Dec 31, 2021

स्वागत है नव वर्ष


 

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष।
करें कामना सब को सुखकर हो यह नूतन वर्ष।

कोई भ्रम, शंका हो तो भी बंद न हो संवाद।
आपस में मिल-जुल सुलझा लें हो यदि कोई विवाद।

दुःख-पीड़ा आपस में बाँटें, बाँटें उत्सव-हर्ष।
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष।

सभी परिश्रम करें शक्ति भर, पर ना करें प्रमाद।
जले होलिका, विश्वासों का बचा रहे प्रह्लाद।

केवल कुछ का नहीं सभी का हो समुचित उत्कर्ष।
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष।

‘स्वार्थ छोड़ कर्त्तव्य करे वह पुरुषोत्तम श्रीराम’।
यह आदर्श हमारा होवे, होंगे शुभ परिणाम।

न्याय-जानकी अपहृत हो तो मिलें, करें संघर्ष।
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा, स्वागत है नव वर्ष।


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Dec 30, 2021

यह कौनसे इत्र की बदबू है ?

यह कौनसे इत्र की बदबू है ?


कबीर के अनुसार यह जीव संसार रूपी चक्की के दो पाटों के बीच में फंसा हुआ एक दाना है जिसका पिसना तय है. 

चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय

दो पाटन के बीच में बाकी बचा न कोय 

गेहूँ पिस कर फुल्का, समोसा, परांठा, पूड़ी क्या बनेगा यह इस पर निर्भर करता है कि वह किसके पल्ले पड़ता है. 

हम भी दो पाटों के बीच फंसे हुए हैं. पूर्व में सीकर का कचरे का सबसे ऊंचा ढेर 'कर्कटगिरि' और पश्चिम में कृषि उपज मंडी जिसे उसके लक्षणों के आधार पर तो 'कचरा उपज मंडी' कहा जाना चाहिए. अगर हम योगी जी होते तो अभी नाम बदल देते, कागजी कार्यवाही बाद में पूरी होती रहती. लेकिन क्या करें हम तो अपने पैन कार्ड में अपने नाम की स्पेलिंग भी चालीस साल में ठीक नहीं करवा सके. एक बार गए थे तो बाबू ने कहा-स्पेलिंग से कोई फर्क नहीं पड़ता, आप तो टेक्स समय से देते रहिये. 

आज जैसे ही तोताराम आकर बैठा, बोला- मास्टर, आज तो बड़ी तेज़ बदबू आ रही है. कहीं कोई मरा हुआ जानवर तो नहीं फेंक गया. 

हमने कहा- मंडी का तो पता नहीं, यहाँ से दिखाई नहीं देता लेकिन कर्कटगिरि की तरफ कचरा तो काफी है लेकिन जब हम सवेरे दूध लेने गए थे तो हमें कोई मरा हुआ जानवर तो दिखाई नहीं दिया. हो सकता है इत्र नगरी कन्नौज की तरफ से कोई झोंका आ गया हो. 

बोला- आज तक तो कोई खुशबू या बदबू कन्नौज की तरफ से आई नहीं. आज ही ऐसा क्या हो गया ? 

हमने कहा- चुनाव आ रहे हैं ना. अब तरह-तरह ही बदबुएँ ही फैलेंगी. सबको अपने 'पूज्य'-'पाद' में खुशबू और दूसरे के 'माननीय' में बदबू आएगी. यही तो समय है प्रकारांतर से दोनों पक्षों के सच के उदघाटन का. दोनों जब एक दूसरे को गली दे रहे होते हैं तो एक ही नहीं, दोनों ही सच होते हैं. 

बोला- मतलब ?

हमने कहा- मतलब यह कि एक दूसरे को नंगा करने के चक्कर में दोनों नंगे हो जाते हैं. 

बोला- फिर वही बात. साफ़ साफ़ बता.

हमने कहा- कन्नौज में एक व्यापारी के पास अरबों रुपए का काला धन पकड़ा गया. कहते हैं वह इत्र का व्यापारी है. उसने एक बार 'समाजवादी इत्र' भी लांच किया था. बाद में वह समाजवादी पार्टी के किसी पद पर रहा भी. भाजपा को मौका मिल गया और उसने उस इत्र की बदबू फैलाना शुरू कर दिया. बाद में पता चला यह 'समाजवादी इत्र' वाला कोई और है तथा जिसके पास से अरबों रुपये पकड़े गए वह कोई और हैं. हुआ यह कि दोनों 'जैन', दोनों का नाम 'पी' से शुरू, दोनों एक ही शहर और एक ही मोहल्ले में रहते हैं. अब कहा जा रहा है कि भाजपा ने अति उत्साह में अपनी सभाओं में इस बदबू को खूब फैलाया. अब संकोच में पड़े हुए हैं.

बोला- इसमें संकोच और शरमाने की क्या बात है. राजनीति में सबके कामों, शब्दों और विचारों में बदबू ही बदबू भरी हुई है. जिसे छुपाने के लिए कोई 'समाजवादी इत्र' छिड़कता है तो कोई 'राष्ट्रवादी इत्र'. वैसे भी सामान्य आदमी के शरीर से एक प्रकार की गंध जिसे सुगंध कम और दुर्गन्ध अधिक कहा जा सकता है, आती ही है.  

हमने कहा- इसलिए यह मत पूछ कि यह बदबू किसकी है, कहाँ से आ रही है ?कन्नौज की बदबू से तो भारत का इतिहास आज तक गंधा रहा है.जैचंद कन्नौज का ही तो था. यहाँ के इत्र से महकती संयोगिता ने पृथ्वीराज को जैचंद से पंगा लेने के लिए विवश कर दिया था. वैसे बदबू बदबू ही होती है फिर चाहे वह वार्ड पञ्च की हो या 'प्रधान जी' की. मूली कोई भी खाए डकार सड़ी हुई ही लेगा. 'पाद' पाद ही होता है चाहे किसी 'पूज्य' का या किसी दुश्मन का. 

आज पहला अवसर है जब तोताराम हमसे सहमत सा हो रहा लगता है' कब तक रहेगा यह पता नहीं.

बोला- और क्या ? हमें तो बदबू झेलनी है, चाहे ऊपर से आये या नीचे से. 

और तोताराम ने हमारी पत्नी को आवाज़ लगाई- भाभी, आज चाय में इलायची डबल डालना, आज लोकतंत्र कुछ ज्यादा ही गंध मार रहा है. 

पत्नी ने कहा- लाला, चालाकी और हराम के आराम को जायज ठहराने के लिए इत्र लगाने ही पड़ते है. दल बदल क्या है ? इत्र बदलना ही तो है. मेहनत के पसीने की गंध ही सुगंध होती है और वह हरामखोरों को अच्छी नहीं लगती. पहले एक विज्ञापन आया करता था, याद है कि नहीं ? जिसमें में उस यात्री को विमान से बाहर फेंक दिया जाता था जिसके शरीर से पसीने की गंध आती थी. 

तोताराम ने कहा- क्या बात है भाभी ! मार दिया पापड़ वाले को. मेरे ख़याल से तभी १५ हजार करोड़ रुपए का सेन्ट्रल विष्ठा इसीलिए बनाया जा रहा है और उसे दिल्ली आने वाली सड़कों पर कीलें ठोंक कर सुरक्षित बनाया जा रहा है कि किसान-मजदूर और उनके पसीने की दुर्गन्ध वहाँ तक न पहुँच सके. 

हमने कहा- ठीक भी है, उच्च विचारों के लिए नए नए वस्त्र विभूषित होना, इत्र सुवासित होना, बहु प्रचारित होना बहुत महत्त्व रखता है.

पत्नी बोली- जब व्यक्ति के विचार, वाणी और कर्म प्रदूषित होते हैं तो तन-मन और धन से ऐसी दुर्गन्ध फैलती है कि फिर किसी इत्र से नहीं दबती. तुम दोनों भी कौन-सा कोई कर्म करते हो. यहाँ बैठे-बैठे पंचायत करते रहते हो. नगर परिषद् वालों का क्या इंतज़ार करना, गली का कूड़ा इकठ्ठा करके जला दो तो यहाँ की दुर्गन्ध तो कम हो. 

हमने कहा- तोताराम,याद रखना, पहली तारीख़ को पेंशन लेने चलेंगे तो फावड़े का हत्था ठीक करवा ही लायेंगे.




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Dec 29, 2021

कर्कट गिरि : हमारी गली का पुण्य-स्थल


कर्कट गिरि : हमारी गली का पुण्य-स्थल  


कहते हैं- बद अच्छा, बदनाम बुरा.  लेकिन यह कहावत भी तो ऐसे ही नहीं बनी है कि 'बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा' . इसीलिए संस्कृत में भी कहा गया है-

घटं भिन्द्यात् पटं छिन्द्यात् कुर्याद्रासभरोहणम् |
येन केन प्रकारेण प्रसिद्ध: पुरुषो भवेत् ||

घड़े फोड़कर, कपड़े फाड़कर या गधे के ऊपर चढ़कर. कुछ लोग किसी भी तरह, कुछ भी करके चर्चित होना चाहते हैं || 

जैसे कि आजकल गाँधी-नेहरू को गाली देकर, गाँधी के पुतले को गोली मारकर, गोडसे को देशभक्त बताकर, किसानों को आतंकवादी बताकर,  मोदी जी के सिंहासनारूढ़ होने के दिन  ३० मई २०१४  को भारत का स्वतंत्रता दिवस बताकर सस्ते में चर्चित हुआ जा सकता. चर्चित होने पर अखबार, टीवी में स्थान मिल जाता है, फिर चुनाव में भोपाल से लोकसभा का टिकट मिल सकता है, वाई प्लस सुरक्षा मिल सकती है; पद्मश्री मिल सकती है.

पहले हम अपनी गली की बदनामी को लेकर लज्जित हुआ करते थे लेकिन लोकतंत्र में बदनामी के महत्त्व को समझ लेने पर अब हमें कोई शर्म नहीं आती.वैसे हमारी गली किसी कुकर्म के लिए बदनाम नहीं है, बात इतनी सी है कि हमारी गली शहर के 'स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत' कार्यक्रमको लेकर चर्चित है. स्वच्छता में नंबर वन नहीं, बल्कि गन्दगी के मामले में. 

मोटर साइकल और कार में चलने वाले तो इतना ध्यान नहीं देते लेकिन हमारे जैसे पैदल चलने वालों को पता होता है कि वार्ड नंबर ४६ में स्थित कृषि मंडी के कोल्डस्टोरेज के प्लाट के कोने के पास कूड़ादान कितने दिन से साफ़ नहीं हुआ है. हमें ही सर्वाधिक बदबू सहन करनी पड़ती है सो हम ही नगर परिषद् में सबसे अधिक शिकायत करते हैं. अब जब हम जैसे ही नाम बताते हैं तो उधर से आवाज़ आती है- समझ गए मास्टर जी, वही कूड़े वाली गली ना.   

कल १५ दिन हो गए सफाई हुए. कई दिन से शिकायत नोट करवा रहे हैं. संबंधित व्यक्ति ने कहा- मास्टर जी, कल सवेरे-सवेरे आप वाली गली से ही शुरू करेंगे. 

सो जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- तोताराम, चाय पर चर्चा बाद में, पहले 'करकट गिरि' की तरफ हो आते हैं.

बोला- जहां परशुराम जी ने तपस्या की वह महेंद्र गिरि, संजीवनी के लिए हनुमान जी उठा लाये थे वह द्रोण गिरि, और मलय गिरि तथा हिमगिरि आदि तो सुने थे लेकिन अब यह 'कर्कट-गिरि' कहाँ से आ गया ? 

