Mar 11, 2010

दरोगा जी, चोरी हो गई

हेमा जी,
नमस्ते । सोचा था आपको होली की बधाई देंगे पर बधाई देने से पहले ही धुलेंडी वाले दिन ही समाचार पढ़ा कि आपके यहाँ चोरी हो गई । चोरी भी छोटी-मोटी नहीं पूरे अस्सी लाख की । आजकल तो खैर अस्सी लाख की कोई कीमत ही नहीं रह गई है । आजकल की हीरोइनों को न तो नाचना आता और न ही एक्टिंग, पर पैसे लेती हैं कस कर । दस-दस करोड़ एक-एक फिल्म के । आपके ज़माने में तो इसका दसवाँ हिस्सा ही मिलता होगा एक फिल्म का । आपको तो फ़िल्में छोड़े भी कई बरस हो गए । अब तो नृत्य का ही सहारा है । नाच का पैसा बहुत मेहनत का होता है। एक दिन नाचो तो एक हफ्ते कमर दर्द करती है । वैसे शादी के बाद तो महिलाओं का काम नाचने से ज्यादा पति को नचाने का रह जाता है । पर धरम जी को इतनी दूर से नचा पाना संभव नहीं है और फिर उनको नचाने वाली आलरेडी मौजूद है । अब बुढ़ापे में दो-दो के लिए नाचना बस का भी कहाँ रह जाता है । हम भी पचास बरस से अपनी पत्नी का नचाया नाच, नाच रहे हैं इसलिए जानते हैं कि नाचने में कितना दम लगता है ।

वैसे तो पिछले दो बरस से हम और हमारा मित्र तोताराम आपकी इज्ज़त बचाने की गुहार पर भागते दौड़ते रहे हैं । अब हमने सोच लिया था कि बिना बात भागना दौड़ना ठीक नहीं है इस बुढ़ापे में । पिछली बार आप पटना गईं तो लोग प्लेन में घूर रहे थे । तब भी हमने आपको पत्र लिखा था । इसके बाद सोचा था कि अब आप जानें और आपका काम जाने । वैसे शशि थरूर जी भी उलटे-सीधे बयान देकर हमें, अपना अमूल्य समय ख़राब कर, पत्र लिखने के लिए मज़बूर करते रहते हैं । उनको भी हमने मना कर दिया कि भई, अब हम कहाँ तक सलाह देंगे । जो बोलो सो खुद ही भुगतो । हमसे आशा नहीं करना ।

पर अब आपका मामला ज़रा वास्तविक संकट का है सो आपको कुछ सलाह देने के लिए पत्र लिख रहे हैं । वैसे कई अभिनेत्रियों को हमने सुना है- कोई अपना झुमका गिरा देती है, तो कोई सरे राह ज़ोर-ज़ोर से गाती हुई जाती है 'दरोगा जी चोरी हो गई', किसी का भरतपुर लुट जाता है । पर हमने गहन अध्ययन के बाद पाया है कि ये सब मामले इतने महत्वपूर्ण नहीं हैं क्योंकि जिसको चोर समझा जाता है वह थानेदार निकल आता तो उस मामले में तो कोई भी कुछ नहीं कर सकता । ये सभी घटनाएँ दिन का चैन और रात की नींद चुरा लेने जैसे ही आध्यात्मिक मामले हैं । पर आपका मामला वास्तविक चोरी का है ।

चोरी के मामलों में सरकार और समझदार लोगों का यही कहना है कि इतना रखते ही क्यों हैं कि चोरी होने की नौबत आ जाए । खुद तो कुछ कर नहीं पाते और अपनी कमी को ऐसे बहानों से छुपाते हैं । जैसे कि आस्ट्रेलिया के एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि भारतीय छात्रों पर हमले इसलिए हो रहे हैं कि वे ठाठ-बाट से रहते हैं । कोई बात हुई । पर क्या किया जाए - 'जाके पैर न फटी बिवाई सो क्या जाने पीर पराई' ।

इस संकट के बारे में हम जानते हैं । हमारे एक मित्र के यहाँ चोरी हो गई । उन्होंने कोई रिपोर्ट नहीं की । थानेदार को पता चला तो वे खुद चल कर आए और कहने लगे आपने रिपोर्ट नहीं की । खुद ही कहने लगे- किसी पर शक हो तो बताइए । हमारे मित्र को पता था कि होना जाना कुछ है नहीं । यदि ज़रा सा इशारा भी कर दिया तो ये महाशय उससे कुछ न कुछ ज़रूर झटक लेंगे । बिना बात अपना उस सज्जन से बैर और हो जाएगा । तो उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया ।

संयोग की बात, किसी एक और सज्जन के यहाँ चोरी हो गई । वे किसी मंत्री के रिश्तेदार हैं सो चोर पकड़ा गया । उसने हमारे मित्र वाली चोरी भी कबूल ली । अब तो थानेदार जी ने हमारे मित्र को भी बुलाया । चाय पिलाई और बड़ा आदर सम्मान किया, सारी बात पूछी और फिर कभी बुलाने की बात कह कर भेज दिया । हमारे मित्र तो एकदम से पुलिस के भक्त हो गए । कहने लगे लोग बिना बात ही पुलिस वालों को बदनाम करते हैं ।

