Sep 1, 2010

तोताराम और सज्जनता पर संकट


आज अखबार और दूध के आने से पहले ही मुँह-अँधेरे दरवाजे पर दस्तक हुई । कुछ अजीब सा लगा । कौन हो सकता है ? जैसे ही दरवाजा खोला तो काले कपड़े में एक लिपटी एक आकृति खड़ी थी । लगा, कहीं आतंकवादी तो नहीं है । वैसे फिल्मों में तो कभी हीरो को बुरका पहन कर हीरोइन से मिलने जाते देखा था, कभी हीरो का साथी बुरके में विलन के अड्डे में घुस कर हीरो या हीरोइन की मदद करता था । पर आजकल ऐसी फ़िल्में नहीं बनतीं । आजकल तो कभी पाकिस्तान, तो कभी स्पेन में बुरके में छुप कर आतंकवादियों ने हमले किए हैं तब से योरप वालों को ही नहीं हमें भी बुर्के से डर लगने लगा है । फिर भी हमने हिम्मत करके पूछ- मोहतरमा, आप कौन हैं और कैसे तशरीफ लाई हैं ? काले कपड़े में से आवाज़ आई- मैं कोई मोहतरमा नहीं, मैं तो मोहतरम तोताराम हूँ ।

हमें बड़ा अजीब लगा । चाहते तो थे कि अभी इसका यह बुरकानुमा काला कपड़ा उतार कर फेंक दें । पर जैसे ही वह अंदर आकर बैठा तो हमने उसका कपड़ा खींचना चाहा मगर उसने उसे कसकर पकड़ लिया और किसी षोडशी की तरह लजाता हुआ फर्र से पीठ फेरकर बैठ गया और बोला- यह क्या कर रहे हो ? मुझे बड़ी शर्म आ रही है ।

सस्पेंस ही हद । तोताराम और शर्म, और वह भी हमसे ! हमने कहा- खैर, मुँह न दिखा पर चक्कर क्या है यह तो बता । बड़ी मुश्किल से खुला- कहने लगा, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री की तो मजबूरी है कि वे केवल शर्म से सर ही झुका कर रह गए क्योंकि मेरी तरह मुँह छुपाने से इस वक्त उनका काम नहीं चल सकता,बाढ़ राहत के काम में लगना जो पड़ रहा है पर मैं तुम्हें क्या मुँह दिखाऊँ । वैसे मैं ही क्या, हर क्रिकेट प्रेमी का मुँह काला हो गया है । पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने मैच फिक्सिंग करके किसी भी क्रिकेट प्रेमी को मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा ।
हमने कहा- चार दिन पहले जब भारत श्रीलंका से बुरी तरह हार गया था तब तो तुझे, पवार साहब और धोनी को शर्म नहीं आई । यदि भारतीय क्रिकेट का सच्चा प्रेमी था तो उसी दिन डूब मरता । बोला- खेल में हार जीत तो लगी ही रहती और अंतिम गेंद तक कुछ भी नहीं कहा जा सकता । इसी में तो क्रिकेट का रोमांच है और आज हारे हैं तो क्या कल जीत भी जायेंगे । हमने उसे फिर कोंचा- और जब ललित मोदी ने जयपुर में तिरंगे झंडे पर शराब का गिलास रखकर पी थी तब भी तुझे शर्म नहीं आई थी और जब अधनंगी लड़कियाँ हर बाल पर उछल रही थीं तब भी तुझे शर्म नहीं आई तो अब ही ऐसा क्या हो गया ? और जहाँ तक खेलों में भ्रष्टाचार की बात है तो अपने यहाँ जब अढ़ाई हजार का सामान चार लाख में किसी खास कंपनी से खरीदने के लिए एम.सी.डी. के अधिकारियों को ऊपर से आदेश आ रहे हैं तब भी तुझे फर्क नहीं पड़ रहा । अभी कौनसा आसमान टूट पड़ा ?

कहने लगा- ये सब तो निर्माण कार्य हैं । निर्माण कार्य तो होते ही हैं खाने के लिए फिर चाहे सड़क हो या पुल या इमारतें । पर जहाँ तक सज्जनता की बात है तो वह केवल क्रिकेट में ही बची थी और अब वह भी खतरे में पड़ गई तो इस दुनिया का क्या होगा ? बता और किस खेल को 'जेंटिलमेंस गेम' कहा जाता है । मैं तो सज्जनता पर आए इस संकट से दुःखी हूँ ।

हमने कहा- तोताराम, सज्जनता न तो किसी खेल में है और न ही किसी धंधे में । और फिर क्रिकेट भी अब खेल नहीं, धंधा है । और अग्रेजी में भी कहा है- 'एवरी थिंग इज फेयर इन धंधा' । सज्जनता तो एक मानवीय गुण है । जैसा आदमी होगा वैसा ही काम करेगा । चोर मंदिर में भी जाएगा तो कुछ चुराने के लिए । आदमी खेलों से नहीं अपने संस्कारों से सुधरता है । आदमी को सुधारेंगे तो सब कुछ सुधर जाएगा ।

और यह कहते हुए हमने तोताराम का बुरका खींच लिया और कहा- शर्म छोड़ और बेशर्मी से चाय पी ।

३१-८-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.Jhootha Sach

2 comments:

  1. जोशी दादा बहुतै बढ़िया लट्ठ मारत हो,आवाज़ भी नहीं आती....आपसे एक बार मुलाक़ात हुई है,पर शायद आप तोताराम के चक्कर मा पुराने साथिन का भूल रहे हौ !

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