Mar 21, 2010

क़यामत का इंतज़ार



सोनिया जी,
नमस्कार । यह पत्र शुरु करने से पहले हम दो शे'र अर्ज़ करना चाहेंगे-
गज़ब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया ।
तमाम रात क़यामत का इंतज़ार किया ।

हम इंतज़ार करेंगे तेरा क़यामत तक
खुदा करे की क़यामत हो और तू आए ।

इन दोनों ही शे'रों में इंतज़ार महत्त्वपूर्ण है । कुछ लोग क़यामत तक इंतज़ार करने का माद्दा रखते हैं तो कुछ दो मिनट भी इंतज़ार नहीं कर सकते । तभी एक गीत में नायक कहता है-
डोली सजाके रखना, मेहंदी लगा के रखना ।

आजकल का नायक है, समय का महत्त्व जानता है । पहले वाले तो मुँह से बोलना तो दूर, इशारों में भी बड़ी मुश्किल से कह पाते थे । और परिणाम यह होता था कि पिताजी नायिका की शादी किसी और से कर देते थे ।

ग़ालिब से किसी ने वादा कर दिया था । अब वादा निभाना है तो इंतज़ार तो करना ही पड़ेगा । अब यह तो वादा करने वाले की गलती है कि शाम को आठ बजे खाने पर आने का तय करके रात भर न आये । बेचारा मेज़बान न तो खाना खा सकता और न ही सो सकता । मेज़बान रात भर इंतजार करता रहता है कि कब क़यामत आ जाए और उसे खिला-पिला कर खुद भी सोए । कुछ क़यामतें ऐसी होती हैं कि ज़िंदगी भर नहीं आतीं और इंतजार करने वाला इंतजार करते-करते ही चल बसता है ।

किसी नायिका से नायक ने वादा कर दिया कि वह क़यामत होने पर आएगा । सो बेचारी नायिका नायक से ज्यादा क़यामत होने का इंतज़ार करती है कि किसी तरह क़यामत हो, नायक आए तो इंतजार से पीछा छूटे । जिस तरह से नेताओं के वादे और नायक-नायिका के वादे सूचना के अधिकार के अंतर्गत तो आते नहीं कि जैसी भी हो आदमी सूचना ले ले और इंतजार ख़त्म हो । कभी -कभी तो इंतज़ार पीढ़ियों तक चलता है । पिताजी कोई वादा करते हैं और उनके बाद उनका बेटा उनके सपनों को साकार करने के लिए गद्दी पर बैठता है और वह भी उन्हीं की तरह वादा करता है और फिर अगली पीढ़ी भी उसी तरह इंतजार करती रहती है जैसे कि गरीबी, भूख, भय, भ्रष्टाचार मिटाने के वादे लोग कई पीढ़ियों से पूरे होने का इंतजार कर रहे हैं ।

वैसे हमने व्यक्तिगत रूप से कोई बहुत इंतज़ार नहीं किए । शादी की उम्र होने से पहले ही पिताजी ने शादी कर दी सो किसी प्रेमिका का इंतज़ार करने की नौबत भी नहीं आई । बच्चे भी दो-दो साल के अंतर से होते चले गए । मास्टर की नौकरी भी समय पर ही मिल गई क्योंकि उस समय न तो इतने पढ़े-लिखे लोग थे और न ही इतनी दलाली चलती थी । नौकरी लगने के बाद और इंतज़ार किस बात का करना था । फिर तो साल बीतते गए । यह तो पता ही था कि साठ के होते ही रिटायर होना है सो समय पर वह काम भी हो गया । न सरकार को सोचना पड़ा और न ही हमें कोई धक्का लगा ।

