Mar 2, 2010
कोई नया मुद्दा लाओ, यार
पवन बंसल जी,
संसदीय कार्य मंत्री ।
नमस्ते । सबसे पहले हम आपके नाम के साथ आपके पद का उल्लेख करने का कारण बताना चाहेंगे । कारण यह है कि आप का नाम अखबारों में कम ही आता है । इसलिए लोग जान लें कि हम किसे पत्र लिख रहे हैं । महात्मा गाँधी जी को तो इंग्लैण्ड से एक बच्चे ने पत्र लिखा । उसे गाँधी जी का पता मालूम नहीं था सो उसने लिख दिया- महात्मा गाँधी, इंडिया । और पत्र पँहुच गया । अब आपके साथ वह बात तो है नहीं । इसलिए पद का उल्लेख करना ज़रूरी था ।
२३ फरवरी २०१० को संसद में आपने महँगाई का मुद्दा उठाने वालों को जो बात कही की 'महँगाई पुराना मुद्दा है, कोई नया मुद्दा उठाओ' हमें लाख रुपये की लगी इसलिए आपको बधाई देने के लिए यह पत्र लिख रहे हैं । इन लोगों के पास वास्तव में कोई मुद्दा है ही नहीं । वैसे इन्हें महँगाई प्रभावित भी कहाँ कर रही है । ये भी कमोबेश आपकी ही तरह ठाठ से रह रहे हैं । आपकी तरह ही हवाई यात्रा करते हैं । दिल्ली में रहना और साढ़े बारह रुपये में संसद की केन्टीन में भर पेट खाना खाना । इन्दोर में देखा नहीं, क्या शानदार एयर कंडीशंड तम्बू लगे थे । फिर भी भाई लोगों को जमा नहीं और जनसेवक पाँच सितारा होटलों में चले गए । एक नेत्री तो रहने की व्यवस्था से इतनी दुखी हुईं कि वापिस दिल्ली ही चली गईं अपने राजकुमार के साथ ।
जहाँ तक महँगाई की बात है तो जैसे उम्र कभी कम नहीं होती बल्कि बढ़ती ही जाती है । आदमी कुछ भी न करे तो भी उम्र बढ़ती ही है । खाट में पड़े-पड़े भी आदमी वरिष्ठ हो ही जाता है । मीरा की बात और है, वे कहती हैं कि - 'बढ़त पल-पल , घटत छीन-छीन, जीवणा दिन चार ।'
मतलब कि उम्र बढ़ती नहीं, घटती है पर लोग समझते कहाँ हैं । खुद को अमर मान कर पता नहीं क्या-क्या किये जाते हैं । महँगाई कभी कम हुई है क्या । हमारी माँ बताया करती थी कि जब उनकी शादी हुई तब सोना बीस रुपया तोला था अर्थात बीस रुपये का साढ़े बारह ग्राम । और आज बीस रुपये में एक आइसक्रीम नहीं आती ।
हमने भी जब नौकरी शुरु की थी तब गेहूँ एक रुपये का चार सेर आता था । अब जब पेंशन से गुज़र कर रहे हैं तो आटा पच्चीस रुपये का एक किलो आ रहा है । शाहजहाँ ने जब ताजमहल बनवाया था तो केवल बीस करोड़ रुपये में बन गया था और आज मुकेश अम्बानी का मुम्बई में जो घर बन रहा है वह दस हजार करोड़ में बनने वाला है । और अगर थोड़ा समय और निकाल गया तो हो सकते है कि पंद्रह हजार करोड़ का पड़े । इसलिए महँगाई का मुद्दा हो या इस जैसे ही और मुद्दे हों उन्हें उठाने से कोई फायदा नहीं है ।
महँगाई न तो इनके मुद्दा उठाने से कम होगी और न ही आपके चाहने से । यह आप भी जानते हैं और ये भी, पर जब मुफ़्त में मज़े ले रहे हैं तो जनता को भी तो यह अनुभव करवाना चाहिए कि नहीं, कि देखो ज़ी हम आपके लिए कितने चिंतित हैं । जब आप राज कर रहे हैं तो ये मुद्दे उठा रहे हैं और जब ये राज करेंगे तो आप ये ही मुद्दे उठाएँगे । जनता यह सब जानती है इसलिए उसे आपसे कोई मतलब नहीं है । वह तो वोट न देगी तो भी किसी न किसी को तो राज करना ही है । आप लोग लाटरी डाल कर फैसला कर लेंगे । पर चूँकि लोकतंत्र है तो जनता के नाम से कोई न कोई सरकार भी तो बननी चाहिए कि नहीं । और कुछ नहीं । आदमी को तो सवेरे दाने-पानी के लिए निकलना है और शाम को जो दाल-दलिया मिले उससे अपना और अपने बच्चों का जितना भी पेट भरे, भरना है ।