इसके दो-चार दिन बाद थानेदार जी ने हमारे मित्र को फिर बुलाया । उस समय थाने में थानेदार जी अकेले ही थे । बड़ी तसल्ली से बातें हुईं । कहने लगे- मास्टर जी आप तो भले आदमी हैं, इन चोरों और पुलिस के चक्करों के बारे में कुछ नहीं जानते । एक बात-इस चोर के घर से कुछ भी बरामद नहीं हुआ है । दूसरी बात- इस चोर ने आपका माल जिस सुनार को बेचा है उसका भाई एक बड़ा वकील है । उस सुनार का भी कुछ नहीं लगने वाला है । और ऐसे केस बरसों चलते रहते हैं और होता-जाता कुछ नहीं । आप बिना बात तारीखें भरते फिरोगे । अच्छा होगा कि आप समझौता कर लो । वह सुनार आपके एक लाख के नुकसान की पूरी भरपाई तो नहीं कर सकता पर वह पच्चीस हज़ार दे सकता है । मतलब कि तीन चौथाई तो गया । एक भाग थानेदार जी का, एक भाग सुनार का, एक भाग चोर का । और एक भाग हमारे मित्र का । क्या बढ़िया न्याय है ।

थानेदार ने न्याय के रास्ते में इतनी बाधाएँ बताईं कि हमारे मित्र ने समझौता करना ही बेहतर समझा । इसके बाद थानेदार जी ने कहा- मास्टर जी , अपराधी को हिरासत में रखने के नाम पर सरकार कुछ नहीं देती । मैं इसे कई दिन से रोटी खिला रहा हूँ अपने घर से । अब मेरी भी कुछ भरपाई कीजिए । और फिर हमने आपका काम भी तो किया है । मतलब कि थानेदार ने और पाँच हज़ार झटक लिए । इस प्रकार में एक लाख में से बीस हज़ार हमारे मित्र को मिले । सो यह है पुलिस का समझौता और न्याय ।

आप वाले समाचार के अगले दिन यह भी पढ़ा कि पहले किस-किस फिल्म वाले के यहाँ चोरी हुई पर मज़े की बात यह है कि यह नहीं बताया कि इनमें से किस-किस की चोरी वापिस आई । आप और धरम जी दोनों ही एम.पी. रहे हैं।
इसलिए समाचार भी आ गया । जब आप थाने गई होंगीं तो उसने बात भी बहुत अच्छी तरह से की होगी । पर सबके साथ ऐसा नहीं होता । बेचारी प्रीती जिंटा भी गई थी इन्हीं दिनों थाने, पर उसे चार घंटे बैठाए रखा और पता नहीं रिपोर्ट लिखी गई या नहीं । ये पुलिस वाले बड़े रसिक प्राणी होते हैं, इस बहाने ही हीरोइनों के दर्शन करते रहते हैं । पर कुछ करने के नाम पर अपनी पुलिस की आचार-संहिता पर आ जाते हैं । यह स्टेटमेंट लेने तक ही सीमित है । पुलिस को स्टेटमेंट लेने की इतनी ज़ल्दी रहती है कि कई ग़रीबों के तो स्टेटमेंट देने का इंतजार भी नहीं करते, ज़बरदस्ती ही स्टेटमेंट ले लेते हैं । पुलिस की आचार-संहिता को तो इस देश में सभी जानते ही हैं । अब आपको भी पता लग गया होगा कि समाज भाजपा के पाँच साल के शासन के बाद भी भूख, भय और भ्रष्टाचार से कितना मुक्त हो पाया है ।

हम आप से यह तो नहीं कह सकते कि प्रोग्राम नहीं करें । भई, प्रोग्राम नहीं करेंगी तो घर कैसे चलेगा । बस यह है कि घर में कीमती चीजें नहीं रखें । हम तो आपने पुराने जूते और चड्डी बनियान भी रात को अन्दर लेकर ताला लगाकर रखते हैं । इस देश में चोरों का स्तर कुछ ज्यादा ही गिर गया है । चोर भी क्या करें जब एम.पी. तक एक हज़ार की रिश्वत में प्रश्न पूछते हों । इस समस्या का तो एक ही सरल हल है कि घर में आपकी अनुपस्थिति में कोई रहे । कायदे से तो दिलावर भाई, हमारा मतलब कि धरम जी, को रहना चाहिए । अब वैसे भी फिल्मों की तो कोई व्यस्तता रह नहीं गई है । पर इसकी संभावना भी कम ही है कि प्रकाश भाभी उन्हें इज़ाज़त दे देंगी ।

इस चोरी को लाइम-लाईट में लाने और माल वापिस लाने का एक गाँधीवादी तरीका हमें समझ में आ रहा है । अगर वीरू पानी की टंकी पर चढ़ जाए और यह घोषणा कर दे कि जब तक चोरी का माल वापिस नहीं आएगा तब तक मैं टंकी पर से नहीं उतरूँगा । जब इस ट्रिक से बसंती हासिल हो सकती है तो यह अस्सी लाख का माल क्या बड़ी चीज है ।

बस, उन्हें यह ज़रूर कह दीजियेगा कि टंकी पर सावधानी से चढ़ें और कूदने का नाटक ज्यादा न करें । क्या पता वास्तव में ही गिर पड़ें क्योंकि अब वह उम्र भी तो नहीं रही ।

अंत में हम भगवान से फिर प्रार्थना करते हैं कि आपका माल मिल जाए । बड़ी पसीने की कमाई है, जी ।

४-३-२०१०


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach

2 comments:

  1. वीरु भाई के टंकी पर चढ़ने से अब कुछ न होगा..अब तो प्रार्थना ही काम करे तो करे. :)

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  2. चोरी की आड़ में कितनो पर्दा फाश कर दिया है आपने ...वाह...अद्भुत लेखन...
    नीरज

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