पर अब आपसे क्या बताएँ । इस बुढ़ापे में इंतज़ार का चक्कर पड़ गया है । आप कुछ ऐसा वैसा नहीं समझ लें । हुआ यूँ कि हमने एक मंत्री जी के वादे पर ऐतबार कर लिया और अब ग़ालिब की तरह क़यामत का इंतज़ार कर रहे हैं और क़यामत है कि आने का नाम ही नहीं ले रही है । हमने आपको कभी अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के लिए पत्र नहीं लिखे । वैसे यह पत्र भी नितांत व्यक्तिगत नहीं है । लाखों लोगों का हित-अहित इससे जुड़ा हुआ है पर चूँकि इन लाखों में हम भी एक हैं सो इसलिए आप इसे व्यक्तिगत भी कह सकती हैं । हम वैसे तो नेताओं के वादों पर विश्वास नहीं करते पर कहा भी है - 'अर्थी दोषं न पश्यति' । अपने हित की बात पर ज़ल्दी झाँसे में आ जाता है जैसे कि पिछले वर्ष साँसी समाज के एक चालाक व्यक्ति ने धन दुगुना करने के नाम पर राजस्थान के सैंकड़ों लोगों से करोड़ों रुपए ठग लिए ।

बात यह है कि पिछले वर्ष २८ अगस्त २००९ को अखबार में समाचार छपा कि जिस विद्यार्थी के माता-पिता की कुल आमदनी साढ़े चार लाख से कम है तो उसे व्यावसायिक पाठ्यक्रम में अध्ययन करने के लिए बिना ब्याज के ऋण दिया जाएगा । पढ़ाई पूरी होने के बाद ब्याज चालू होगा और विद्यार्थी अपनी आमदनी से क़र्ज़ चुका देगा । वैसे तो हमें ब्राह्मण होने के कारण किसी भी सरकार ने दया का पात्र नहीं समझा और हमसे चार गुनी आमदनी वाले तथाकथित पिछड़ों या दलितों को ही वोट बैंक बनाने के लिए कर्ज़ा या मुफ़्त सहायता देती रही । हमने भी भगवान के भरोसे किसी तरह निभा लिया ।

अब मंत्री जी की उस घोषणा के बाद हमने अपनी बेटी को दाँतों की डाक्टरी में भर्ती करवा दिया । वैसे यह हमारे लिए संभव नहीं था और हम अपने साधनों को देखते हुए यह साहस करते भी नहीं । पर सरकारी घोषणा के कारण यह साहस कर बैठे । पिछले साल तो किसी तरह एक साल का खर्चा जमा करवा दिया और इंतज़ार करने लगे कि ज़ल्दी ही सरकार की योजना लागू होगी और काम चल निकलेगा । पर एक साल हो गया हमें उस क़यामत का इंतज़ार करते पर क़यामत है कि दर्शन ही नहीं दे रही है । अब हमारे पास एक साल का ही जुगाड़ है जो कि हमने रिटायर्मेंट पर मिले पैसों में से बचा कर रख रखा है । एक साल बाद क्या करेंगे, समझ नहीं पा रहे हैं । बार-बार बैंकवाले से पूछते हैं तो वह चिढ़ जाता है और कहता है कि अच्छा हो कि आप या तो मंत्री जी से पूछें या फिर अखबारवाले से । हम अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं ।

आपने जिस सिद्दत से राज्य सभा में महिला आरक्षण बिल पास करवाया वैसे इस घोषणा को भी लागू करवाइए । हम कोई अल्पसंख्यकों की तरह कोई न लौटाए जाने वाला पैकेज भी नहीं माँग रहे । क्या कोई आशा करें या यह जीवन इंतज़ार में ही निकाल जाएगा ।

वैसे हमें अभी तक यह समझ में नहीं आया कि प्रदूषण फ़ैलाने वाली कारों के लिए तो बैंक ऋण देने के लिए लोगों के दरवाजे खटखटा रहे हैं और पढ़ाई के लिए ऋण के लिए लोग धक्के खा रहे हैं । पता नहीं, आपने किस प्रगतिशील अर्थशास्त्री से गठबंधन करके यह अर्थव्यवस्था बनवाई है ?

१७-३-२०१०


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach

1 comment:

  1. नेताओं को आम जनता से कोई सरोकार है नहीं,बस वोह अपना हित देखतें हैं ।

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