किसान को पता है कि देश में दो ही मौसम हैं- एक सूखा और दूसरा बाढ़ । वह कभी किसी से कुछ नहीं कहता । हाँ, बाढ़ और सूखे से नेता ज़रूर परेशान रहते हैं क्योंकि उनके लिए दोनों ही कमाई के मौके हैं । नरेगा की जानकारी पञ्च से प्रधान तक के लिए ज्यादा ज़रूरी है बजाय गरीब आदमी के । सड़कें क्या जनता के लिए बनती हैं । सड़कें तो नेताओं, अधिकारियों और ठेकेदारों के लिए बनती हैं । सो विकास कीजिए, इन्फ्रास्ट्रक्चर मज़बूत कीजिये बड़े-बड़े लोगों की सुख सुविधा के लिए । उन्हें सब कुछ अच्छा दिखना और लगना चाहिए जैसा कि अमरीका, योरप में ।
और भी गम हैं ज़माने में महँगाई के सिवा । हम तो कहते हैं कि संसद में सचिन के वन-डे में दुहरे शतक की चर्चा होनी चाहिए । और ये लोग हैं कि अपने फ़ायदे के लिए महँगाई को लेकर बैठे हैं । सारा मज़ा ही ख़राब करके रख दिया । ऐसा तो है नहीं कि घरवाली ने छौंक चढ़ा दिया और तब पता चला कि जीरा तो है ही नहीं सो दौड़ पड़े और मचा रहे हैं जल्दी । अरे भाई, जो साल भर से काम चला रहे थे वे क्या और दो महीने नहीं चला सकेंगे । ये लोग तो जीवन भर ऐसे ही काम चलाते आ रहे हैं और चलाते रहेंगे । और फिर कौनसा चुनाव सिर पर आ पड़ा है, अभी तो चार साल की देर है ।
हम भी आपकी तरह घिसी-पिटी बातों और मुद्दों के बारे में चर्चा नहीं करते । जिस दिन कोई मरे उस दिन तो शोक सभा, संवेदना सन्देश, मातमपुर्सी आदि-आदि किये ही जाते हैं पर यह थोड़े ही होता है कि हर रोज उसका ही चर्चा लेकर बैठ जाएँ । बहुत हुआ तो साल में एक बार श्राद्ध कर दिया । जहाँ आतंकवाद है वहाँ क्या लोग इश्क नहीं फरमाते ? अब क्या गाँधी जी को ही हर समय याद करते रहेंगे । और भी तो काम हैं । और भी तो जीवन के सुख-दुःख हैं । जिनको मरना था मर गए, अब क्या भोपाल गैस ट्रेजेडी को ही रोते रहें क्या । एक सौ बीस करोड़ के सबसे बड़े लोकतंत्र और भावी महाशक्ति - देश में एक दिन में हज़ार-पाँच सौ हत्याएं, बलात्कार, छेड़छाड़, रेगिंग, घोटाले, गले से चेन छीनना आदि होने कोई बड़ी बात है क्या ।
हम तो कहते हैं कि एक स्थान बना दिया जाना चाहिए जहाँ जिस को भी इस तरह के घिसे-पिटे मुद्दे उठाने हैं वह वहाँ जाए और जो भी मुद्दा जितना भी उठा सके, उठा ले और फिर जब थक जाये तो नीचे रख दे । और फिर किसी दूसरे को उठाना हो तो वह उठा ले । जैसे कि किसी जिम में वेटलिफ्टिंग के लिए वेट रखे रहते हैं और जब, जिसका नंबर आये, और जो जितना, जितनी देर तक चाहे उठाता रहे । हाइड पार्क की तरह- जिसका मन चाहे, जिस विषय पर जो कुछ चाहे भौंक कर अपनी भड़ास निकाल ले ।
अब हम आपको कुछ नए मुद्दे बताना चाहते हैं कि जिन पर आप चर्चा कर सकते हैं, जब भी आपको इन पुराने मुद्दे उठाने वालों से फुर्सत मिले । मुद्दे कुछ इस प्रकार से हो सकते हैं, जैसे राहुल बाबा की शादी, बिग बी के भावी पौत्र या पौत्री की संभावना, टाइगर वुड के वैवाहिक जीवन का भविष्य, माइकल जेक्सन की कब्र की सुरक्षा, पेरिस हिल्टन का कुत्ता या पिग्गी, लेडी गागा का अगला शो, करीना और सैफ अली की केमिस्ट्री, समलैंगिकों के अधिकार, राहुल महाजन का स्वयंवर, थ्री जी मोबाइल, मल्लिका शेरावत का फिगर आदि-आदि । अगर कोई तुच्छ भौतिक बात ही करनी है तो चाँद पर पानी, सूर्य पर बिजली और वृहस्पति पर आक्सीजन की बात की जा सकती है । पर भाई लोग हैं कि वही दाल-रोटी, वही प्याज-टमाटर, कोई नई बात करो यार ।
अब और क्या बताएँ, हम भी इतने आधुनिक नहीं हैं । यह सब कुछ तो वह बता रहे हैं जो अखबारों में ज़बरदस्ती दिखाई दे जाता है । वैसे आधुनिकता के मामले में हमारा हाल भी प्रणव दा जैसा ही है । हमें भी उनकी तरह एस.एम.एस. करना नहीं आता ।
२५-२-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach
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