Mar 2, 2010

हेमा मालिनी जी, लोगों का काम है घूरना


हेमा मालिनी जी,
चश्मे बद्दूर । आज भी आपकी नज़र उतारने की आवश्यकता पड़ रही है हमको ।

हम आपके उद्गारों को अनसुना नहीं कर सकते । शोले फिल्म की शूटिंग के समय हम नहीं थे, नहीं तो हम गब्बर को गोली ही मार देते । वैसे ठीक भी हुआ क्योंकि हम ठहरे सरकारी कर्मचारी । बिना बात केस चलता और हो सकता था कि हमारी नौकरी ही चली जाती । राजस्थान में गत चुनावों में आपने अलवर से आवाज़ लगाई कि 'बसंती की इज्ज़त का सवाल है' तो जोश में आकर हमारा मित्र तोताराम आपके कैंडीडेट के पक्ष में नकली वोट डालने के लिए अलवर चला गया और वहाँ पुलिस ने उसे पकड़ लिया । उम्र का ख्याल करके पुलिस ने छोड़ दिया वरना तो जेल में ही भगवान को प्यारा हो जाता । ६५ साल के एक मास्टर में जान ही कितनी होती है । इसके बाद लोकसभा चुनावों में आपने सीकर आकर फिर गुहार लगाईं कि 'बसंती की इज्ज़त का सवाल है' । हम मई की गरमी में वोट डालने के लिए निकल पड़े और लू खा बैठे । कई दिन खटिया का सेवन करना पड़ा ।

उसके बाद हमने सोचा लिया कि चलो पाँच साल की छुट्टी हुई । इसके बाद आप बीकानेर और जोधपुर आईं पर कोई घटना नहीं हुई । अब २२ फरवरी २०१० के अखबार में पढ़ा कि आप गोआ से पटना जा रही थीं तो विमान में बैठे ३०० यात्री आपको घूरते रहे । कल अखबार में देखा कि आप किसी धूत की पार्टी में गई थीं और वहाँ हिंदुजा के साथ फ़ोटो भी खिंचवाया । साथ में बिटिया आयशा भी थी परवहाँभी ऐसी कोई घटना नहीं हुई । बड़े आदमी हैं, भले ही होते होंगे । साधारण आदमी तो होता ही है घूरने के लिए बदनाम । इसे कुछ मिलाता तो है नही बस, घूरता रहता है । हमने तो इन छोटे लोगों को सिनेमा हाल के बाहर घंटों तक फिल्मों के पोस्टरों की तरफ घूरते देखा है । कभी तो ये लोग आकाश तक को यूँ ही घूरते-घूरते ज़िंदगी निकाल देते हैं । इन गरीबडों से बच कर रहना चाहिए । पर क्या किया जाये यह ज़माना है लोकतंत्र का सो इन गरीबडों को लुभाने के लिए चुनाव प्रचार में भी जाना पड़ता है । इनके लिए जनपथ पर नाचना भी पड़ता है । ये घूर-घूर कर ही खुश हो जाते हैं और उसी नशे में वोट भी डाल आते हैं ।

प्लेन से उतरने के बाद आपने कहा कि पता नहीं कि लोग ऐसा क्यों कर रहे थे । ये तो प्लेन में बैठने वाले लोग हैं । इनको तो भला होना ही चाहिए । यह भी तो हो सकता है कि प्लेन में घूरने के लिए और कुछ हो ही नहीं और समय बिताने के लिए घूरना ज़रूरी हो गया हो । वैसे लोग तो समय बिताने के लिए घूरना ही क्या अन्त्याक्षरी तक खेलने लग जाते हैं ।

कभी कभी आदमी को खुद को ही पता नहीं लगता कि कोई घटना क्यों हो रही है । एक बार हमारे एक कवि मित्र को अचानक पता चला कि शहर में कवि सम्मलेन हो रहा है तो वे भाग पड़े । जब वे मंच पर आये और जब तक वे मंच से उतर नहीं गए तब तक लोग हँसते रहे । वे बहुत खुश कि आज तो वे बहुत जमे , पर बाद में पता चला कि वे पायजामे की जगह पत्नी का पेटीकोट पहन गए थे ।

आप तो माशा अल्लाह अभी भी देखने लायक हैं और व्यवस्थित रहती हैं इसलिए आपके मामले में ऐसे किसी कारण की कल्पना नहीं की जा सकती है । लोग यह जानने के लिए भी घूरते हैं कि जो वे देख रहे हैं वह सच है या सपना । संजीव कुमार आपको सच मान कर देखते रहे और निकला वह सपना । सो बेचारे इतने निराश हुए कि असमय ही चले गए । धर्म जी ने आपको सच माना और हासिल कर लिया । कभी-कभी लोग यह भी जानने के लिए घूरते हैं कि वरिष्ठ नागरिक होकर भी कोई ऐसी दिख सकती है क्या । कई आपके इस उम्र में भी इतने स्वस्थ होने का राज़ जानने के लिए घूर रहे हों । वे बेचारे नहीं जानते कि ब्रह्मचर्य की क्या महिमा है ।

