Mar 8, 2010

राष्ट्रवादी बजट


तोताराम सभी सरकारों, विशेष रूप से राष्ट्रवादी पार्टियों का बड़ा समर्थक बनता है । आज जैसे ही हमने कर्नाटक का बजट देखा तो सोचा आज तोताराम को ज़रूर घेरेंगे और उसके पास आज कोई ज़वाब नहीं होगा । आते ही हमने उसके समाने बजट रखते हुए कहा - ले देख ले अपना राष्ट्रवादी बजट । बोला - ठीक तो है, इसमें क्या है ?

हमने कहा- क्या है ? अरे, क्या नहीं है । देख, हिन्दुओं की जनेऊ पर VAT बढ़ा दिया । बेचारे हिन्दुओं के पास जनेऊ के अलावा और बचा ही क्या था । उसी के गर्व से ज़िंदगी काट रहे थे । उसी से तुम्हारे मुख्यमंत्री को तकलीफ हो गई । तोताराम बोला- ठीक तो है । आजकल जनेऊ का पालन कौन करता है । आजकल तो बच्चे जनेऊ लेना ही नहीं चाहते और यदि ले लेते हैं तो पहनते नहीं । ऐसी फालतू चीज पर यदि टेक्स बढ़ा भी दिया तो किसी को क्या फर्क पड़ेगा । अच्छा होगा यदि टेक्स बढ़ने से जनेऊ छोड़ देंगे । आज जनेऊ छोड़ेंगे तो कल को धर्म भी छोड़ देंगे । ठीक भी है जिस धर्म से कोई लाभ नहीं, उसे छोड़ ही देना चाहिए । अगर मुसलमान बन जाएँगे तो कम से कम प्रधानमंत्री की '१५-सूत्री अल्पसंख्यक सहायता योजना' के तहत बच्चों को कोचिंग और फिर आगे पढ़ने के लिए सहायता तो मिलेगी ।

हमने भी पीछा नहीं छोड़ा, बोले- और देख, धार्मिक तस्वीरों पर भी तो टेक्स बढ़ा दिया । सबसे ज्यादा तो हिन्दू ही इन का प्रयोग करते है । इस्लाम में तो तस्वीर या मूर्ति पूजा होती ही नहीं । तोताराम का तर्क था- ठीक तो है, हिन्दुओं में कोई पूजा तो करता नहीं । बस तस्वीरें लटका कर ही काम चलाना चाहते हैं । इतनी अधिक तस्वीरें हैं कि बेचारे अमरीका और योरप वालों को पता भी नहीं चलता कि कौन क्या है सो बेचारे उन्हें आपने सेंडिलों और जूतों पर छाप देते हैं और बिना बात बखेड़ा होता है । ज्यादा तस्वीरें होती हैं तो कूड़े में रुळती फिरती हैं । कम तस्वीरें होंगी तो अपमान की संभावना भी कम होगी ।

हमने कहा- तो अब नोट बुक, कापियों और किताबों के बारे में भी कुछ बता दे । तो बोला- भारतीय बच्चे केवल लिखते रहते हैं और प्रेक्टिकल ज्ञान में पिछड़ जाते हैं । अब कापियाँ और किताबें कम मिलेंगी तो कुछ प्रेक्टिकल ज्ञान भी प्राप्त करेंगे । और फिर कबीर जी ने भी तो कहा है-
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ।
बच्चों को पंडित बनने में सुविधा रहेगी ।

और फिर लगे हाथ यह भी बता दे कि वाद्य-यंत्रों के दाम बढ़ाने के पीछे क्या तर्क है तो बोला- इसमें बहुत समय खर्च होता है । पहले तो भारतीय संगीतकार घंटे भर तक तार मिलाते और तबला ही ठीक करते रहते हैं और फिर तब तक आलाप लेते रहते हैं जब तक कि श्रोता उठ कर नहीं चले जाते । और फिर इससे ध्वनि प्रदूषण भी तो फैलता है ।

जब पूछा कि कागज और प्लास्टिक के कप और प्लेट के दाम बढ़ाने का क्या तुक है तो बोला- एक तो इससे बिना बात का कूड़ा फैलता है । हाथ में लेकर खाने का स्वाद ही कुछ और । और फिर जब खाने को ही कुछ नहीं बचा है तो कप प्लेटों के दाम बढ़ाने से किस पर क्या फर्क पड़ता है ।

तोताराम ने आगे कहा- मैनें सारा बजट पढ़ लिया है इसमें कुछ भी कष्ट बढ़ाने वाला नहीं है जनता के लिए । राखी महँगी हो जाएगी तो क्या फर्क पड़ने वाला है । कौन निभाता है बहन का रिश्ता । आजकल कौन है हुमायूँ । रही फिर कंघों के दाम बढ़ाने की बात सो किस के सिर पर बचे हैं बाल । सबके बाल तो मंत्रियों और स्वामियों के कर्म देख-देख कर नोंच-नोंच कर ख़त्म हो गए ।

हमने कहा- वस्त्रों के दाम बढ़ाने का क्या तुक है तो बोला- अरे, आजकल कपड़े पहनने वाला इस तेज रफ़्तार ज़माने में पिछड़ा रह जाता है । जो नंगे हैं वे ही इस देश और दुनिया को चला रहे हैं । अच्छा है लोग नंगे हो कर ही कुछ पा जाएँ । हमने आखिरी अस्त्र चलाया- पर चश्मे महँगे करने से तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी । लोग रस्ता ही नहीं देख पाएँगे । तोताराम बोला- रस्ता देखने की ज़रूरत ही क्या है चलते रहो भ्रष्ट नेताओं और लोलुप स्वामियों के पीछे । और जहाँ तक तू देश का उज्जवल भविष्य देखने के लिए चश्मा चाहता है तो रहने ही दे । जो भविष्य है वह बड़ा डरावना है ।

हमने कहा- भाई पर चूल्हा जलाने के लिए माचिस तो चाहिए ही ना । अब तो तोताराम नाराज़ हो गया । बोला- तुझ में समझ तो है ही नहीं । बिना बात बके जा रहा है । अरे, चूल्हा जला कर पकाएगा क्या । जहाँ तक आग लगाने की बात है तो धर्मान्धता फ़ैलाने वाले नेता और गुरु ही बहुत हैं आग लगाने के लिए ।

अब तो हमें चुप हो जाना पड़ा । हम सोचने लगे- चलो, मुख्यमंत्री जी ने गार्डेन अम्ब्रेला तो सस्ता कर ही दिया है । उसी को लगा कर सब विपदाओं से बच जाएँगे पर उस अम्ब्रेला को लगाएँगे कहाँ । बैंगलोर में ज़मीन तो इतनी महँगी हो गई है कि कोई दो नम्बरिया ही खरीद सकता है । बेचारे बहादुर शाह ज़फर ने भी बंगलोर में ज़मीन न खरीद पाने के कारण ही कहा होगा-
दो गज ज़मीन भी न मिली कूए यार में ।

०७ मार्च २०१०


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach

1 comment:

  1. सटीक चिन्तन. मंहगाई अच्छी है. इससे स्टैन्डर्ड बढ़ता है.

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