हमने कहा- व्यक्ति में दृष्टि हो तो कूड़े में से भी कोहीनूर खोज लेता है जैसे 'रेग्स टी रिचेज'.अब मोदी जी एक्सप्रेस वे का उद्घाटन करने गए तो वहाँ उन्होंने वह स्थान विजेथुवा महावीरन मंदिर के नाम से सुल्तानपुर जिले के कादीपुर तहसील में खोज निकला जहां हनुमान जी ने द्रोण गिरि जाते समय उनको भटकाने-उलझाने वाले कालनेमी को मारा था. कल को अगर मोदी जी सीकर आयें तो वे कर्कट गिरि के नाम से बदनाम कूड़े के इस पहाड़ का संबंध किसी कर्कटासुर से जोड़कर इसे भी प्राचीन भारत की हिन्दू अस्मिता से लेकर अपने 'स्वच्छ भारत: स्वस्थ भारत' से जोड़ देंगे. 

बोला- चल, वैसे तो बदबू और कूड़े को क्या देखना. फिर भी जैसे दिल्ली के गाजीपुर में दुनिया का सबसे बड़ा कचरे का पहाड़ है वैसे ही यह अपने सीकर का सबसे ऊंचा कूड़े का पहाड़ है और फिर तूने इसका सबन्ध मोदी जी के 'स्वच्छ भारत' अभियान से भी  जोड़ दिया है. ऐसे में स्वच्छता के लाभार्थी होने के नाते  शामिल न होना भी उचित नहीं.चल इस पुण्य-स्थल को नमन कर ही आते हैं.



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Dec 26, 2021

फिर मिलेंगे

फिर मिलेंगे 


चाय आई लेकिन तोताराम ने कोई उत्साह नहीं दिखाया.

हमने कहा- क्या भोजन मन्त्र  'हरिः ॐ नाभिया आसीदंतरिक्षगंग्व ...'  के गायन की प्रतीक्षा है ?

बोला- नहीं, जब तक माफ़ी नहीं मांगेगा तब तक मैं चाय नहीं पिऊंगा.

हमने कहा- माफ़ी कोई तमाशा है ? कोई ज़बरदस्ती है ? यह तो खुद के द्वारा किसी को, किसी भी रूप में कष्ट पहुँचा दिए जाने के अहसास से उपजी आत्मग्लानि की विनम्र स्वीकृति है. हमने तो कभी तुझे जान या अनजान में कोई कष्ट नहीं पहुँचाया. हम किस बात की माफ़ी मांगें ?

बोला- क्या एक दिन तूने मुझे 'चायजीवी' नहीं कहा था ? 

हमने कहा- तो इसमें झूठ क्या है ? तुझे हमारी चाय के बिना जीवन व्यर्थ लगता है तो हमें भी तुझे चाय पिलाए बिना चैन नहीं. ऐसे में हम खुद को भी 'चायजीवी' ही मानते हैं. बचपन में चाय बेचकर जीवनयापन करने वाले मोदी जी ही नहीं और भी करोड़ों चाय बेचने वाले 'चायजीवी' नहीं तो और क्या हैं ? और फिर इसमें बुराई भी क्या है ? 

बोला- लेकिन तुझे माफ़ी मांगने में शर्म क्यों आती है ? क्या तू मोदी जी और सावरकर जी से भी बड़ा है ?  गलती हो गई तो कोई बात नहीं. आदमी से गलती हो जाती है.  मोदी जी ने भी किसानों के हितैषियों को 'अन्दोलनजीवी' कहा लेकिन माफ़ी भी मांग ली या नहीं ? सावरकर जी भी अंग्रेजों से माफ़ी मांगकर सेल्यूलर जेल से छूटे थे या नहीं. माफ़ी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता. गाँधी ने अंग्रेजों से माफ़ी नहीं मांगी जिसके फलस्वरूप आज भी हिन्दू महासभा के कुछ कार्यकर्त्ता गाँधी के पुतले को गोली मारकर दंड देते हैं. इसीलिए पीयूष गोयल निलंबित कांग्रेसी सांसदों को उनके ही भले के लिए माफ़ी मांगने को कह रहे हैं. 

हमने कहा- लेकिन मोदी जी ने किसान आन्दोलनकारियों और उनके समर्थकों से माफ़ी नहीं मांगी है. उनकी माफ़ी का भाव यह है कि मैं तो देश के सभी 'असली' किसानों के भले के लिए ये कानून लाया था लेकिन 'कुछ' नकली किसानों ने ऐसा नहीं होने दिया. मैं तुम्हारा कल्याण नहीं कर पाया. इसलिए मैं तुमसे माफ़ी मांगता हूँ.

बोला- फिर भी माफ़ी तो मांगी ही. 

हमने कहा-  इस माफ़ी का मतलब यह है कि चिंता मत करो मैं और किसी तरीके से तुम्हारा कल्याण करने के लिए फिर कृषि कानून लाऊँगा. इसका मतलब वही है जो ट्रक के नीचे आने से बाल बाल बचे आदमी ने पुलिस को बताया.

बोला- क्या है वह किस्सा ?

हमने कहा- किसी आदमी के पास से बहुत तेज़ रफ़्तार में एक ट्रक गुजर गया. घबराया हुआ आदमी थाने गया और  फरियाद की- साहब, मुझे बचा लीजिये. वह ट्रक तो मुझे कुचल ही देता. 

थानेदार ने कहा- लेकिन अब तो वह ट्रक चला गया. तुम्हें कोई चोट भी नहीं आई. फिर कैसा और किसके खिलाफ  मामला दर्ज करें ?

फरियादी बोला- लेकिन साहब, उसके पीछे लिखा था- फिर मिलेंगे. 



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Dec 23, 2021

अनजान क्रांतिकारी


अनजान क्रांतिकारी  

आज तोताराम ने आते ही बड़ा विचित्र प्रश्न किया- क्या तुझे मोहन भागवत जी, मोदी जी और योगी जी जानते हैं ?

हमने कहा- हम कोई राष्ट्र, धर्म, संस्कृति, वेद, गौ-गंगा और गीता के सेवक थोड़े ही हैं जो ये महान विभूतियाँ हमें जानेंगीं. हम तो एक सामान्य मास्टर हैं जिसे हमारे वार्ड का मेंबर भी नहीं जानता. हमारे कहने पर मोहल्ले के  कूड़ेदान से कूड़ा तक नहीं उठवाता. कहता है संपर्क पोर्टल पर कूड़ेदान का फोटो वाट्सऐप कर दो. अब हम कौनसे उत्तर प्रदेश के 'स्किल डेवलपमेंट' के अंतर्गत रजिस्टर्ड प्रोफेशनल पोस्ट ग्रेज्युएट हैं जिन्हें योगी जी स्मार्ट फोन और टेबलेट का टुकड़ा फेंकेंगे.

बोला- लेकिन तू तो मोदी जी, भागवत जी के जन्म से पहले १९४७ में ही शाखा में गया था.

हमने कहा- गए तो थे और बाद में योगी जी के तो जन्म से पहले १९६० में अठारह साल की उम्र में ही विवाहित होकर मास्टरी करने लगे थे. पर क्या बताएं, सच्चे सेवक या तो शादी नहीं करते, यदि भूल से कर लेते हैं तो राष्ट्र सेवा के लिए महाभिनिष्क्रमण कर जाते हैं. फिर १८-१८ घंटे प्रतिदिन सेवा करते रहे हैं. न खुद सांस लेते है और न ही राष्ट्र को सांस लेने देते हैं. तभी कहते हैं, आग और राजा से निश्चित दूरी बनाकर रखनी चाहिए. क्या पता कब, क्या मूड बन जाए और यूएपीए लगा दें या वैसे ही ठोक दें. लेकिन तू यह इन्क्वायरी क्यों कर रहा है ?

बोला- संघ ने कहा है कि वह उत्तर प्रदेश के हर जिले से अनजान क्रांतिकारियों की खोज करेगा और उनको प्रकाश में लाएगा. उनके बारे में एक पुस्तक भी प्रकाशित करेगा. 

हमने कहा- लेकिन हमारा जन्म तो राजस्थान में हुआ है. 

बोला- लेकिन यह तो सच है कि तुम्हारे पूर्वज टिहरी गढ़वाल से आकर राजस्थान में बसे थे. जब पौड़ी गढ़वाल से आकरअजय सिंह बिष्ट उर्फ़ योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो क्या तुझे उत्तर प्रदेश के किसी जिले का क्रांतिकारी नहीं माना जा सकता ?

हमने कहा- लेकिन हमने अंग्रेजों के विरुद्ध ऐसा कौन सा संघर्ष किया था. 

बोला- जिस प्रकार कोई जेब काटने के अपराध में भी जेल गया हुआ था और वहां इमरजेंसी में बंद किसी नेता की थोड़ी सी सेवा कर दी तो उसे भी आज तक पेंशन मिल रही है. इनमें बहुत से तो उस समय पैदा भी नहीं हुए थे. तू भी कह देना कि हम १९४६ में अपने मूलस्थान टिहरी गए हुए थे तब हमने पत्थर फेंका जो एक अंग्रेज को लगते-लगते बचा. हम भागकर घर में छुप गए.

हमने कहा- यह कैसा क्रांतिकारी होना है ? यह तो कायरता है. भगतसिंह और गाँधी आदि ने तो जो किया सो डंके की चोट किया. न छुपे, न माफ़ी मांगी.

बोला- सब चलता है. अब तो अंग्रेजों से माफ़ी माँगने वाले सावरकर को भी वीर और क्रांतिकारी सिद्ध करने के लिए उनके माफ़ी मांगने की घटना को गाँधी जी के मत्थे मंढा जा रहा है. 

हमने कहा- लेकिन इस देश में तो बहुत से क्रांतिकारी हुए हैं. क्या उनसे काम नहीं चल सकता. उन पर ही पुस्तकें छपवा लो. प्रेरणा के लिए क्या इतने क्रांतिकारी कम हैं ? चलो गाँधी से आपकी नहीं पटती, वह चतुर बनिया था. लेकिन भगतसिंह, बिस्मिल, अशफाक, सुभाष, करतार सिंह, राजगुरु, बरकतुल्ला, लाला हरदयाल, बाबा पृथ्वी  सिंह आज़ाद आदि सब तो सरफरोशी की तमन्ना वाले हैं.

बोला- लेकिन ये हमारे अजेंडा में फिट नहीं होते. गाँधी ईश्वर-अल्ला तेरो नाम वाला है. सुभाष के साथ भी बहुत से मुसलमान थे, भगत सिंह नास्तिक और कम्यूनिस्ट. हमारे परिवार में कोई अंग्रेज बहादुर के विरोध में बोला ही नहीं. अब चुनाव आ रहे हैं. इसलिए कुछ अपने वाले उच्च वर्ण के शुद्ध-सनातनी हिन्दू क्रांतिकारी भी तो चाहियें. आज़ादी के अमृत महोत्सव के पोस्टरों से नेहरू को हटाने के बाद किसे रखें.  

हमने कहा- ठीक है तोताराम. हमारी जांघ पर फुंसी का एक बड़ा निशान है. कह देंगे जलियाँवाला बाग़ में हमें यहाँ  गोली लगी थी लेकिन हम यश और पेंशन के भूखे नहीं हैं इसलिए आज तक किसी को बताया तक नहीं. 

  

 


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Dec 22, 2021

विशुद्ध राष्ट्रीय मैचमेकर डॉट कॉम

विशुद्ध राष्ट्रीय मैचमेकर डॉट कॉम     


कल पकौड़ियाँ बनी थीं,  कुछ बच गईं तो उन्हें कांजी में डाल दिया था. आज उन पर दही के छींटे मारकर पत्नी चाय के साथ ले आई, बोली- लो, आज बिना मांगे ही चाय के साथ सरप्राइज़. 

तोताराम बोला- ठीक है, पकौड़ा तलना रोजगार हो सकता है लेकिन चाय के साथ दही वाले पकौड़े एक अस्वास्थ्यकर, असांस्कृतिक और देशद्रोही मेल है. इसे अंग्रेजी में 'मिसमैच' कहते हैं. यह वैसे ही नाकाबिले बर्दाश्त है जैसे झारखंड में बिरसा मुंडा और हाफमैन एक साथ.

