Mar 8, 2010
सोनिया जी, नो फिकर, नो चिंता
सोनिया जी,
नमस्कार । आपने बजट के बाद विपक्ष के डीजल और पेट्रोल के दाम घटाने की चूँ-चपड़ पर साफ़ कह दिया कि दाम नहीं घटेंगे । अब बजट कोई तमाशा है क्या ? प्रणव दा ने बड़ी मुश्किल से तो बजट बनाया । अब बिना बात इसमें संशोधन करने में और महीना-बीस दिन लगाएँ । ये लोग समझते तो हैं नहीं । बिना बात विकास को और लेट करना चाहते हैं । अगर विकास होगा तो महँगाई तो बढ़ेगी ही । जब इस देश में महँगाई नहीं थी तो कहाँ था अपना देश इतना विकसित । जब एक रुपये में चार इडली और सांबर या एक रुपये में चार पूरियाँ और सब्जी आ जाती थी तो मज़ा ही नहीं आता था । अब जब पच्चीस रुपए में एक किलो आटा आता है तो आधी भूख तो भाव सुनकर भाग जाती है और जो थोड़ी बहुत बचती है वह एक रोटी में ही ख़त्म हो जाती है ।
२२ जनवरी को एक अखबार में समाचार पढ़ा कि आप महँगाई को लेकर चिंतित हैं । सचमुच हम आपकी चिंता को लेकर चिंतित हो गए । फिर कुछ दिन तक कोई समाचार नहीं छपा तो तसल्ली हुई कि शायद आप सामान्य हो गई होंगीं । फिर ५ फरवरी को अखबार में पढ़ा कि कांग्रेस कार्य समिति ने भी चिंता जताई है महँगाई पर । उस समाचार के साथ आपका और मन मोहन सिंह जी का फ़ोटो भी छपा था । फ़ोटो क्या था बस दिल को हिला देनेवाला दृश्य था ।आप वैसे भी गंभीर ही रहती हैं । कुछ लोग इसे आपका गंभीर पोज मान सकते हैं पर हमें अनुभव हुआ कि आप वास्तव में ही बहुत चिंतित हैं ।
मन मोहन जी तो ऐसे लग रहे थे जैसे पिछली रात से ही ज़ार-ज़ार रोते रहे हैं । फ़ोटो देखकर हमारा मित्र तोताराम तो दहाड़े मार कर रोने लगा । संवेदनशील होना अच्छी बात है पर राजा के लिए ज्यादा संवेदनशील होना भी ठीक नहीं ।
इंदिरा जी भी आपकी तरह गंभीर रहती थीं । हमने उनको तब दिल से हँसते देखा था जब राकेश शर्मा ने पृथ्वी के चक्कर लगाते हुए उनके प्रश्न- 'अंतरिक्ष से भारत कैसा लगता है?' का उत्तर दिया था- 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' । और आपको तब हँसते हुए देखा था जब शक्ति कपूर कांग्रेस में शामिल हुए थे । इन दो अवसरों के अलावा आप दोनों ही शांत चित्त दिखती रही हैं । राजा को जितेन्द्रिय होना चाहिए । उसके मनोभावों का किसी को पता नहीं लगना चाहिए । हमारा आप से यही कहना है कि आप किसी भी दशा में चिंतित न हों । राजा के चिंतित होने से जनता तो रोने ही लग जाती है । १९६५ में जब भारतीय सेनाएँ लाहौर तक पहुँच गई थीं तब भी पाकिस्तान रेडियो यही कहता रहा कि उनकी सेनाएँ बहादुरी से आगे बढ़ रही हैं । सो भले ही धोती की जगह जनता रूमाल से इज्ज़त ढंकने को मज़बूर हो जाए पर सरकार को कहते रहना चाहिए कि इस साल जी.डी.पी. दस प्रतिशत रहने की संभावना है । देश की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है । और शीघ्र ही हम एक विश्व शक्ति बनने वाले हैं ।
आप तो १९६७ में भारत आईं और मन मोहन जी भी भारत की बजाय विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की सेवा ही अधिक करते रहे । भारत में रहे भी तो दिल्ली में रहे । पर हमने तो उस भारत को देखा है जिसे गाँधी और नेहरू जी ने आज़ादी की लड़ाई शुरु करने से पहले घूम-घूम कर देखा था । और अब राहुल बाबा जिसे गाँवों में खोजते फिर रहे हैं और वह पट्ठा है कि नज़र ही नहीं आ रहा है । यह भारत बड़ा शर्मीला है । किसी अनजान आदमी के सामने अपना दिल खोलता ही नहीं बल्कि बढ़-चढ़ कर, उधार लेकर भी उसका स्वागत करने लग जाता है । सामने वाला समझता है कि इसे तो कोई तकलीफ ही नहीं है । वास्तव में ऐसी बात नहीं होती है । इसे तो इसके नज़दीक रहने वाला ही जान सकता है ।
