमा से बाहर जा रहा है । तू इस 'बरामद संसद ' के अध्यक्ष का अपमान आकर रहा है । हम अपने किठाना वाले धनखड़ जी की तरह तुझे पूरे सत्र के लिए निष्कासित कर सकते हैं और तेरी अनुपस्थिति का फायदा उठाकर चाय के साथ तिल के लड्डू और पकौड़े का बिल निर्विरोध पास करवाकर अकेले ही सब खा सकते हैं । 

फिर भी हमें यह जानने की उत्सुकता तो है ही कि तूने कल्पना भी कोई बड़ी न करके सरपंच की ही क्यों की ? 

बोला- मेरी कल्पना की गरीबी की बात तो बाद में । मुझे तो तेरी राजनीतिक समझ पर तरस आता है । तुझे सरपंच की कमाई और हैसियत तक का पता नहीं । क्या किसी को एक बार सरपंच बन जाने के बाद नौकरी, खेती करते देखा है ? भले ही दुबारा सरपंच नहीं चुना जाए लेकिन कभी जीप से नीचे पैर नहीं रखता । हर रोज धोबी के धुले झकाझक सफेद कपड़े पहनता है । हर समय दो चार चमचे साथ रहते हैं।  और तेरे जैसे मास्टर और प्रिंसिपल सौ सौ रुपल्ली की ट्यूशन के लिए चप्पलें चटखाते फिरते हैं । भारत की राजनीति में दो ही सबसे पावरफुल होते हैं । सबसे नीची सीधी पर पंचायत प्रधान सरपंच और सबसे ऊंची पर प्रधानमंत्री । एक गार्ड और दूसरा ड्राइवर । बीच में तो सब डिब्बे होते हैं । हैसियत और अकल दोनों में डिब्बे । 

हमने पूछा- सरपंच बनकर तू अधिक से अधिक क्या कर लेता ?

बोला- क्या कर लेता ? प्लेन में बैठकर पंचायत की फ़ाइलें निबटाता । अपने राजस्थान के नए नए बने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की तरह ।  । 

हम तो हतप्रभ, कहा- प्लेन में फाइल ? हमारे पास तो साइकल भी नहीं है । प्लेन में पहली बार 1985 में बैठे थे जब कलकत्ता से पोर्ट ब्लेयर का शिप छूट गया था ।रेल में एक दो बार फर्स्ट क्लास में बैठे लेकिन ए सी फर्स्ट क्लास में  कभी नहीं । बाद में दस-बीस बार प्लेन में बैठने का मौका तो जरूर मिला लेकिन कभी बिजनेस क्लास में नहीं बैठे । 

वैसे एक प्लेन तो हजारों करोड़ का आता है। मोदी जी ने भी तो पिछले दिनों खरीदा था । 

बोला- मुझे मोदी जी जैसे प्लेन की कोई जरूरत नहीं । वैसे मोदी जी जैसे प्लेन की जरूरत तो नेहरू जी से लेकर देवेगौड़ा तक किसी को नहीं पड़ी । चंद्रशेखर तो एक बार भी लाल किले पर तिरंगा भी नहीं फहरा सके । चौधरी चरण सिंह तो मेरठ से दिल्ली तक के अलावा दूसरे देश, यहाँ तक कि नेपाल भी नहीं गए।

मोदी जी की बात अलग है । वे तो अब विश्वगुरु बन गए हैं। सारी दुनिया की समस्याएं उनके सिर आ पड़ी हैं । देश से ज्यादा विदेश में रहना पड़ता है । और जब देश में रहते हैं तो भी चुनाव के चक्कर में दिल्ली से बाहर ही रहना होता है । आराम के लिए एक मिनट का समय नहीं । ऐसे में सोना, नहाना-धोना, नाश्ता पानी सब प्लेन में । ऐसे में ऐसा तीन बी एच जितना बड़ा प्लेन तो चाहिए ही । 

हमने पूछा- तो फिर तू कैसा और कौनसा प्लेन खरीदेगा ? 

बोला- वैसा ही जैसा किसी आसाम वाले कबाड़ के व्यापारी ने खरीदा था। पुराना प्लेन । जो मुंबई से ट्रक पर वाया बिहार आसाम जा रहा था और रास्ते में मोतिहरी में फ्लाईओवर के नीचे फंस गया था । एक बार पहले भी ऐसा ही हुआ था जब हैदराबाद के किसी व्यापारी द्वारा खरीद गया और सड़क मार्ग से लाया जा रहा प्लेन कोच्चि में फंस गया था ।

हमने कहा- लेकिन जब तुझे कहीं जाना ही नहीं है तो प्लेन की जरूरत ही क्या है ? और फिर जो प्लेन मुंबई से आसाम तक खुद नहीं जा सकता । जिसे खुद को ट्रक पर लाद कर ले जाया जाए वह है किस काम का ?  

बोला- काम का क्यों नहीं है ? एक तो मैं प्लेन में बैठकर पंचायत का काम निबटाने वाला दुनिया का पहला सरपंच होऊँगा । दूसरे यदि किसी नए नए मुख्यमंत्री, विधायक को प्लेन में काम करते हुए फ़ोटो खिंचवाना होगा तो उसे ऑबलाइज कर दूंगा । गाँव में आज भी बहुत से लोगों ने अंदर से प्लेन नहीं देखा। उन्हें दिखाकर मुझे ही वोट देने की सौगंध ले लूँगा । जैसे भाजपा राम मंदिर में राम लला के दर्शन करवाकर अगला लोकसभा चुनाव जीतना चाहती है ।

एक बार अंदर से दिखाने की दस-बीस रुपए की टिकट लगा दूंगा । 

परमानेंट धंधा, पीढ़ियों के लिए । 





 


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