हमने पूछा- यह हाफमैन क्या कोई आदिमानव है जिसे झारखंड के जंगलों में खोजा गया है और इसके माध्यम से नृतत्व शास्त्र और सामाजिक विकास के अध्ययन के क्षेत्र में कोई नई शोध प्रकाश में आएगी ?

बोला- नहीं. ये  जून 1857 में जन्मे जोहान्स बैप्टिसेट हाफ़मैन (फ़ादर हाफ़मैन) दरअसल एक जर्मन नागरिक थे. वे महज़ 20 साल की उम्र में भारत आ गए. यहां आने के बाद उन्होंने आसनसोल और कलकत्ता (अब कोलकाता) में धर्मगुरु बनने की ट्रेनिंग ली.

फ़ादर हाफ़मैन को 1891 में पादरी की उपाधि मिली. 1892 में वे बंदगांव आए. मुंडा आदिवासियों की भाषा मुंडारी सीखी. उनकी संस्कृति, समाज और इतिहास के बारे में जाना और फिर मुरहू के पास के गांव सरवदा आ गए. वहां एक विशाल कैथोलिक चर्च की स्थापना कराई. यह दक्षिणी छोटानागपुर के सबसे पुराने चर्चों में शामिल है.

सरवदा अब झारखंड के खूंटी ज़िले के मुरहू प्रखंड का हिस्सा है. बहुत कम घरों वाले सरवदा गांव के इसी चर्च परिसर में सभी आदिवासियों के सहयोग से दिसंबर 2018 में फ़ादर हाफ़मैन की प्रतिमा स्थापित की गई थी. आदिवासी उन पर फूल चढ़ाते हैं और वहां मोमबत्तियां जलायी जाती हैं. उन्हें इसलिए याद किया जाता है, क्योंकि उन्होंने सीएनटी एक्ट लागू करवाने में अहम भूमिका निभायी थी.

उपलब्ध गजेटियर के मुताबिक़, उनके कहने पर ही उस समय की ब्रिटिश हुक़ूमत ने 1902 में आदिवासियों की ज़मीनों का सर्वे कराया. इस सर्वे में फ़ादर हाफ़मैन भी शामिल थे. उन्होंने एक 'ड्राफ़्ट बी' तैयार किया, जिसे सीएनटी एक्ट का प्राथमिक ड्राफ़्ट कहा जाता है. इसके बाद साल 1908 में सीएनटी एक्ट लागू किया गया. इसके कारण आदिवासियों की ज़मीनों के संरक्षण के कई पारंपरिक नियमों (जो कहीं दस्तावेज़ों में दर्ज़ नहीं थे) को क़ानूनी मान्यता मिल गई.

उससे पहले वे ग्राम सभाओं के मौखिक क़ानून थे. सीएनटी क़ानून आज तक इस इलाक़े में लागू है. इससे आदिवासी ज़मीनों (ट्राइबल लैंड) को क़ानूनी संरक्षण मिलता है. 

हमने कहा-  किन्हीं भोले-भाले लोगों के ज़मीन के अधिकार की सुरक्षा हो, कोई उनकी ज़मीनों के रिकार्ड में हेराफेरी नहीं कर सके, ऐसी व्यवस्था के बारे में सोचना, उसे लागू करवाना तो बड़ा पुण्य का काम है. वैसे आज भी सरकारें विकास के नाम पर आदिवासियों की ज़मीनें हथियाती है और अपने चहेतों को सस्ते में आवंटित कर देती हैं और आदिवासियों को ढंग से पुनर्वासित भी नहीं करती. 

बोला- ये सब विदेशी विधर्मी हैं जो किसी षड्यंत्र के तहत भारत आते हैं और यहाँ के वंचित, प्रताड़ित, अपमानित, दलित, अशिक्षित, गरीब लोगों का धर्मांतरण करवाते हैं.भारत को कमजोर करते हैं. यही काम इस्लाम वाले भी करते हैं. कभी लव जिहाद, कभी यूपीएससी जिहाद, कभी कोरोना जिहाद. पहले की बात और थी लेकिन अब इन्हें बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अगर तेरा यह हाफमैन आज जिंदा होता तो यूएपीए लगाकर जेल में ही आदिवासियों के ज़मीन संरक्षण के बहाने धर्मांतरण का षड्यंत्र रचने वाले स्टेंस स्वामी की तरह 'निल मैन' बना दिया जाता. 

अगर यह हाफमैन आदिवासियों के लिए खतरनाक नहीं होता तो आदिवासियों के महान नेता बिरसा मुंडा हाफमैन पर तीर क्यों चलाते ?

हमने कहा- यदि ऐसी बात है तो भारत के समर्थ और शक्तिशाली लोगों को चाहिए कि वे अपने देशवासियों का शोषण न करें, उन्हें दुखी न करें जिससे वे दूसरे धर्मों की और आकर्षित ही न हों. हाँ, जहां तह बिरसा मुंडा के हाफमैन पर तीर चलाने के कारण की बात है तो  इसका कारण तो कोई सच्चा देशभक्त ही बता सकता . जैसे कि कंगना रानावत जिसने गहन अध्ययन करके बताया कि भारत २०१४ में मोदी जी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के समय स्वतंत्र हुआ. अब वे यह भी शोध करने में लगी हुई है कि इस सृष्टि का प्रारंभ मोदी जी के साथ ही हुआ या एक दो दिन पहले भी हो सकता था.

बोला- लेकिन मुंडा जी ने हाफमैन पर तीर क्यों चलाया ?

हमने कहा- कई कारण हो सकते हैं. हो सकता है कि उसे आदिवासियों का हितैषी न समझकर कोई अंग्रेज अधिकारी समझ लिया हो क्योंकि आज भी अधिकतर भारतीय गोरे  रंग के हर व्यक्ति को अंग्रेज ही समझते हैं. जैसे ९/११ के समय अमरीका में दाढ़ी के कारण एक सरदार को मुसलमान  समझकर मार दिया गया.  वैसे हाफमैन ने आदिवासियों का कोई बुरा तो नहीं किया. और फिर क्या किसी भारतीय ने मुंडा समुदाय की भाषा 'मुंडारिका' के हाफमैन के १५ भागों के विश्वकोष जैसा तो दूर, कुछ भी काम नहीं किया ? ऐसे एकेडेमिक रुचि के व्यक्ति को दूसरों को गाली निकालने वाले वाट्सअपिये वारियर्स क्या समझेंगे. 

वैसे कभी-कभी कई विरोधी लगने वाली पैथियों- तकनीकों को भी तो एक साथ अपनाया जा सकता है जैसे मोदी जी योग भी करते हैं लेकिन कोरोना का टीका भी लगवाया कि नहीं ? रामदेव के साथ मिलकर दुनिया को योग और लौकी का ज्यूस बेचने वाले बालकृष्ण बीमार होने पर एम्स में भर्ती हुए कि नहीं ? क्रांतिकारी सावरकर जी अंग्रेजों से ६० रुपया महिना पेंशन लेते थे कि नहीं ?  बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर बनी सरकार में जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी उपमुख्यमंत्री बने थे कि नहीं ? जब सिकंदर बख्त ने एक हिन्दू महिला से शादी कर ली थी तो क्या जनसंघ के नेता उनके खिलाफ नारे लगाने गए थे कि नहीं ? फिर उन्हीं को केरल का राज्यपाल बनाया कि नहीं ? कभी कभी बेमेल से भी मेल कर लिया जाता है. 

'अर्थी दोषम न पश्यति या आपत्काले मर्यादा नास्ति'. ये तो अपने देव वाणी के दृष्टान्त हैं. 

बोला- लेकिन न्याय और सुशासन के लिए ये सब विभाजन और वर्गीकरण ज़रूरी हैं. देखने में तो सभी एक जैसे दीखते हैं. भागवत जी ने तो यह भी कहा है कि भारत के सभी धर्मों के लोगों का डीएनए एक ही हैं. ऐसे में वर्गीकरण ज़रूरी है. छुपकर बाली को मरने की योजना के तहत  राम ने सुग्रीव को बाली से लड़ने भेजा लेकिन वे दोनों की शकल में भेद नहीं आकर पाए और सुग्रीव पिटकर आ गया. इस समस्या के निराकरण के लिए राम ने सुग्रीव को माला पहनाकर भेजा और फिर युद्धरत भाइयों में से बाली को पहचानकर मार डाला. सो अब भी बिना वेशभूषा, दाढ़ी, टोपी के कैसे पहचानेंगे कि किसे पकिस्तान भेजना है, किसे गोली मारनी है. यदि कोई भगवा गमछा और तिलक के साथ लुंगी भी पहन कर घूमे तो फर्क कैसे पता चलेगा. ऐसे में यदि किसी हिन्दू को पाकिस्तान भेज दिया या उसकी मोब लिंचिंग कर दी गई तो कबाड़ा हो जाएगा .इसलिए सब को अलग अलग रखा जाना चाहिए. फिर चाहे बिरसा मुंडा और हाफमैन हो, गाँधी और गोडसे हो, साक्षी महाराज और राहुल गाँधी हो. ऐसे कन्फ्यूजन को समाप्त करने के लिए हम न तो 'ईश्वर अल्ला तेरो नाम' गाते और न ही ऐसे लोगों को पसंद करते. 

हमने कहा- तो फिर एक ही गोत्र में शादी के लिए खाप पंचायतें और हिन्दू शुद्धतावादी अंतर्धार्मिक शादियों पर फतवा क्यों जारी करते हैं. 

बोला- वह तो धर्म विरोधी है, पाप है.

हमने कहा- यह बात नहीं है. उसके पीछे वैज्ञानिक कारण है. यदि निकट संबंधों में गर्भाधान से संतानोत्पत्ति होगी तो संतान कमजोर, बीमार और अल्पजीवी होगी. इसी तरह से सभ्यताओं, संस्कृतियों और विचारों के मेल से यह दुनिया विकसित हुई है. जो दुनिया से अलग-थलग रहते हैं उन्हें 'कूपमंडूक' कहा जाता है. 

कूपमंडूक का अर्थ जानता है ना ? वैसे यह सिद्धांत दिया किसने है ?

बोला- कोई अनपढ़ आदमी नहीं है. भाजपा के प्रोफ़ेसर रह चुके राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा हैं.जिन्होंने ११ दिसंबर २०२१ को रांची में  एक निजी महाविद्यालय में आयोजित एक  बौद्धिक में कही. 

हमने कहा- ये ऐसे ही बौद्धिक कार्यकर्त्ता हैं.  ये उसी समुदाय से आते हैं जिन्होंने मुसलमानों के आने पर सबसे पहले उर्दू सीखी और शेरवानी और पायजामा पहनना शुरू किया. और अंग्रेजों के आने के बाद अंग्रेजी सीख कर उनके मुलाजिम हो गए. कल अगर मुस्लिम लीग का प्रधानमंत्री बन जायगा तो ऐसे  ही लोग सबसे पहले जाकेट, कुरता और तिलक छोड़कर 'अस्सलाम वाले कुम' करने लगेंगे. देखा नहीं, अमरीका में निक्की हेली हो या बॉबी जिंदल ईसाई बने कि नहीं ? लन्दन के मेयर सादिक ने तो धर्म परिवर्तन नहीं किया. 

समझ. इंसानियत और राजनीति में फर्क है ? इंसानियत की राजनीति करने वाले लोग अब कहाँ हैं ? सब चुनाव जीतने के लिए 'फेंसी ड्रेस शो' में व्यस्त हैं.  




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Dec 19, 2021

मन चंगा तो...

मन चंगा तो...

