Mar 3, 2010
चीनी बिना मर तो नहीं जाओगे
जैसे ही चाय की चुस्की ली, तोताराम अजीब सा मुँह बनाकर बोला- यह क्या, चीनी बिलकुल नहीं है । हमने कहा- ऐसी बात नहीं है । हो सकता है नीची पेंदे में हो, अच्छी तरह मिली न हो । कई देर तक चम्मच हिलाने के बाद जब घूँट लिया तो बोला- अरे, जब कप में होगी ही नहीं तो मिलेगी क्या । क्यों नेताओं की तरह नाटक कर रहा है । हमने अन्दर से डिब्बा लाकर उसके कप पर उलट दिया मगर उसमें भी चीनी के कुछ दाने ही निकले । फिर वही हिलाने वाली प्रकिया शुरु हुई पर स्वाद में कोई अंतर नहीं आया ।
तोताराम ने कप एक तरफ रख दिया और कहने लगा- यार, हम तो चाय पीते ही चीनी के लालच में हैं । यही तो अपनी मिठाई है । कोई बात नहीं, चीनी नहीं है तो । पर मुझसे यह चाय नहीं पी जायेगी । बिना चीनी के कोई चाय होती है ? यह तो उसी तरह से है जैसे कि बिना स्तनों की युवती, बिना रिश्वत वाला पद या कि बिना विभाग का मंत्री। किसी को मंत्री बना दो और कह दो कि रिश्वत नहीं खा सकते । अब कोई सूखी तनख्वाह के लिए करोड़ों रुपये खर्च करके नेता थोड़े ही बनता है । सेवा में जब रिश्वत का मेवा ना हो तो कैसी सेवा । कोई और धंधा ढूँढेंगे ।
हमने कहा- तोताराम, और कुछ नहीं तो उसमें दो चम्मच दूध और चाय की पत्ती तो लगी ही है । उसके लिए ही इसे पिया जा सकता है । इस पर भी जब तोताराम नहीं माना तो उस ठंडी और फीकी चाय को हमने पी लिया । और कहा- तोताराम, आदमी को स्वाद का इतना गुलाम नहीं होना चाहिए । अरे, चीनी नहीं खायेगा तो मर तो नहीं जायेगा ।
अब तो तोताराम का पारा चढ़ गया, बोला- मुझे यह शरद पवार वाली नेशनल कांग्रेस के मुख पत्र का तर्क मत सुना । ठीक है, मैं तो चीनी के बिना जी लूँगा पर इस उम्र में भी शरद पवार क्रिकेट का चक्कर क्यों नहीं छोड़ सकते । वे क्या क्रिकेट कंट्रोलबोर्ड की अध्यक्षता के बिना मर जायेंगे ?
हमने कहा- बात मरने जीने की नहीं है । क्रिकेट उनका पहला प्यार है । उनके बनाये रनों और विकटों का रिकार्ड आज तक किसी से नहीं टूटा है । क्रिकेट के लिए मंच पर आस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों के धक्के भी खा लिए पर चूँ तक नहीं बोले । क्या तुम चाहते हो कि वे कृषि के विकास के लिए खेतों में जाकर चिड़ियाँ उड़ायें, खरपतवार निकालें ? जब चीनी ज्यादा हो गई और बिना बात गोदामों का किराया लग रहा था तो बारह के भाव बेच दी और जब कमी पड़ी तो तीस के भाव से मँगवा भी तो ली । इतनी फ़िक्र कम है क्या ? तुझे तो यह भी पता नहीं रहता कि घर में कब कौन सी चीज़ ख़त्म हो गई ।
बड़ी मुश्किल से बेचारे क्रिकेट को नंबर वन पर लाये थे कि तुम लोग चीनी-चीनी चिल्ला कर उनके पीछे पड़ गए तो देख लिया ना फल । हार गया ना इण्डिया दक्षिणी-अफ्रीका से एक इनिंग और कुछ रन से । तुम्हारी झिक-झिक से बेचारे इतने परेशान हो गए कि पिच पर भागते-भागते ठाकरेजी के घर में जा घुसे । किसी के इतना पीछे पड़ना भी ठीक नहीं । तुम्हें दाल नहीं मिलती तो तुम किसी और की दाल गलते भी नहीं देख सकते । अरे, स्वास्थ्य के लिए केवल खाना ही ज़रूरी नहीं है । स्वास्थ्य के लिए कभी-कभी उपवास करना भी ज़रूरी है ।
कृषि मंत्री का यह मतलब तो नहीं कि वे पिच और स्टेडियम में गन्ना, गेंहूँ और दालें उगवाने लग जाएँ ।
९-२-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
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यहाँ तो चीनी डॉक्टर ने ही मना कर दी है. :)
ReplyDeleteसटीक आलेख.