Mar 26, 2010
ब्लेक मनी : व्हाइट पेपर
आदरणीय अडवानी जी,
नमस्कार । पिछले कई महीनों से भाई लोग आपकी लम्बी सेवाओं को देखते हुए आपको विश्राम देने के लिए पीछे पड़े हुए थे और आप थे कि मान ही नहीं रहे थे । कुछ तो आदत और कुछ ज़ज्बा । बड़ी मुश्किल से लोकसभा में विपक्ष के नेता पद से छुट्टी दिलवाई । अब जब २५ जनवरी २०१० के अखबार में पढ़ा- अडवानी जी अब बिता रहे हैं फ़ुर्सत के रात-दिन ।
'मौसम' फिल्म में संजीव कुमार बेचारा ढूँढ़ता ही रह जाता है पर फ़ुर्सत के दिन थे कि मिल ही नहीं रहे थे । किसी भाग्यशाली को ही मिलते हैं फ़ुर्सत के रात-दिन । अच्छा लगा कि आपको इतने दिनों की भागमभाग के बाद फ़ुर्सत के रात-दिन मिले तो । हम तो जैसे ही साठ साल के हुए सरकार ने तत्काल फ़ुर्सत के रात-दिन प्रदान कर दिए और हमने भी इसे भगवान और सरकार का प्रसाद मानकर स्वीकार किया और अब मज़े से फ़ुर्सत के रात-दिन बिता रहे हैं ।
अब जब आप और हम दोनों ही फ़ुर्सत में हैं तो कुछ गपशप हो जाए । आपको फ़िल्में पसंद हैं इसलिए आपके लिए निर्देशक घर पर ही फ़िल्में दिखाने की व्यवस्था कर देते हैं । हमारे लिए कोई ऐसी सुविधा नहीं जुटाता । पर हमें इसकी कोई शिकायत नहीं क्योंकि हमें तो न चाहते हुए भी 'थ्री' क्या 'अनेक ईडियट' वैसे ही सरे-राह मिल जाते हैं । तो बात गपशप की हो रही थी ।
एक चोर था । किसी मज़बूरी के कारण महात्मा जी को आत्मसमर्पण करके भक्ति और ज्ञान की मुख्यधारा में शामिल हो गया और महात्मा जी के साथ ही रहने लगा । मगर उसके आने के बाद महात्मा जी का कोई भी सामान खोया तो नहीं पर अपनी जगह पर भी नहीं मिलता था । सो महात्मा जी ने उससे पूछा- बेटा, तू मेरे पास आने से पहले क्या करता था ? भूतपूर्व चोर ने सच कहा- भगवन, चोरी करता था । महात्मा जी बोले - बेटा, तभी चीजें अपनी जगह पर नहीं मिलतीं । चोरी छोड़ दी तो क्या, हराफेरी नहीं छोड़ पाया । आपके साथ चोरी तो नहीं पर जनसेवा करने की पुरानी आदत है सो फ़ुर्सत के रात-दिन मिलने पर भी छूट नहीं रही है । तभी १६ मार्च के अखबार में पढ़ा कि आपने संसद में सरकार से काले धन पर श्वेत पत्र जारी करने की माँग की है । चुनाव-प्रचार के दिनों में तो आप काले धन को वापिस लाने की बात कह रहे थे । अब श्वेत पत्र से ही संतुष्ट हो जाएँगे क्या ?
चुनाव के दिनों में जब आपने काला धन वापिस लाने की बात की थी तो हमने और तोताराम ने स्विट्ज़रलैंड जाकर काला धन लाने की योजना बना ली थी । अब सत्ताधारी दल के पास कहाँ समय होगा ऐसे छोटे-मोटे कामों के लिए । और हमें और तोताराम को यहाँ कोई विशेष काम नहीं है । सो हम दोनों ने कई दिन लगाकर सीमेंट के पुराने कट्टों को जोड़-जोड़ कर कई बड़े बोरे बना लिए थे । धन भी कोई थोडा-मोड़ा तो है नहीं कि जेबों में रखकर ले आया जाए । कट्टे बनाकर भी हमसे यह तय नहीं हुआ कि कितने धन के लिए कितने बोरे चाहियेंगे । नरसिंहराव जी के ज़माने में यह समस्या पहली बार आई थी कि एक करोड़ रुपए रखने के लिए कितना बड़ा सूटकेस चाहिए ? बहुत सिर मारने पर भी जब बड़े-बड़े गणितज्ञों को समझ में नहीं आया तो मामला ठंडा पड़ गया ।
अब जब मायावती मैडम की महामाला का मामला सामने आया तो लोगों ने तत्काल हिसाब लगा लिया कि वह माला साठ किलो की थी और उसमें एक-एक हज़ार के नोट थे, कुल पाँच करोड़ की राशि । मतलब कि एक हज़ार के दस हजार नोटों का वज़न बारह किलो होता है । अब बस यह और पता चल जाए कि अपने देश के कितने रुपए स्विस बैंक में हैं और वे जब लौटाएँगे तो कितने-कितने के नोटों में लौटाएँगे तो हम उसी हिसाब से बोरे तैयार कर लें । बस यहाँ की सरकार हमें एक अथोरिटी लेटर दे दे कि इतने रुपए मास्टर तोताराम और रमेश जोशी को दे दें तो हम ले आएँगे । जिस भी साधन से सरकार चाहेगी उसी से, जैसे कि पानी के ज़हाज़ से या प्लेन से या सड़क मार्ग से । बस फिर आप सब निश्चिन्त रहें हम ले आएँगे । रास्ते में सोमालिया के समुद्री लुटेरों से रक्षा करने की ज़िम्मेदारी किसी को सौंप दीजिए क्योंकि उनसे लड़ना हमारे बस का नहीं है ।
आप सोच रहे होंगे कि जब देश में इतने अधिकारी हैं जो 'खेजड़ी' (राजस्थान का एक बहु उपयोगी वृक्ष) का अध्ययन करने के लिए इंग्लैण्ड जाने का औचित्य सिद्ध करके ट्यूर प्रोग्राम बना लेते हैं तो वे हमें इस काम के लिए विदेश जाने का मौका कैसे लेने देंगे । बात आपकी ठीक है पर हमें भेजना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि जब दिल्ली से चलने वाला एक रुपया राजस्थान में आते-आते पंद्रह पैसे रह जाता है तो स्विटज़रलैंड तो बहुत दूर है । सो क्या गारंटी है कि वहाँ से आते-आते एक रुपये का एक पैसा नहीं रह जाएगा ? आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम जितने वहाँ से मिलेंगे पूरे के पूरे ला देंगे ।
२२-३-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
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आडवाणी जी की जय हो .... ब्लैक मनी व्हाइट पेपर क्या बात है
ReplyDeleteबहुत सटीक!!
ReplyDeleteरेगिस्तान में पाए जाने वाले खेजडी के वृक्ष के क्षोध के लिए इंग्लॅण्ड का टूर :-) वाह से वाह मेरे देश के सरकारी सेवक. ये लोग न किसी काम के नहीं है एक बहाना भी ठीक से नहीं बना पाते. वो बात और है की सरकार भी इनके नक़्शे कदम पर चलती है और इन्हें मुफ्त में घूम कर आने को मिलता है. आप तो बस स्विट्ज़रलैंड का वीसा तैयार करवा लीजिए. क्योंकि इतने ईमानदार लोग आज मिलते कहाँ है जो जितना मिला उतना ही सरकार को देने को तत्पर रहे. सटीक व्यंग्य !!
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