 

जिस तरह जब चुनाव आने वाले होते हैं तब सरकारों के लिए कोई भी यम-नियम लागू नहीं होते।

समस्त वर्जनाएं टूट जाती है।सभी बंधन ढीले हो जाते है। कहीं भी, किसी भी प्रकार कोरोना प्रोटोकाल

का उल्लंघन करके रैली, प्रतीकात्मक शिलान्यास, उदघाटन, झूठे वादे  सभी कुछ जायज़ लेकिन सामान्य

आदमी की गर्दन इस उस बहाने पकड़े रहेंगे। सामान्य आदमी का पीछा नहीं छूटता।   शक्तिशाली और

चतुर लोगों ने सामान्य लोगों के लिए नियाम बनाए लेकिन प्राचीन काल से ही खुद की सुविधा के लिए रास्ते

निकाल लिए तभी संस्कृत में कहा गया है- आपत्काले मर्यादा नास्ति। खुद इसी नश्वर संसार में अनंत काल

तक बने रहना चाहेंगे और दूसरों के लिए मोक्ष के लुभाने वाले अविश्वसनीय ऑफर।  

 हमें उस लोक में विश्वास नहीं और यह लोक सुधारने का समय निकल चुका सो निश्चिन्त हैं।  

  

बरामदे की जगह कमरे में ही अखबार पढ़ रहे थे कि तोताराम ने हमें वहीँ  ‘दस्तयाब’ कर लिया।

यदि मध्यप्रदेश में होते तो यह ठेठ उर्दू शब्द काम में नहीं ले सकते थे क्योंकि शिवराज सिंह जी ने

ऐसे शब्दों को हटाने के लिए कह दिया है।तो तोताराम ने हमें ‘शयन कक्ष’ में ही ‘हस्तगत’ कर लिया

और बोला- अरे आलसी, आज अमृत सिद्धि योग में मोक्षदा एकादशी के पावन दिन भी बिस्तर में ही

पड़ा है !उठ, गंगा या किसी पवित्र स्थान पर नहीं तो कम से कम बाथरूम में जाकर की दो लोटे डाल ले। 

देख, आज के विश्वसनीय अखबार के मुखपृष्ठ पर गेरुए वस्त्रों में गंगा में डुबकी लगाकर स्वर्णिम धोती, कुरता

और अंगवस्त्रम धारण करके बाबा विश्वनाथ कोरिडोर में मुस्कराते हुए प्रवेश करते हुए मोदी कितने शोभायमान

हो रहे हैं !  और एक तू है जो चार-चार कपड़े पहने रजाई में घुसा पड़ा है।


हमने कहा- तोताराम, मोक्ष कर्म से मिलती है, दिखावे और कर्मकांड से नहीं मिलती।  दुनिया अंतकाल में

मोक्ष के लिए  गंगा के किनारे आकर पड़ जाती है जबकि कबीर अपना अंतिम समय जानकर मगहर चले गए

जहां के बारे में कहा गया है कि वहाँ मरने वाले को मोक्ष प्राप्त नहीं होती। कबीर यही सिद्ध करना चाहते थे कि

कर्मों को संवारो। सो हमने कोई ऐसे कर्म नहीं किये हैं कि नरक का डर लगे। 


जहां तक मोदी जी के गंगा में डुबकी लगाकर बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने की बात है तो उनका क्या ? वे

छप्पन इंची सीने वाले हैं। ब्रह्मचर्य का तेज है। पद की गरमी है। और फिर अभूतपूर्व हिन्दू-हृदय-सम्राट और

धर्म-प्राण बनने की उत्कट आकांक्षा। इसलिए वे माइनस ५ डिग्री में भी ठंडे पानी से स्नान कर सकते हैं. क्या

किसी नेता को भयंकर सर्दी में भी कम्बल ओढ़े, टोपा लगाए मंच पर भाषण देते देखा है ? पद में बहुत पॉवर

होता है. सब कुरते और जाकेट में बिना मफलर के दिखाई देते हैं. लेकिन हमारे वश का नहीं है।यहाँ तो सारे

दिन धूजते रहते हैं. टोपे पर भी मफलर खींचे रहते हैं . हम तो सूरज सिर पर आने के बाद ही धूप में बैठकर

नहायेंगे। यदि कभी बहुत ठण्ड पड़ी तो केंसिल भी कर सकते हैं। मन चंगा तो कठौती में गंगा। हमें न वोट चाहिए

और न ही दान-दक्षिणा। हम ब्रह्म को जानने वाले ब्राह्मण है. हम ब्राह्मणत्व का धंधा नहीं करते. 


बोला- मोदी जी के लक्ष्य इतने छोटे नहीं हैं । उनका तो अवतार ही हिन्दू धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हुआ है

अन्यथा वे तो स्थितप्रज्ञ हैं, सभी सांसारिक विकारों और कामनाओं से मुक्त हैं। विष्णु के अवतार कृष्ण को

क्या ज़रूरत थी इस नश्वर संसार में आकर बिना बात के झंझटों में पड़ने की लेकिन क्या करें- धर्म संस्थापनाय

युगे युगे संभव होना ही पड़ता है।  


तभी पत्नी चाय ले आई। कल बेटी का जन्मदिन था सो दो प्लेटों में एक एक केक का टुकड़ा और पकौड़े भी थे। 


हमने कहा- एक ही प्लेट रहने दो।  तोताराम का तो आज मोक्षदा एकादशी का व्रत है। 


बोला- भाभी, प्लेट दे दे। मन इच्छा भोजन करके आत्मा को तृप्त करना भी एक प्रकार का मोक्ष ही है। यदि कोई

आत्मा अतृप्त होकर ऊपर जाती है तो उसकी मोक्ष नहीं होती। वह फिर जन्म लेती है और संसद और राष्ट्रपति

भवन के चारों मंडराती रहेगी और सत्ताधारियों को डराती रहेगी . 



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Dec 9, 2021

नेचुरल कॉल

 नेचुरल कॉल  


आशा, इच्छा, कामना आदि सब एक ही श्रेणी के विकार हैं. भूख, प्यास, नींद आदि भी अपना दबाव बनाते हैं और मनुष्य को अपने अनुसार संचालित करते हैं लेकिन ये मूल प्रवृत्तियों में आते हैं जो सभी जीवों को व्यापते हैं. इसीलिए इन्हें नेचुरल कॉल कहा जाता है.मनुष्य चूँकि नेचर (प्रकृति) को अपने वश में करना चाहता है इसलिए वह जप-तप, अभ्यास, वरदान आदि के द्वारा बार-बार प्रकृति की सीमाओं से पार जाना चाहता है,जैसे बुढ़ापे,मृत्यु पर नियंत्रण करने की वैज्ञानिक या वैज्ञानिक कोशिशें. 

इसी क्रम में फेंटेसियों, पुराणों, कहानियों में यह इच्छा, कामना पाई जाती है. भीष्म को उनके पिता ने इच्छा-मृत्यु का वरदान दिया था. वही वरदान उनके गले ही हड्डी बन गया अन्यथा मर जाते यथासमय लेकिन नहीं जी, शुभ मुहूर्त का इंतज़ार करते हुए लेटे हैं शर-शय्या पर. हो सकता है अटल जी भी इच्छा-मृत्यु थे इसलिए उन्होंने प्रयत्न करके १५ अगस्त का दिन टाल दिया या कुछ और हुआ हमें पता नहीं. लेकिन १५ अगस्त के उत्सव में एक ऐसा विघ्न पड़ जाता जिसे निगलना और उगलना दोनों  मुश्किल होता.वैसे राजस्थान के कुछ पुराने राजघरानों में तो इसमें कुछ भी परेशान होने की बात नहीं हुआ करती थी. कहते हैं नया राजा मृत राजा के शव पर पैर रखकर सिंहासन पर चढ़ता था. प्रतीकात्मकता में तो यही सच भी है. 

पहले के, मतलब ५०-६० साल पहले के सहज ग्रामीण-कृषि सभ्यता के लोग व्यर्थ की औपचारिकताओं और शिष्टाचारों में नहीं फंसते थे. उनके पास ऐसी सुविधा भी नहीं थी. जैसे ईमानदारी प्रायः क्षमता (अफोर्ड कर सकना) पर निर्भर है अन्यथा मज़बूरी बहुत बुरी होती है. ही कैन अफोर्ड तो बी ऑनेस्ट.

आजकल वैज्ञानिक दृष्टि से विकसित समाज में धनबल से लोग आंशिक रूप से 'इच्छा-मृत्यु' हो सकते हैं लेकिन कुछ ऐसे विकार हैं जिन पर आज भी धनबलियों,  बाहुबलियों और पदबलियों का भी कोई वश नहीं है. हालाँकि उनके उच्चवर्गीय शिष्टाचारों में छींक, पाद, डकार, उबासी, अंगडाई आदि सहज, प्राकृतिक और तृप्तिदायिनी क्रियाएं भी एक अपराध की तरह प्रकट की जाती हैं. इन्हें दबाना, टालना शिष्टाचार सनाझा जाता है, साहबजादों विशेषकर साहबजादियों को इसकी विशेष ट्रेनिंग दी जाती है फिर भी सदैव कामयाबी नहीं मिलती. 

पहले हमारी भाभी, जब नई नई आई थी, अपनी छींक को दबाने के चक्कर में बड़ी अजीब तरह से छींकती थी. बाद में आदत पड़ गई. अब वह अस्सी के पार है, परदादी बन गई लेकिन छींक खुल कर नहीं ले पाती. 

हम कुछ इसी प्रकार की मानवता की बड़ी समस्याओं को लेकर 'आत्म-बौद्धिक' में मग्न थे कि तोताराम ने झकझोरा- कहाँ खोये हो, प्रभु ?

हमने कहा- कुछ नहीं. हम तो खैर, एक तुच्छ और निरीह प्राणी हैं लेकिन आज हम बड़े-बड़ों की मजबूरियों और शर्मिन्दगियों के बारे में सोच रहे थे. 

बोला- तो मेरा भी कुछ ज्ञानवर्द्धन करें, आदरणीय.

हमने कहा- अभी तीन चार दिन पहले ग्लासगो में आयोजित जलवायु पर आधारित एक बहुत बड़े अंतर्राष्ट्रीय      कार्यक्रम  COP26   में भाग लेने के लिए अमरीका के राष्ट्रपति ब्रिटेन गए हुए थे. वहाँ वे शाही परिवार से भी मिले. इस कार्यक्रम में उन्होंने गैस छोड़ दी. 

बोला- क्या भोपाल के गैस कांड जैसा कुछ हो गया ?

हमने कहा- कोई ऐसा बड़ा कांड तो नहीं हुआ, जन धन की हानि भी नहीं हुई लेकिन दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की भद्द ज़रूर पिट गई. 

बोला- मतलब ?

हमने कहा- मतलब यह कि इस गैर इरादतन किन्तु अशोभनीय कृत्य 'अपान वायु निष्क्रमण' से कोमिला आदि  सभी विशिष्ट लोग शर्म से लाल हो गए. 

बोला- शब्द तो बहुत संस्कृत सम्मत लगता है. इसमें शर्म की क्या बात है ? ये तो गर्व पैदा करने वाली देववाणी के शब्द हैं.

हमने कहा- लेकिन इनका आम भाषा में अर्थ है कि अमरीका के राष्ट्रपति श्री जो बाईडेन ने इतने जोर से पादा कि सभी भद्र लोग शर्म से लाल हो गए. 

बोला- हो सकता है उन्होंने पाद की दुर्गन्ध से बचने के लिए 'कुम्भक' कर लिया हो. ज्यादा देर तक कुम्भक करने से भी मुंह लाल हो जाता है.वैसे क्या भद्र लोग पादते नहीं ? 

हमने कहा- करते तो सब कुछ हैं लेकिन उनके समाज में ये पांच नेचुरल कॉल पञ्च विकार माने जाते हैं. इन्हें सार्वजनिक और सहज रूप से संपन्न नहीं करना चाहिए. जहां तक हो सके दबाना चाहिए. 