यह भारत वास्तव में बड़ा गरीब है पर स्वागत, शादी, मृत्यु-भोज में कर्ज़ा लेकर भी खर्च कर देता है और फिर बरसों तक रोता रहता है । इस भारत की सहनशक्ति, धीरज और जीवनी-शक्ति भी गज़ब की है । जितना पानी एक खाता-पीता आदमी दाढ़ी बनाने में खर्च कर देता उतने पानी में यहाँ पूरा परिवार एक हफ्ते काम चला लेता है । आधी और रूखी में ही काम चला लेता है । तभी कबीर जी ने कहा है- आधी और रूखी भली । भले ही जयललिता को साढ़े सात हज़ार सेंडिलों और चप्पलों से भी तसल्ली न होती हो पर हम जिस आदमी की बात कर रहे हैं वह एक हवाई चप्पल में ही साल-दो साल निकाल देता है और वह भी न हो तो भी इसका कुछ नहीं बिगड़ता । एक हरी मिर्च से ही सारा परिवार रोटी खा सकता है । वह न हो तो नमक से भी खा लेता है । कोई हरी सब्जी और दूध-दही नहीं चाहिएँ । इतना कम भोजन करके भी इसका अस्तित्व खतरे में नहीं पड़ता बल्कि इसकी संख्या बढ़ती ही जा रही है । यह कभी कोई क्रांति और विरोध नहीं करता । यह जो आजकल थोड़ा बहुत दिख रहा है वह इन लोगों की तरफ से नहीं है । यह तो कुछ काम चोर और भरे पेट वालों का फैताल है जैसे कि कश्मीर में । जो केंद्र से मोटा पैकेज लेकर थोड़े दिन चुप हो जाते हैं । इसके बाद फिर चालू ।
कोई बड़ा आदमी इनके बीच कभी-कभी चला जाए, इन्हें दर्शन दे दे, मीठी-मीठी बातें कर ले, यही बहुत है । कोई स्केंडल कभी-कभी हो जाए तो यह महीनों तक उसी से मज़े लेकर दिन काट देता है । कीमतें बढ़ना तो बहुत छोटी सी बात है । नरेगा में गया पति यदि शाम को आधे पैसे की दारू पीकर आ जाए और पत्नी की पिटाई भी करे तो भी वह उसके लिए करवा चौथ का व्रत करती है । अगर पति कुछ काम भी न करे और पत्नी नरेगा में हाड तोड़ कर शाम को एक सौ रूपए लाए और पति उन्हें भी दारू पीने के लिए ले जाए तो भी गृहस्थी चलती रहती है । यह है इस भारत का कमाल । यदि दारू पीकर कोई मर भी जाए तो भी मुआवजा मिलने पर खुशी मनाई जाती है और सरकार का शुक्रिया अदा किया जाता है । हमारा तो मानना है कि यदि इस देश में एक ही चीज़- दारू की आपूर्ति ठीक-ठाक होती रहे तो यह जनता कुछ भी नहीं बोलेगी और सुहावने सपने देखती रहेगी । अगर कभी-कभी कोई धोती-वितरण, भंडारा आदि हो जाएँ तो फिर तो 'जय हो' । जनता की इसी शांतिप्रियता के बल पर ही तो एक हज़ार साल तक मुसलमानों और अंग्रेजों ने यहाँ राज कर लिया । अगर अंग्रेज अभी तक भी नहीं जाते तो भी कोई बात नहीं थी पर जब उन्होंने समझ लिया कि धन कमाने का काम तो ग्लोबल मार्केट के नाम पर दूर रह कर भी किया जा सकता है तो फिर क्यों इस झंझट में पड़ा जाए ।
हमारा उद्देश्य भारत का इतिहास बताना और उसको कमतर आँकने का नहीं था । हम तो इस देश की आम जनता की मनोवृत्ति की चर्चा कर रहे थे । आप तो ईमानदारी से विकास करती रहिए । जनता अपनी सोचेगी । कभी न कभी तो इस विकास का कोई फल इस देश की जनता को भी मिलेगा ही । अगर इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में । अगले में नहीं तो उससे अगले में । ये तो पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं । ये तो यह भी मानते हैं कि 'हानि-लाभ,जीवन-मरण, जस-अपजस विधि हाथ' । अब यह भी मान लेंगे कि-
रोटी-पानी, सुरक्षा, शिक्षा और इलाज़ ।
विधि-बस तो क्यों हों भला राजा से नाराज़ ।
इसलिए आप तो चिंता छोड़िए । जो कुछ कर सकें, करें । कहा भी है-
चिंता चिता समान है, चिंता चित ना देय ।
जो बनि आवे सहज में, ताही में चित देय ।
धन्यवाद ।
७-३-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
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बहुत तीखा व्यंग्य.
ReplyDeleteमहंगाई और सरकार पर बहुत बढ़िया कटाक्ष. इसे कहते है, जोर का झटका धीरे से....
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