हमारा मानना है कि सेलेब्रिटीज को कभी परेशान नहीं होना चाहिए । लोगों का घूरना ही उनकी महत्ता को दर्शाता है । जिस दिन लोग नहीं घूरेंगे उस दिन भी शायद आप परेशान हो जाएँगी कि लोग आपको देखने और घूरने के लिए क्यों नहीं आते । आप को तो खुश होना चाहिए कि लोग अब भी आपको घूर रहे हैं । वैसे घूरने का सबसे उचित, सुरक्षित और सस्ता तरीका यह है कि अपने सपनों की सुन्दरी की कोई अच्छी सी फ़ोटो रख ली जाये और जब कोई भी काम न हो तो उसे आराम से घूरते रहना चाहिए । आपसे पहले एक सुन्दर अभिनेत्री हुई हैं- साधना । आज कल वे मोटी हो गई हैं इसलिए कहीं बाहर नहीं जातीं । वे अपने चाहने वालों के दिल में अपनी वही 'आरजू' और 'राजकुमार' फिल्म वाली छवि बनाकर रखना चाहती हैं ।

लगता है कि आप बोर हो गई होंगी सो आपको एक किस्सा सुनते हैं । हमारे गाँव में एक अधपागल आदमी था । वह जब भी गली में आता तो बच्चे उसे पत्थर मारते थे और वह उन्हें गालियाँ निकाला करता था । इस झंझट से बचने के लिए माताएँ बच्चों को घर में ही रोक लेतीं । वह व्यक्ति आकर किसी चबूतरे पर बैठ जाता और जब बच्चे नहीं दिखते तो कहता- 'आज सारे ही कहाँ मर गए ।' नेता तो चाहता है कि यदि लोग उसका अभिनन्दन नहीं करते तो कम से कम जूतों की मालाएँ ही पहना दें । सुर्ख़ियों में तो बना रहेगा ।

लोग आपको घूरते हैं । हम इस मामले में आपकी क्या मदद कर सकते हैं ? हो सकता है कि यदि उनकी जगह हम होते तो हम भी आपको घूरने लग जाते । इसी सन्दर्भ में एक किस्सा और सुनिए । एक सुन्दरी थी और एक उसका चाहने वाला । चाहने वाले तो और भी होंगे पर वे सब दूध पीने वाले मजनू थे । अब मजनू की बारी आ गई तो पहले उसे ही पूरा कर देते हैं । मज़नूँ लैला-लैला पुकारता रहता । न खाने की सुध, न पीने की । लैला ने अपनी नौकरानियों से मजनू के लिए खाना भिजवाना शुरु कर दिया । एक और व्यक्ति यह सब देख रहा था सो उसने मजनू को किसी और पेड़ के नीचे ले जाकर बैठा दिया और ख़ुद उस पेड़ के नीचे आकर बैठ गया । अब तो नौकरानियाँ खाना लेकर आतीं और वह खाता रहता । लैला मजनू का हाल चाल पूछती तो वे कहतीं कि वह अब बहुत स्वस्थ हो गया है । लैला को शक हुआ तो एक दिन उसने नौकरानियों को कहा कि मजनू से कहना कि लैला ने तुम्हारे खून का एक प्याला मँगवाया है । लैला की डिमांड सुनकर वह बोला- हम तो दूध पीने और खाना खाने वाले मजनू हैं । खून देने वाला मज़नूँ तो पता नहीं किस पेड़ के नीचे बैठा होगा । जाकर उसे ढूँढो । खाना लाओ तो हमारे पास आ जाना ।

अब असली चाहने वाले प्रेमी का किस्सा । प्रेमी ने सुन्दरी से कहा- मैं तुम्हारे इस रूप को इसी तरह ज़िंदगी भर निहारना चाहता हूँ । सुन्दरी ने इठला कर कहा- मैं हमेशा ही इसी तरह सुन्दर थोड़े ही बनी रहूँगी । उम्र के साथ रूप भी ढलता है । प्रेमी जीवन के इस सत्य को सह नहीं सका और उसने अपनी आँखें फोड़ लीं और बोला अब तुम कैसी भी हो जाओ पर मेरे लिए तुम ऐसी ही बनी रहोगी । यह है कल्पना का, मन की आँखों से देखना । लोग पता नहीं क्यों घूर-घूर कर अपनी कल्पना की छवि को ध्वस्त करना चाहते हैं । हम तो सामने आने पर भी आपको घूरना पसंद नहीं करेंगे ।

वैसे हमने आपकी एक आरती लिखी थी आज से कोई पैंतीस बरस पहले- 'हेमा मालिनी वर दे ।' यह बात और है कि वह अब तक आप तक नहीं पहुँची । हमने भी कोई खास रूचि नहीं ली । पर अब चाहते हैं कि जब धर्मेन्द्र जी का मंदिर बनेगा और उसमें उनके साथ आपकी भी मूर्ति लगेगी तब हम प्राणप्रतिष्ठा के समय ज़रूर जाएँगे और इस आरती के सर्वाधिकार मंदिर को समर्पित कर देंगे । इसमें बस एक ही लोचा हो सकने की संभावना है कि कहीं भक्त लोग उनके साथ आपके स्थान पर प्रकाश भाभी की मूर्ति लगाने की जिद न करने लग जाएँ ।

२६-२-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया व्यंग.पाजामे और पेटीकोट की भी खूब रही.

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