बोला- इसका मतलब विज्ञान को अब इस प्रकार की कुछ दवाइयां या व्यायाम ईजाद करने चाहियें कि मनुष्य  इन विकारों को रोक सके मतलब कि इच्छा-मृत्यु की तरह  इच्छा-पाद, इच्छा-डकार, इच्छा-छींक आदि बन सके. मुझे तो पता ही नहीं था मास्टर, कि बड़े लोगों का  जीवन इतना बंधनमय और बनावटी होता है. उनसे तो हम सामान्य लोग ही अच्छे जो ढंग से पाद, डकार और छींक कर संतुष्टि तो प्राप्त कर सकते हैं. 

हमने कहा- हो सकता है विकास के नाम नोटबंदी, घरबंदी की तरह 'पादबंदी' का भी कोई क्रन्तिकारी निर्णय आ जाए.


 





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Dec 6, 2021

आत्मनिर्भर भारत


आत्मनिर्भर भारत 


हम अब भी संचार की समृद्ध परंपरा के अनुरूप और मोदी जी द्वारा जियो का प्रचार करने के बावजूद; बीएसएनएल के लैंड लाइन फोन का उपयोग करते हैं. किसी को भी फोन करने पर बात होने से पहले सुनाई देता है- 'आप सबके साथ और प्रयास से भारत ने १०० करोड़ टीकाकरण की बेमिसाल उपलब्धि हासिल की है. अपना टीकाकरण अवश्य पूरा करें और कोविड अनुरूप व्यवहार करें'.  हमने इस उपलब्धि के लिए मोदी जी को धन्यवाद नहीं दिया है. आप चाहें तो इसके लिए वाट्रसअप ग्रुप में हम पर यूएपीए लगाने का अभियान भी चला सकते हैं. हालांकि मोदी जी कोरोना प्रोटोकोल को तोड़कर ग्लासगो में लोगों से गले मिल रहे हैं लेकिन हम अब भी कोरोना के अनुरूप व्यवहार करते हैं. लोगों को दूर से ही सलाम, सॉरी, ( कहीं तेजस्वी सूर्य नाराज़ न हो जाएँ ) नमस्कार करते हैं. 

हजामत बढ़ गई है. हमारा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ बनने का कोई इरादा नहीं है. वैसे भी लुंगी बनियान में गुरुदेव तो क्या लगेंगे, हाँ, कोई देशभक्त मुल्ला जी समझकर ठुकाई ज़रूर कर देगा. सो पड़ोस में रहने वाले एक क्षौर कर्मी से तीन बार कहा लेकिन उसका कार्यक्रम नहीं बना. इसलिए जैसे गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में सलून वाले के हजामत बनाने से मना कर देने, पर खुद ही अपना मुंडन कर लिया था वैसे ही हमने भी ट्रिमर से खुद ही घोटमघोट कर लिया. बिना मोदी जी के किसी सहयोग के हमारा भारत तो आत्मनिर्भर हो गया. 

तोताराम ने आते ही हमारे मूंड की तरफ इशारा करते हुए पूछा- यह क्या है ?

हमने कहा- यह हमारा सिर है जिसका कल दोपहर में मुंडन किया गया है.

बोला- क्यों, क्या तुझे देश की १०० करोड़ टीकाकरण की उपलब्धि पर कोई प्रसन्नता नहीं हुई ?यह तो अपनी सजी-धजी सेल्फी के साथ मोदी जी को धन्यवाद भेजने का क्षण है. 

हमने कहा- चीन एक महीने पहले ही सवा दो सौ करोड़ टीके लगा चुका है. और फिर ये सब तो रुटीन काम हैं. यह क्या कि रोज-रोज इस-उस काम के लिए धन्यवाद-धन्यवाद का तमाशा करते रहो. कल को सूर्योदय या पेट साफ़ होने तक के लिए धन्यवाद देने लगें. ठीक है रिटायर्ड  हैं लेकिन इतने निठल्ले भी नहीं हैं.

बोला- तो कम से कम यह शोकसूचक मुंडन तो नहीं करवाना था. 

हमने कहा- तो दाढ़ी बढ़ाना भी तो एक प्रकार का हठयोग और विषाद ही है. याद है, राजनारायण ने प्रण किया था कि जब तक इंदिरा गाँधी को चुनाव में हरा नहीं दूंगा तब तक दाढ़ी नहीं कटवाऊँगा. जैसे मोदी जी ने प्राण किया है कि जब तक देश को कांग्रेस मुक्त नहीं कर दूंगा, पेट्रोल ५०० और गैस २००० हजार पर नहीं पहुंचा दूंगा तब तक दाढ़ी नहीं बनवाऊँगा वैसे ही जब तक भारत २०-२० विश्व कप में पाकिस्तान को १० विकेट से नहीं हरा देगा तब तक हम हर महिने अपना मुंडन करते रहेंगे. 

और हमारे मुंडन करवाने से मोदी जी के दाढ़ी और केश न कटवाने के बीच एक राष्ट्रीय संतुलन भी स्थापित हो जाएगा.  

बोला- यह भी तो हो सकता है कि इस चक्कर में तेरी टांगों में उलझने लगे.  

  


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Dec 2, 2021

सेल्फी का सेल्फ कोंफिडेंस

सेल्फी का सेल्फ कोंफिडेंस   


हमने कहा- तोताराम,  तुझे याद है ना, उमा भारती का मानवीय गरिमा को गिराने वाला अहंकारी स्टेटमेंट ?                                

बोला-  कि ब्यूरोक्रेसी हमारी चप्पलें उठती है. लेकिन इसमें गलत क्या है ? जो चप्पलें नहीं उठाता उसका वही हश्र होता है जो चन्द्रसिंह गढवाली का हुआ. पेशावर में निहत्थे सत्याग्रहियों पर गोली चलाने से इनकार करने पर अंग्रेज सरकार ने उनकी वर्दी फाड़कर सेना से निष्कासित कर दिया गया और उनकी समस्त संपत्ति जब्त कर ली गई.  कोई पेंशन भी नहीं मिली.बड़ी मुश्किल से वकील उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलवाने में सफल हुआ. जबकि कुछ समझदार लोग माफ़ मांगकर सेल्यूलर जेल की यातनाओं से भी बचे रहे और उस सस्ते ज़माने में साठ रुपया महिना पेंशन आजीवन पेलते रहे.  ऐसे ही लोगों को आज भी नौकरी से रिटायर होते ही तत्काल राज्यसभा में भेज दिया जाता है. इसलिए एक समझदार ब्यूरोक्रेट को नेताओं की चप्पलें उठाने को अपना सौभाग्य समझना चाहिए. सत्ता से लाभान्वित होते रहने के लिए यदि सत्ताधारी का थूक भी चाटना पड़े तो उसे आपदा में एक अवसर मानना चाहिए.   कभी भी मध्य प्रदेश के युवा आई ए एस अधिकारी की तरह धूप का चश्मा लगाकर प्रभु के सामने नहीं जाना चाहिए. प्रभु से अधिक स्मार्ट दिखने का अपराध कभी नहीं करना चाहिए.

हमने कहा-  तभी इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. लखनऊ के पुलिस आयुक्त ध्रुव कांत ठाकुर ने प्रियंका गाँधी के साथ सेल्फी लेने वाली महिला पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ जांच के आदेश दिए हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस की केंद्रीय डिवीजन के डीसीपी से कहा गया है कि वह इस बात की जांच करें कि क्या महिला पुलिसकर्मियों का सेल्फ़ी लेना पुलिस के नियम-क़ायदों का उल्लंघन है। डीसीपी की रिपोर्ट के बाद पुलिस आयुक्त ठाकुर इस संबंध में कोई फ़ैसला ले सकते हैं। 

बोला- बिलकुल आश्चर्य नहीं होना चाहिए. उन्हें तत्काल नौकरी से नहीं निकाला गया, यही गनीमत है. पुलिस का धर्म है सत्ताधारी के आदेश पर विपक्षियों को झूठे मामलों में फंसाना और अपने वालों के भरी दोपहर में सड़क पर किये गए अपराधों को छुपाना और जेल में ही उन्हें होटल जैसा ट्रीटमेंट देना. तभी तो जलियांवाला बाग़ के अपराधी  डायर को कोई सजा नहीं दी गई. 

अगर सेल्फी ही लेनी है तो किसी अलौकिक व्यक्तित्त्व के साथ लो,जैसे  मार्च २०१८ में वेंकैय्या नायडू के यहाँ आयोजित  'एक भारत : श्रेष्ठ भारत' नामक सांस्कृतिक कार्यक्रम में भगवान राम ने मोदी जी के साथ सेल्फी ली थी.यह क्या कि चाहे जिस किसी के साथ सेल्फी लेने लगे. अब ऐसे में कार्यवाही तो होगी ही.

सच्चे ज्ञानी और आशिक अपने प्रियतम को अपने दिल में ऐसे बसा लेते हैं कि मीरा की तरह- ना कहुं आती जाती. या जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली. कुछ आत्ममुग्धता में नार्सिसस की तरह सारी दुनिया को भूलकर अपनी ही सेल्फी लेते रहते हैं. .

हमने कहा- सेल्फी का यही अध्यात्म है  तभी सेल्फी लेते हुए मरने वालों में अपना देश नंबर वन है. 

बोला- सौ करोड़ टीकों की तरह एक और वर्ल्ड रिकार्ड. 


 



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Nov 27, 2021

चैन की नींद

चैन की नींद 


आजकल बड़ी अनिश्चय की स्थिति है हमारी. वैसे ही जैसे कृषि कानून वापिस लें तो जिन्होंने नए कानूनों के भरोसे राजमार्गों के साथ-साथ बड़े बड़े गोदाम बना लिए उन्हें क्या ज़वाब दें. वापिस न लें तो किसान नाराज़. नेताजी द्वारा सुधरने की चेतावनी देने के बाद भी न सुधरने वाले किसानों को समझाने वाली संवैधानिक स्वचालित जीप का उपयोग करें तो  मानवाधिकार वाले चीं-चीं करने लग जाते हैं. दुनिया के इन सिरफिरे लोगों को कैसे समझाएं. 

लेकिन हमारे इस अनिश्चय का कारण न तो राजनीतिक है और न ही आर्थिक. कारण है मौसम जो सरकारों और नेताओं से भी ज्यादा बेईमान होता है. साफ़-साफ़ 'गोली मारो सालों को..' जैसा घातक स्टेटमेंट देकर भी पलट जाता है. शाम को हलकी गरमी, आधी रात के बाद ठण्ड, पंखा चलाना खतरनाक. इन सबके बीच राजस्थान में चल रहा डेंगू का डर. इसी संघर्ष में ढंग से नींद नहीं आई. बरामदे में बैठने का मन नहीं हुआ. सिर में भी हल्का-हल्का दर्द. सिर पर सफ़ेद गमछा बांधे लेटे थे कि तोताराम ने कमरे में घुसते ही प्रश्न फेंका- किसलिए सिर पर कफ़न बाँध रखा है ?

हमने कहा- यह 'सबके साथ और सबके विकास' का मरणान्तक काल है. ऐसी स्थिति में कफ़न नहीं तो क्या सेहरा बांधें ? गीता में कृष्ण के सन्देश- 

हतो व प्राप्यससे स्वर्गम् जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् 

वाली 'विन-विन' सिचुएशन है. जियेंगे तो विकास का आनंद लेंगे और मर गए तो ऊपर जाकर स्वर्ग का मज़ा लेंगे. 

बोला- तुझे ही क्या आफत आ रही है ? रसोई गैस के दाम तो सबके लिए समानभाव से बढ़ रहे हैं. खुश हो कि देश १०० करोड़ टीकों का उत्सव मना रहा है. साफ़-साफ़ बता चक्कर क्या है ? 

हमने कहा- रात को ठीक से नींद नहीं आई. 

बोला- तेरी सोच में ही खोट है. अन्यथा सुना है मोदी जी को लेटते ही दो मिनट में नींद आ जाती है. यही हाल गाँधी जी का भी था. 

