हार्ड वर्क बनाम हार्वर्ड
आज तोताराम एकदम नए नए चुने मुख्यमंत्री /एम एल ए की तरह व्यवहार कर रहा था जो अपनी सदस्यता की शपथ लेने से पहले ही अपने मोहल्ले के अंडे के ठेले वालों को कराची भेजने की धमकी देने लगता है या सीएम बनने के बाद पहला आदेश यही जारी करता है कि धार्मिक स्थलों पर तेज आवाज में लाउड स्पीकर न बजाए जाएँ । और यह तो सब जानते हैं कि किस धर्म के कार्यक्रमों की आवाज तेज और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है ।
बोला- मास्टर, तू कितने घंटे काम करता है ?
हमने कहा- काम करने के समय हमने भी खूब काम किया है । अब अस्सी के हो गए, क्या अब भी काम करते रहेंगे ? वैसे अब भी कुछ न कुछ काम करते ही हैं लेकिन किसी के दबाव में नहीं । अब हम जो भी करेंगे अपने मन से करेंगे । मन करेगा तो दिन में दो बार स्नान करेंगे, मन नहीं करेगा तो चार दिन नहीं नहायेंगे । मन होगा तो रात को 12 बजे तक जागेंगे और मन नहीं होगा तो दस बजे तक सोते रहेंगे ।
बोला- अभी तो तेरे हाथ-पैर चल रहे हैं । कुछ बड़ा सोच, कुछ सार्थक और परमार्थ का सोच, देश-दुनिया का सोच ।इन्फोसिस वाले नारायण मूर्ति को देख । कहते हैं उन्होंने सप्ताह में नब्बे नब्बे घंटे काम किया है ।उन्होंने देश के युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करने की सलाह दी है । उनके अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान और जर्मनी ने भी ऐसा करके ही विकास की बुलंदियों को छुआ है । इस संदर्भ में उन्होंने मोदी जी का भी उदाहरण दिया है ।
हमने कहा- बनिया अपनी दुकान पर सुबह-सुबह आकर बैठ जाता है और ग्राहक के इंतजार में देर रात तक बैठा रहता है । किसान भी दिन रात काम करता है । उत्तर प्रदेश के किसानों को देख, रात रात जागकर खेतों से सांड भगाते हैं । अगर मूर्ति जी ने नब्बे घंटे काम किया है तो उन्हें उसका लाभ मिला है लेकिन अपने कर्मचारियों से इतने काम की आशा क्यों ? और अगर आशा करें तो उसे देश के विकास के नाम पर भावनात्मक शोषण से क्यों जोड़ते हैं ? कर्मचारी से अधिक काम की आशा करें तो उसे अधिक वेतन और सुविधाओं से जोड़ें ।
बोला- लेकिन देश के लिए निस्वार्थ कर्म करने से एक गर्व की अनुभूति तो होती ही है । क्या सब कुछ पैसे के लिए ही होता है ?
हमने कहा- ये नेता और उद्योगपति क्या देश की सेवा करने के लिए लड़-मर रहे हैं ? यह मारामारी शुद्ध पद, पावर, यश और मनमानी का अवसर पाने के लिए है । कोई भी वित्तमंत्री देश प्रतिव्यक्ति औसत ये में दो महिने जिंदा रहकर दिखा दे तो माँ लेंगे।
बोला- फिर भी इतने बड़े और पिछड़े देश को दस-पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए ज्यादा काम करने की जरूरत तो है ही । इसीलिए तो मूर्ति जी 70-80 घंटे प्रति सप्ताह काम करने के लिए कह रहे हैं । मोदी जी खुद 20-20 घंटे काम करते । उनके एक प्रशंसक चंद्रकांत पाटील ने तो कहा है कि वे केवल दो घंटे ही सोते हैं ।अब तो वे यह प्रयोग कर रहे हैं कि बिना सोये ही काम चल जाए और वे दिन-रात चौबीसों घंटे देश की सेवा कर सकें ।
हमने कहा- ज्यादा समय तक काम करने से कोई विशेष फायदा नहीं होता बल्कि काम की गुणवत्ता कम हो जाती है । पहले मजदूरों से अमानवीय तरीके से 20-20 घंटे काम लिया जाता था ।पिछली शताब्दी के शुरू में एक दिन में आठ घंटे काम करने का नियम बनाने के लिए आंदोलन किया जिसमें किसी ने बम विस्फोट कर दिया और पुलिस ने गोली चल दी जिससे 7 मजदूर मारे गए । उसके बाद से दुनिया में 8 घंटे प्रतिदिन काम का नियम बना । इसी उपलक्ष्य में 1 मई को 'मई दिवस' मनाया जाता है । 8 घंटे के इस नियम को सबसे पहले फोर्ड ने अपनी कंपनी में लागू किया और उसके बहुत अच्छे परिणाम मिले । मजदूरों का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य ही अच्छा नहीं हुआ बल्कि कारखाने की उत्पादकता भी बढ़ी ।
बोला- फिर भी हमें सेवाभाववश 20-20 घंटे काम करने वाले अवतारी पुरुषों का आभार तो मानना ही चाहिए ।
हमने कहा- विष्णु जो सृष्टि के पालनकर्ता है और राम-कृष्ण सब जिनके अवतार है, वे भी साल में चार महिने सोते हैं जिसे देवशयन के नाम से जाना जाता है । मतलब जिस पर सृष्टि की जिम्मेदारी है वह भी 16 घंटे प्रतिदिन से अधिक काम नहीं करता । तिस पर शौच, खाना, नहाना, तरह-तरह के वस्त्र बदलना, साज-शृंगार, भक्तों के कीर्तन-जागरण अटेंड करना आदि आदि । ईसाई भी अपने भगवान को सप्ताह में एक दिन की छुट्टी भी देते हैं । डाक्टरों का मानना है कि कम सोने से आदमी की निर्णय लेने की क्षमता दुष्प्रभावित होती है । कुछ का कुछ दिखाई देने लगता है। टेलिप्रॉम्प्टर देखकर भी ढंग से नहीं पढ़ सकता ।
बोला- तो फिर यह हार्ड वर्क और हार्वर्ड वाले जुमले का क्या मतलब है ?
हमने कहा- जो हार्वर्ड तो बहुत दूर, यहाँ भी संदेहास्पद डिग्री से काम चला रहे हैं वे ही अपनी झेंप मिटाने के लिए ऐसी चंडूखाने की बातें करते हैं ।
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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