हमने कहा- न तो मोदी जी के कमरे के पास दिन-रात कुत्ते भौंकते हैं और न ही जब-तब टूटी सड़क की छाती कूटते बजरी और पत्थरों के ट्रेक्टर गुजरते हैं. फिर यह भी चिंता नहीं कि कोई बाहर सूखते कपड़े या जूते उठा ले जाएगा. या यह कि यदि समय पर नहीं पहुंचे तो दूधवाला दूध में पानी मिला देगा. अन्य पारिवारिक किचर-किचर भी नहीं. मोर तक को दाना देने वाले नियुक्त होंगे. न ही पद, पे और सुविधाओं को कोई खतरा क्योंकि उनका कोई विकल्प ही नहीं है. यही हाल गाँधी जी का था. उनका भी कोई विकल्प नहीं था. कौन आता अंग्रेजों की लाठियां खाने. चतुर लोग तो धार्मिक संगठन बनाकर या माफ़ी मांगकर एक निश्चित भत्ता प्राप्त कर रहे थे. 

हमारे पास न तो घोड़े हैं जिन्हें बेचकर सो सकें, न कोई चैन की बांसुरी है जिसे बजा सकें, 

बोला- गाँधी जी और मोदी जी के अतिरिक्त भी बहुत से व्यक्ति हैं जिन्हें चैन की नींद आती है. जबकि उनके पास न घोड़े हैं और न ही बांसुरी है, जैसे राष्ट्रवादी कांग्रेस से भाजपा में आए हर्षवर्द्धन पाटिल और वर्तमान में भाजपा के सांसद संजय पाटिल. दोनों का ही कहना और मानना है कि वे भाजपा में है इसलिए उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं है कि उनके यहाँ किसी प्रवर्तन निदेशालय या सी बी आई या एन एस ए का छापा पड़ेगा.  स्वतंत्र भारत के पहले आतंकवादी और गाँधी जी के हत्यारे का महिमामंडन करने में भी उन्हें न तो शर्म आती है और न ही किसी समाज और समरसता विरोधी अपराध का आरोप लगने का भय रहता है. 

हमने कहा- तोताराम सुना है, सत्ता में होने के कारण माननीयों और उनके नेताओं को अपने और अपने भक्तों के जघन्य से जघन्य अपराध खुद ही माफ़ कर सकने का अधिकार होता है. कोर्ट, कानून और संविधान सब गए भाड़ में. 

बोला- तभी तो बड़े से बड़े सेठ भी या तो चुनाव लड़कर सभी कानूनों से परे होना चाहते हैं या फिर कानून के ऐसे रखवालों को खरीदकर सर्वशक्तिमान बनना चाहते हैं. लेकिन तू कभी कभी अपने आदर्शवाद के चक्कर में हास्य-व्यंग्य भी लिखता है. तुझे तो और सावधान रहना चाहिए. 

हमने कहा- अपने राजस्थान में तो कांग्रेस का शासन है. 

बोला- लेकिन किसी को भी बात, बिना बात फँसा सकने वाले सभी विभाग तो किसी और के पास हैं. इसलिए अच्छी नींद के लिए अपने भगवान, भेष, भाव और भाषा बदल ले; नहीं तो आज मौसम के कारण नींद खराब हुई है, कल कोई और, किसी और बहाने से नींद ही क्या, तेरा मनुष्य जन्म खराब करवा देगा. 

  



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Nov 25, 2021

दूर दृष्टि : पक्का इरादा


दूर दृष्टि : पक्का इरादा 


मोदी जी के 'आत्मनिर्भर भारत' के नारे के बिना भी, हमने मोदी जी के जन्म के तीन साल पहले ही, अपने में बचपन में गांधी जी की बुनियादी शिक्षा के प्रभाव और पाठ्यक्रम के कारण आत्मनिर्भरता के सिद्धांत को समझ लिया था. और कुछ जो बचा-खुचा रह गया वह ज़िन्दगी ने सिखा दिया. वैसे ही जैसे मोदी जी को रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर चाय-विक्रय और बाद में संघ के प्रचारक की मज़बूरियों ने आत्मनिर्भर बना दिया. बस, फर्क इतना सा है कि उन्होंने विक्रय कला में जो  विशेषज्ञता हासिल की वह अब सरकारी उद्योगों को बेचने में काम आ रही है.और हमने गाँधी जी की शिक्षा से आत्मनिर्भरता का जो अर्थ समझा वह हमारे लिए समस्या बना हुआ है. हम भी गाँधी जी की तरह अपने सभी काम खुद ही करने की कोशिश करते हैं. कुछ अपनी स्वभावगत चंचलता और कुछ माँ की दूरदृष्टि कि हम शादी से पहले ही खाना बनाना सीख गए. स्कूल में तकली कातना और सिलाई का छोटा-मोटा काम सिखाया ही जाता था. रिटायर्मेंट से पहले तक हम अपने कपड़ों की छोटी-मोटी मरम्मत, काज, बटन, रफू तथा पट्टे वाला अंडरवीयर, पायजामा सीने जैसे काम कर लिया करते थे. 

 कमीज का ऊपर वाला बटन टूट गया था. अब सर्दी में उसे बंद करना पड़ा करेगा सो उसी को लगा रहे थे, तभी तोताराम आ गया, बोला- मास्टर, ताज्जुब है तेरी नज़दीक की दृष्टि अभी तक ठीक काम कर रही है. इस उम्र में आकर दूर की दृष्टि तो ठीक रहती है लेकिन नज़दीक वाली कमजोर हो जाती है.

हमने कहा- हाँ, बुढ़ापे में ऐसा हो जाता है जैसे अडवानी जी को अब भी अपने घर से राष्ट्रपति भवन में रखी कुर्सी साफ़ दिखाई देती है लेकिन बरामदे में रखी अपनी निर्देशक मंडल वाली दरी दिखाई नहीं देती. इंदिरा जी का नारा तो तुझे याद ही होगा- दूर दृष्टि, पक्का इरादा. वे बुढ़ापे के कारण दिल्ली में बैठे-बैठे स्वर्ण मंदिर तो देख पाती थीं लेकिन अपने नज़दीक ही हत्या का षड्यंत्र रचने वाले अपने दो अंगरक्षकों को नहीं देख पाईं. इसी तरह अमित शाह जी अपने हाथों की दूरबीन बनाकर ही उत्तर प्रदेश में जगह-जगह रात को गहने पहने, स्कूटी पर सुरक्षित घर जाती  लड़कियों को देख सकते हैं लेकिन मंच पर बैठे बाहुबालियों को नहीं. 

बोला- तो क्या तू अस्सी साल में जवान है  और तुझसे २२ साल छोटे अमित शाह बुज़ुर्ग हैं.  

हमने कहा- हम ज़िन्दगी भर १५-२० साल के बच्चों के बीच ही रहे सो हमारी कूटनीतिक समझ अभी तक किशोरों जितनी ही है. हाँ, जहाँ तक अमित शाह जी की बात है तो वे तो 'विश्वगुरु भारत' के चाणक्य हैं. गाँधी और नेहरू तक को एक वाक्य में निबटा देते हैं.   



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Nov 23, 2021

जो चाहसि उजियार....

जो चाहसि उजियार....    


खाना खाकर थोड़ा लेटे ही थे कि तोताराम ने हांक लगाई- अरे मास्टर, आज भी कम्बल में घुसा हुआ है. 

हमने कम्बल से मुंह बाहर निकाला तो बोला- आज तो कम से कम दाढ़ी बना लेता. अब तो मोदी जी ने भी ट्रिम करा ली. 

हमने कहा- ठीक है कि संसद में हमारा बहुमत नहीं है लेकिन क्या लोकतंत्र में इतनी भी स्वतंत्रता नहीं कि हम अपनी दाढ़ी को जिस आकार-फैशन की रखना चाहें, रख सकें.

बोला- आज तो रूप चौदस है. दाढ़ी बना, ढंग के कपड़े पहन और बाज़ार चलकर अपने रूप की छटा बिखेर.

हमने कहा- यस्य पार्श्वे टका नास्ति हाटके टकटकायते. जिसके पास में टका (रुपया) नहीं होता, वह बाज़ार में व्यर्थ में ताकता फिरता है. हम वहाँ जाकर अपनी तपस्या भंग नहीं करना चाहते. 

बोला- मुझे भी कौन बड़ी खरीददारी करनी है. बस,पच्चीस छोटे और दो बड़े दीये लाने हैं.

हमने कहा-हमारे पास तो पिछली दिवाली का एक दीया रखा है उसी को जला लेंगे.

बोला- कंजूस, अधार्मिक, राष्ट्रद्रोही, नास्तिक ! आज के दिन भी ! अरे, जिन राम को गाँधी नेहरू ने अयोध्या में घुसने नहीं दिया उसे योगी जी हेलिकोप्टर में बैठाकर सरयू तट लाये हैं. नाथपंथ तो निर्गुण भक्ति का ही एक रूप है फिर भी योगी जी ने अपने पंथ की कट्टरता को त्याग क,र जनता की भावनाओं का ख़याल रखते हुए राम के स्वागत में ९ लाख ५१ हजार दीयों का विश्व रिकार्ड बनाने का संकल्प किया है. और तू सनातनी, गृहस्थ, ब्राह्मण होकर भी राम के स्वागत से इतना उदासीन ! 

हमने कहा- तेल दो सौ के पार और घी पांच से ऊपर. सर्दी में मालिश भी लगता है सूखी ही करनी पड़ेगी. जब फोटो खिंच जायेंगे, उत्सव समाप्त हो जाएगा, रिकार्ड वाले संतुष्ट होकर चले जायेंगे तब देखना हजारों लोग इन दीयों के बचे हुए तेल के लिए लड़ते नज़र आयेंगे. ऐसी स्थिति में राम होते तो वे दीयों की बजाय अपनी प्रजा की आँतों के लिए तेल का इंतज़ाम करते. 

बोला- फिर भी ..

हमने कहा- फिर भी क्या ?  कौन योगी जी अपनी तनख्वाह या मठ के कोष में से खर्च कर रहे हैं. और खर्च करेंगे तो वोट प्राप्त करके सर्व सिद्धि कारक सत्ता प्राप्त करेंगे. सत्ता प्राप्त करने के बाद उसे कायम रखने के लिए शक्ति का प्रदर्शन ज़रूरी होता है. अब वे योगी नहीं, राजा हैं. वैसे भी मठाधीश एक प्रकार का राजा ही होता है. उसके पास अस्त्र-शस्त्रधारी चेले-भक्त होते हैं.हाथी-घोड़े-ऊंट, नौकर-चाकर होते हैं.हम तो सामान्य आदमी हैं तुलसी बाबा के अनुयायी.

बोला- भगवान राम के स्वागत में दीये जलाने का चार सौ साल का बैकलॉग है. उसे पूरा करने के लिए इतने दीये जलाने ज़रूरी है. और क्या तुलसी बाबा होते तो वे दीये नहीं जलाते ?

हमने कहा- जलाते क्यों नहीं. लेकिन वे भी हमारी तरह एक दीये से ही काम चला लेते. उन्होंने तो साफ़ कहा है-

राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार  

तुलसी भीतर बाहरहि जो चाहसि उजियार 

अर्थात यदि भीतर-बाहर ज्ञान और आचरण का उजाला चाहते हो तो जीभ रूपी द्वार की देहरी पर राम नाम की मणि का दीया धरो. एक ही दीये से अन्दर-बाहर आलोकित हो जाएगा. और यह दीया तेल का नहीं बल्कि एक चिंतामणि का प्रकाश है जो न तो किसी मोह-माया की आंधी से बुझेगा और न ही बार-बार तेल भरने का झंझट. 

याद रख, ज्यादा रोशनी अहंकार का प्रदर्शन है, जिसमें कुछ ढंग से नहीं दीखता. चकाचौंध में जो अपनी सामान्य दृष्टि  है वह भी ढंग से काम नहीं कर पाती. 

रामराज्य तेल के दीयों से नहीं, छोटे-बड़े सबके कल्याण से आएगा, नीरज भी तो कहते हैं- 

दिए से मिटेगा न मन का अँधेरा

धरा को उठाओ गगन को झुकाओ   





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Nov 17, 2021

सूरत जाने वाली डाइरेक्ट बस


सूरत जाने वाली डाइरेक्ट बस 


तोताराम ने बैठते ही ऑर्डर किया- एक फ्री डिश ले आ.

हमने कहा- यह कोई होटल नहीं है. और फिर जहां तक फ्री की बात है तो फ्री में तो गोबर, गू और गाली तक नहीं मिलती.

बोला- आज के इस रिकार्डी गौरवपूर्ण क्षण में  गू जैसी गन्दी चीज का नाम तो मत ले. 

हमने कहा-  यह देश तो जिंदा ही गौरव के भरोसे है. हम तो इस बात पर भी गर्व कर सकते हैं कि हम अब भी भले बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान से हंगर इंडेक्स में पीछे हैं लेकिन अब भी दुनिया के ग्यारह देशों से ऊपर हैं. कोरोना काल में हमने अस्सी करोड़ लोगों को तथाकथित फ्री पांच-पांच किलो सड़े अनाज के लिए भिखारियों की तरह लाइन में लगा दिया.  कोरोना काल में गंगा में तैरती लावारिश लाशों का रिकार्ड अब भी हमारे नाम ही है. 

बोला- लेकिन आज के शुभ दिन लोगों को 'लोचो' नामकी डिश फ्री खिलाने का रिकार्ड भी तो हमारे देश के नाम ही है. 

हमने पूछा- यह कौन सी डिश है ? हमें तो इसके नाम में ही जुमले वाला लोचा लगता है. 

बोला- गुजरात के सूरत में मोहित नाम का एक होटल मालिक देश में १०० करोड़ टीके लग जाने की ख़ुशी में दो दिन तक यह डिश फ्री खिलाएगा. 

हमने कहा- पक्का बिजनेसमैन है. पत्रकार को खिला दी होगी. और उसके जाते ही दुकान बंद. या फिर स्टॉक ख़त्म होने तक की कंडीशन लगा दी होगी. दस-बीस लोगों को पकड़ा दिया होगा एक-एक फाफडा. दो सौ रुपए में लाखों की पब्लिसिटी प्राप्त कर ली. 

बोला- तो तू कम से कम चाय के साथ एक सज्जन के लिए ही हलवा बनवा ले.

हमने कहा- जो जितना कम काम करता है वह उतना ज्यादा हल्ला करता है. चीन पहले ही २२३ करोड़ टीके  लगवा चुका है.

बोला- चीन में अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है इसलिए वह कोई भी आंकड़े दे सकता है. लेकिन हम तकनीकी और अनुशासन के लिए प्रसिद्ध देश जापान से पांच गुना टीके लगा चुके हैं.वह अगले सौ वर्षों में हमारे जितने टीके नहीं लगवा सकता.

हमने कहा- १०० करोड़ टीके कभी नहीं लगवा सकता क्योंकि उसकी जनसंख्या ही कुल १८ करोड़ है. जापान हमारा क्या मुकाबला करेगा. हम तो कुम्भ मेले में बिना टीके लगवाये ही बिल और आंकड़े जारी कर सकते हैं.और अपने राजस्थान में तो भागीरथ नामके एक आदमी को  कोई कोरोना वारियर स्वर्ग में जाकर भी टीका लगा आया. 

बोला- १०० करोड़ टीके लगवाने में ४१ लाख मानव दिवस लगे हैं. यदि एक आदमी यह काम करता तो उसे ११ हजार साल लगते. लेकिन यह इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि अब देश में पिछले सात साल से ऐसी सरकार है जो प्रगति में बाधा नहीं डालती. मोदी जी अपने संबोधन में कहा है- हमने यह उस राष्ट्र में कर दिखाया जहां सरकारों को २०१४ के पहले प्रगति में बाधा माना जाता था.   

हमने कहा- लेकिन हम तेरे लिए किसी फ्री डिश का प्रबंध नहीं कर सकते क्योंकि हमारे पास पेट्रोल, डीज़ल और रसोई गैस से २३ लाख करोड़ सूँतकर फ्री टीके का प्रचार करने का अधिकार नहीं है.

बोला- यह बात पहले ही बता देता तो मैं फ्री का 'लोचो' खाने के लिए सूरत चला जाता. अब तो डाइरेक्ट सूरत जाने वाली बस भी निकल गई होगी. 


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Nov 14, 2021

मास्टर जी, सौगात ले जाइए

मास्टर जी, सौगात ले जाइए 


हम और तोताराम आज भी बरामदे की बजाय कमरे में ही बैठे थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई- मास्टर जी, सौगात ले जाइए. 

हमने बैठे-बैठे ही उत्तर दिया- लगता है गलत पते पर आ गए हो. हम कौन किसी को राफाल का ठेका दिला सकते हैं जो कोई हमें सौगात भेजेगा. 

तोताराम बीच में कूद पड़ा, बोला- एक बार देख तो ले. किसी के तोहफे का इस तरह निरादर नहीं करना चाहिए. 

हमने कहा- पहले सौगात और अब यह तोहफा ! हम इतने अधार्मिक और हिंदुत्व विरोधी नहीं है जो इसे स्वीकार करें. उपहार होता तो बात और थी.

बोला-  सौगात और तोहफा या गिफ्ट सब उपहार के ही तो पर्यायवाची हैं. इससे क्या फर्क पड़ता है ?

हमने कहा- तुझे पता नहीं, ये मुसलमान और ईसाई इसी तरह हमारी संस्कृति और धर्म को नष्ट करते हैं. आज उपहार को सौगात और तोहफा का रहे हैं कल को स्वर्ग को जन्नत कहने लगेंगे. भले ही हमें नरक में जाना पड़े लेकिन मुसलमानों की जन्नत और ईसाइयों के हैवन में नहीं जायेंगे. प्यासे मर जाएँ लेकिन पियेंगे जल ही; वाटर पीने से तो रहे. 

बोला- आज अचानक तेरे वसुधैव कुटुम्बकम और सर्व धर्म समभाव को क्या हो गया है. कैसी तालिबानों की सी बातें करने लगा है. कहीं दिवाली पर अब्राहिमी लोगों द्वारा 'फैब इण्डिया' के  विज्ञापन के बहाने भारतीय संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने के सांप्रदायिक षड्यंत्र की आड़ में बेंगलुरु के सूर्या वाले बहकावे में तो नहीं आ गया ?

हमने कहा- अपनी वाणी को संभाल. पूरा नाम ले- तेजस्वी सूर्य. अब जो सत्तर के हो गए हैं वे ढलते सूर्य हैं. पता नहीं कब निर्देशक मंडल में जा बैठें या झोला उठाकर चल दें. यह चढ़ता हुआ तेजस्वी सूर्य है. प्रज्ञा की तरह भविष्य इसी का है भले ही कोई 'मन से माफ़' करे या न करे. न करे तो अपने घर बैठे.  अब तो इन्हीं की चलेगी.

तभी अब तक हमारी चर्चा से बोर हो रहा बेचारा 'सौगात की आवाज़' लगाने वाला बोला- मास्टर जी, मैं तो अखबार वाला हूँ.  मेरे पास मोदी जी द्वारा भेजी किसी वस्तु की सौगात नहीं है. मैं तो पहले पेज पर छपे समाचार को लेकर आपसे मज़ाक कर रहा था जिसमें लिखा है- मोदी जी की केन्द्रीय कर्मचारियों की दिवाली पर ३% डीए की सौगात. 

हमने कहा-  तेरा यह 'मज़ाक' नहीं चलेगा. हाँ, 'परिहास' करे तो बात और है. और हाँ, 'डीए की सौगात' के  अब्राहिमी आदेश को 'महँगाई भत्ते में तीन प्रतिशत की वृद्धि के उपहार'  के हिंदुत्त्ववादी आदेश में बदलने के लिए हम मोदी जी को पत्र लिखेंगे. 

हम तीन प्रतिशत डीए के लिए धर्म को संकट  में नहीं डाल सकते. 

अखबार वाला बोला- मास्टर जी, लगे हाथ मोदी जी को यह भी लिख देना कि संस्कृत में 'स्वतंत्रता' और 'स्वाधीनता' जैसे शब्दों के होते हुए वे 'आज़ादी' के ७५ साल का महोत्सव क्यों मना रहे हैं.


 



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Nov 12, 2021

कामचोरी और मक्कारी के ६० साल


कामचोरी और मक्कारी  के ६० साल 


हमारे यहाँ शेखावाटी में इस साल ठण्ड दस दिन पहले शुरू हो गई. कल दिन में ठीक-ठाक हवा भी चली. बदलते मौसम में यदि आदमी सावधान न रहे तो जुकाम होने की अधिक संभावना रहती. कहावत है- 

पावक बैरी रोग रिण सपनेहुँ राखिय नाहिं.

ये थोड़े ही बढ़हिं पुनि महा जातन से जाहिं.

सो आती सर्दी में ठण्ड खा जाने की सभी संभावनाओं को निरस्त करने के लिए हम आज बरामदे में नहीं बैठे.

पहले तो तोताराम ने बरामदे के पास से ही आवाज़ दी. कोई उत्तर न मिलने पर अन्दर ही आ गया. बोला- लोग तो आज से सुबह-सुबह कार्तिक स्नान के लिए नदी-तालाबों पर जाने लगे हैं और तू इस पुण्य पुरुषोत्तम मास में कमरे में घुसा पड़ा है. तेरा कैसे उद्धार होगा.

हमने कहा- अगर जुकाम, निमोनिया और फिर कहीं डेंगू हो गया तो हमारा किसी प्रधान मंत्री आयुष्य योजना में इलाज़ होने वाला नहीं है. डेंगू टेस्ट का भी कोई ठिकाना नहीं. कौन, किस टेस्ट का कितना मांग ले. इसलिए यह स्वघोषित लॉक डाउन ही ठीक है. अभी-अभी प्रधानमंत्री जी ने १०० लाख करोड़ के गति-शक्ति वाले प्रोजेक्ट का हिसाब किताब दिया है, उसी को समझ रहे थे.

बोला- कोई बाध्यता तो नहीं थी हिसाब देने ही.  फिर भी मोदी जी हैं कि' मन की बात' की तरह किसी से कुछ छुपाते नहीं.सबको सब कुछ बता देते हैं. एकदम ट्रांसपेरेंट. वैसे तुझसे अपनी पेंशन तो ढंग से गिनी नहीं जाती और बात कर रहा है एक सौ लाख करोड़ की.अगर उनका यह गति-शक्ति प्रोजेक्ट कुछ समझ में आये तो मुझे भी बताना. 

हमने कहा- हमें तो इस उम्र में 'गति' से यही समझ में आता है कि बिना ज्यादा दुर्गति के यथासमय सद्गति हो जाए. यदि प्रेमचंद की कहानी 'सद्गति' जैसा कुछ हो गया तो परलोक का तो पता नहीं लेकिन इस लोक में ज़रूर तमाशा हो जाएगा.वैसे मोदी जी हर काम में 'तीव्र गति' के शौकीन हैं. समय बर्बाद नहीं करना चाहते. हनुमान जी की तरह 'खग को खगराज को वेग लजायो' में विश्वास करते हैं. जिससे देश, दुनिया और आकाश-पाताल सबको एक साथ संभाल सकें.लेकिन क्या किया जाए, 'प्रथम ग्रासे की मक्षिका पातः' हो गया.  देश में कोयले की कमी से बिजली का संकट आ गया. इसीलिए हम सुबह-सुबह लैपटॉप पर नेट का काम निबटा रहे थे. उसके बाद क्या पता कब. कितनी देर की बिजली कटौती हो जाए. खराब हो तो भी बिजली के ८१०/-रुपये के मिनिमम बिल की तरह भले ही कनेक्टिविटी न मिले पर नेट का भी तयशुदा बिल तो आएगा ही.  

बोला- और क्या समाचार हैं ?

हमने कहा- और तो बस, मोदी के सेवा और समर्पण के बीस वर्ष की चर्चा है, १३ वर्ष गुजरात की सेवा और विगत सात वर्षों से देश की सेवा. अब कामना कर कि आगे भी आजीवन समस्त विश्व की सेवा करते रहें. 

बोला- हमने भी तो साठ वर्ष सेवा की है. चालीस साल बच्चों को पढ़ाकर राष्ट्रनिर्माण के रूप में और अब विगत २० वर्षों से  बरामदे में बैठकर विश्वा कल्याण का चिंतन करते हुए. भगवान ने चाहा तो दस-बीस साल और भी समर्पण के साथ सेवा करते रहेंगे. तो क्यों न आज हम भी सेवा और समर्पण के साठ वर्ष सेलेब्रेट कर लें. कुछ मीठा हो जाए. 

हमने कहा- यह सेवा भी कोई सेवा है. सेवा करने वाले जीवन के सभी सुख छोड़कर दिन में १८-१८ घंटे काम करते हैं. तूने क्या सेवा की है ? ४० साल की मास्टरी को कामचोरी माना जाएगा क्योंकि आधा समय चाय पीने में और आधा समय पर-निंदा में बिताया. यदि तुम ही सेवा करते होते तो देश की शिक्षा का यह हाल क्यों होता ? लोग अभी तक यही तय नहीं कर पाए हैं कि देश भक्त गोडसे था या महात्मा गाँधी. दोनों तो एक साथ महान हो नहीं सकते राम और रावण, कंस और कृष्ण, महिषासुर और दुर्गा. 

रही बात रिटायर्मेंट से बाद सरकार पर पेंशन का बोझ डालते हुए बरामदे में बैठकर चाय के साथ परनिंदा करने की तो यह शुद्ध हरामखोरी है. चुपचाप जितनी मिल रही है पेंशन लेता रह. कहीं नोटबंदी की तरह मोदी जी ने पूरी 'शक्ति' से तीव्र 'गति' से पेंशन ख़त्म कर दी तो मोदी जी का फोटो छपे 'अन्नदान महोत्सव' के थैले के लिए लाइन में लगा दिखाई देगा. 

बोला- 'अन्नदान महोत्सव' में अस्सी करोड़ लोगों को पांच-पांच किलो अन्न बांटा जा रहा है मतलब कि देश में इतने लोग भिखमंगे बना दिए गए हैं. तभी तो देश 'हंगर इंडेक्स' में ११६ में से १०१ वें नंबर पर है, पकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से भी नीचे.

तभी तो कह रहा हूँ- समय रहते मना ही लें अपने 'सेवा और समर्पण के साठ साल'. जब लोग गाँधी और नेहरू के काल को ही देश का अन्धकार युग सिद्ध करने में लगे हुए हैं तो हमारी क्या औकात है. कल किसे पता क्या हो.

ज्यादा भींच मत. तू भी क्या याद करेगा ? ऐश कर, मेरी तरफ से सेलेब्रेट कर.

और तोताराम ने हमारी तरफ सौ का एक नोट उछाल दिया. 



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Nov 10, 2021

तू क्या अपने को प्रधानमंत्री समझता है ?


तू क्या अपने को प्रधानमंत्री समझता है ?


पता नहीं,कोरोना का प्रकोप कुछ कम हुआ है या इतने दिन डरते-डरते आदमी का डर निकल गया है. जैसे कि नोटबंदी और जीएसटी से किसी ज़माने में घबराया हुआ आम आदमी अब रोज घरेलू गैस और पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने से मरणान्तक निर्भयता की साहसिक मुद्रा में पहुँच गया है और बड़े से बड़े नेता पर भी हँस सक पा रहा है. इसी प्रकार अब हम भी सामान्य हो चले हैं. 

सवेरे बरामदे में दरी पर बैठकर अपनी पुस्तक की प्रूफ रीडिंग में व्यस्त थे कि किसी ने आवाज़ दी- शास्त्री जी नमस्कार. 

हमें पिताजी ने अति उत्साह में पाँचवीं क्लास के पहले छह महिने इतनी संस्कृत पढ़ाई कि हम अर्द्ध वार्षिक परीक्षा में 'महाजनी बहीखाता' में फेल हो गए. सो पिताजी ने हमें सुसंस्कृत बनाने का अभियान स्थगित कर दिया. उसी के बल पर हम आठवीं तक संस्कृत में पास होते गए. ऐसे में हम शास्त्री जी संबोधन से कैसे संगति बैठा सकते थे ? हम अपने काम में व्यस्त रहे. फिर वही 'शास्त्री जी' संबोधन. हमने बिना सिर उठाये ही कहा- भाई , हम शास्त्री जी नहीं  हैं, हम तो मास्टर जी हैं.

तोताराम ने हमें झकझोरा, बोला- मास्टर कहूँ या शास्त्री जी तेरी भव्यता और वैभव में कोई अंतर आने वाला नहीं है. प्रधानमंत्रियों में जो रुतबा शास्त्री जी का था वही मास्टरों में तेरा है.लेकिन याद रख, बरामदे में दरी पर बैठकर काम की व्यस्तता दिखाने मात्र से ही कोई प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री नहीं बन जाता.

फिर तोताराम ने अपने स्मार्ट फोन में एक फोटो दिखाते हुए कहा- यदि नहीं देखा हो तो देख ले  प्लेन में अपनी पत्नी के साथ इकोनोमी क्लास की सीट पर ठुंस कर बैठे फाइल देखते हुए शास्त्री जी का फोटो. लगता ही नहीं कि कोई प्रधानमंत्री बैठा है. सादगी की भी लिमिट होनी चाहिए.  कहे तो और भी दिखाऊँ. बहुत से प्रधानमंत्री हुए हैं जो प्लेन में काम निबटा लेते थे  लेकिन लगता है, ऐसे ही था कि बस, ठीक है.प्लेन में न तो रैली कर सकते हैं और न ही मोर को दाना डाल सकते हैं. मन की बात का तो सवाल ही नहीं.ऐसे में कुछ काम ही कर लिया जाय लेकिन जो रुतबा मोदी जी का वह कुछ और ही है. 

हमने कहा- तोताराम,  पता नहीं, तू कहाँ-कहाँ पहुँच जाता है. हमने तो ऐसे सोचा ही नहीं था. हालांकि हम भी आडवानी जी की तरह निर्देशक मंडल में हैं. कोई उम्मीद शेष नहीं है. फिर भी ले ही ले एक फोटो. क्या पता, कब काम आ जाए. कब, कौन हमें भी नेहरू-गाँधी जी तुलना में खड़ा करने के लिए इस फोटो का इस्तेमाल कर ले जैसे कि राजनाथ जी ने सावरकर जी के सौ साल पुराने माफीनामे को, काल-दोष का ध्यान न रखते हुए, खींच-खांच कर  गाँधी के मत्थे डाल ही दिया. 

बोला- मतलब तू भी शास्त्री जी की सादगी के बहाने से ही सही, कहीं न कहीं अपने को प्रधानमंत्री समझता है क्या ? लेकिन ध्यान रहे, तू इस लुंगी बनियान में बेशर्मी से जयपुर रोड़ तक चला जाता है जब कि बड़े आदमी सोते भी टाई बांधकर हैं. पता नहीं कब किसी देश के राष्ट्रपति से मिलना हो जाए. बरसात न होने पर भी प्लेन से छाता लेकर उतरते हैं. क्या पता, दस सीढियां उतरते-उतरते बीच में ही बरसात हो जाए तो.



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Nov 8, 2021

एक रात चाँद के साथ

एक रात चाँद के साथ 

हमने कहा - तोताराम,  नेट की कम स्पीड से दुखी होकर जब से बीएसएनएल के ब्रोड्बैंड कनेक्शन को फाइबर में बदलवाया है कुछ नई तरह की समस्याएं पैदा हो गई है. बिजली जाते ही लैंड लाइन भी काम करना बंद कर देता है. शिकायत की तो उत्तर मिला इमरजेंसी के लिए इनवर्टर लगवा लीजिये. यह तो बाबाजी वाली वही कहानी हो गई जिसमें एक से दो लंगोटी रखने पर अंततः बाबाजी को फांसी चढ़ने की नौबत आ गई.  

बोला- जो जितनी सुविधाएं चाहेगा उसे उतनी ही असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा.पैदल या साइकल से गिरने पर तो हाथ-पैर ही टूटते हैं लेकिन हवाई जहाज से गिरने पर तो कुरते पायजामे के रंग से ही पहचाना जा सकता कि अमुक श्रीमान की यह अंतिम निशानी हो सकती है. जब बिजली नहीं थी तब आदमी अपनी चिमनी, केरोसिन और माचिस संभालकर रखता था. दिन दिन से खाना बना और खा लेता था. पूरी नींद लेता था और सुबह एकदम फ्रेश उठता था. अब बिजली पर आश्रित रहने की असुविधाओं का पता चल रहा है.लेकिन शुक्र है कि सुविधाओं की असुविधाओं में भटक रहे लोगों के लिए मेघवाल जी जैसे संतों के नुस्खे उपलब्ध हैं.

हमने पूछा- क्या उन्होंने बिजली का कोई विकल्प सुझाया है ? या मीटर को स्लो करने की की कोई तकनीक बताई है ?

बोला- नहीं, उन्होंने तो शुद्ध सात्विक परम्परागत भारतीय नुस्खा बताया है कि बिजली संकट से निबटने के लिए 'एक रात चाँद के साथ' बिताएं.

हमने कहा- वे संस्कृति मंत्री भी हैं इसलिए उनकी बात में दम हो सकता है क्योंकि उनके द्वारा बताये गए 'भाभीजी पापड़' के बल पर ही अपने राजस्थान में कोरोना से मौतें बहुत कम हुईं. फिर भी उनके इस नुस्खे को काम में लेते समय दो बातों का ध्यान अवश्य रखना नहीं तो चक्कर पड़ सकता है.

बोला- रात में परिजनों के साथ घर की छत पर चांदनी रात में बतियाने में क्या चक्कर पड़ सकता है बल्कि इससे तो सांस्कृतिक संबंध और मज़बूत होंगे.

हमने पूछा- यह दिव्य ज्ञान मंत्री जी ने कहाँ और किसे दिया ?

बोला- यह उन्होंने जोधपुर के पास आफरी में स्थित पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों से आज़ादी के अमृत महोत्सव के बारे में चर्चा करते हुए बताया. 

हमने कहा- यह इस स्थान 'आफरी'  का प्रभाव भी हो सकता है. वैसे भी मंत्री बनते ही किसी को भी ज्ञान का 'अफारा' चढ़ जाता है. मंत्रियों के ऐसे ही ज्ञान के 'अफारों' से विज्ञान की दुनिया में भारत का नाम आजकल बड़े आदर से लिया जाता है. बस, जल्दी ही दुनिया सर्वसम्मति से हमें 'विश्वगुरु' स्वीकार करने ही वाली है.

तेरे ज्ञानवर्द्धन के लिए आज से साठ वर्ष पहले की शरद पूर्णिमा की घटना सुनाते हैं.  हमने कुछ मित्रों के साथ खीर बनाकर उसे चन्द्रमा से झरने वाले अमृत से युक्त होने के लिए छोड़ दिया और कविगोष्ठी में मग्न हो गए. जब रात बारह बजे उस अमृतमय हो चुकी खीर को संभाला तब तक एक कुत्ता उसे पूरी तरह साफ़ कर चुका था और जब मित्रमंडली उदास होकर घर जाने लगी तो पता चला कि कइयों की चप्पलें गायब थीं.

इसलिए चाँद के साथ एक रात बिताने से पहले कुत्तों और उचक्कों से बचने का इंतज़ाम अवश्य कर लेना चाहिए.


 




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