Mar 3, 2010

दिमाग खराब होने की उम्र



नरेन्द्र मोदी ने ३० जनवरी २०१० को पोरबंदर में महँगाई के बारे में सोनिया गाँधी को इटालियन में पत्र लिखने की बात कही । इसकी प्रतिक्रिया में कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि मोदी पागल हो गए हैं मतलब कि उनका दिमाग ख़राब हो गया है । इसलिए उनके बारे में टिप्पणी देकर मैं उन्हें सम्मानित नहीं करना चाहता । मनीष तिवारी जी की टिप्पणी इतनी महत्वपूर्ण है कि उसे प्राप्त करने वाला सम्मानित हो जाता है । टिप्पणी क्या हुई कोई होटल सम्राट चटवाल वाला पद्मविभूषण सम्मान हो गया । मगर बाल ठाकरे जी इतने अनुदार नहीं हैं । वे प्रतिभाओं का बिना किसी भेद-भाव के सम्मान करते हैं । इसलिए उन्होंने ३ फरवरी २०१० को राहुल गाँधी को तत्काल सम्मानित कर दिया अपनी टिप्पणी से कि बढ़ती उम्र के बावजूद शादी न होने से राहुल कुंठित हो गए हैं , मतलब कि उनका भी दिमाग ख़राब हो गया है ।

वक्तव्य देने वाले दोनों ही व्यक्ति ज़िम्मेदार हैं इसलिए उन पर शंका नहीं की जा सकती । इन बयानों से हमने जो निष्कर्ष निकाले वे इस प्रकार हैं- समय पर शादी न होने से आदमी का दिमाग ख़राब हो जाता है । शादी ४० से ६० वर्ष के बीच हो जानी चाहिए । दिमाग ख़राब होने पर आदमी इटालियन भाषा में पत्र लिखता है या फिर मुम्बई की लोकल ट्रेन में यात्रा करता है । भगवान का शुक्र है कि न तो हम इटालियन भाषा जानते और न ही मुम्बई की लोकल ट्रेन में सफ़र करते हैं और पिताजी ने हमारी शादी भी सत्रह साल की उम्र में कर दी थी ।

भले ही पत्नी हमारा दिमाग ख़राब न होने की बात से पूरी तरह से सहमत नहीं फिर भी ठाकरे जी और तिवारी जी के बयानों से हमें एक बात की तो तसल्ली हो गई कि हमारा दिमाग राहुल और मोदी की तरह ख़राब नहीं है क्योंकि हमारी शादी बीस क्या उससे भी पहले की उम्र में हो गई थी । सो दिमाग ख़राब न होने के इसी आत्मसंतोष से भरे बैठे थे कि तोताराम आ गया ।

हमने बहाने से बात को अपनी ओर मोड़ने की सोची । हमने प्रश्न किया- तोताराम, आदमी के दिमाग ख़राब होने की क्या उम्र होती है ? तोताराम ने बात को एक दार्शनिक टच देते हुए कहा- लगता है तू पागलपन के तिवारी-ठाकरे-सिद्धांत के बारे में सोच रहा है ।

'अरे, इसमें क्या बड़ी बात है । शादी के बाद दिमाग रह ही नहीं जाता तो ख़राब क्या होगा ।' आज उसने हमारा ही जुमला जो हमने उसे उसके दिमाग-दान पर कहा था कि 'जब तुम्हारे दिमाग है ही नहीं तो दान क्या करोगे', हमीं पर कस दिया । कहने लगा- 'दिमाग ख़राब होने का उम्र से कोई सम्बन्ध नहीं है जैसे कि लम्पटता, चापलूसी और रिश्वतखोरी आदमी किसी भी उम्र में कर सकता है ।'

अटल जी, अब्दुल कलाम, विवेकानंद, सुभाष ने शादी नहीं की पर क्या इनके दिमाग पर शंका की जा सकती है ? शादी तो सुखराम, करुणानिधि, नारायण दत्त तिवारी, बाल ठाकरे, राज ठाकरे सभी ने की पर इससे क्या कुछ फर्क पड़ गया । दुनिया में शादी न करने वाले ही अत्यल्प हैं वरना शादी करने वाले तो सभी होते ही हैं । यदि आदमी के पास सोचने को अच्छे विचार न हो, करने को कोई ढंग का काम न हो तो फिर खाली दिमाग शैतान का घर होता ही है। दिमाग ख़राब होने के लिए समय भी तो चाहिए । जिसे दम मारने की ही फुर्सत न हो उसका दिमाग कभी ख़राब नहीं होता । जिसके पास कोई काम नहीं हो उसे शादी ज़रूर करनी चाहिए । और कुछ नहीं तो बीवी बच्चों से झगड़ा करने में ही समय का सदुपयोग होगा । कम से कम औरों के दिमाग का हिसाब तो नहीं लगाता फिरेगा ।

क्या किया जाये । मनीष तिवारी तो बेचारे ठहरे प्रवक्ता सो बोलना उनकी ड्यूटी । न बोलें तो प्रवक्ता की पोस्ट पर कौन रखे । और उधर ठाकरे साहब के घर में ताई जी मौजूद होतीं तो कम से कम पोते पोतियों और घुटनों के दर्द की चर्चा में उलझाए रखती । और ऊपर से ' सामना ' का सामना । जैसे सरकस में कहते हैं कि- 'शो मस्ट गो ओन' । वही हाल अख़बार वाले का है । कुछ भी हो जाये पर अख़बार तो समय पर निकालना ही पड़ता है । और फिर 'सामना' में लिखना सबके वश का काम भी तो नहीं है । रोजाना ऐसे और इतने नवीन विचार सबके दिमाग में आ भी तो नहीं सकते । और जब तक रोचक और रोमांचक समाचार नहीं होंगे तो टी.आर.पी. कैसे बढ़ेगी । ऊपर से मुम्बई के स्थानीय चुनाव भी तो आ रहे हैं ।

'पर तुझे अब दिमाग का क्या करना है । पेंशन तो साइन करने पर ही मिल जायेगी और साइन करने में दिमाग की ज़रूरत नहीं है । और अगर साइन करने लायक भी नहीं रहेगा तो बैंक वाले फ़ोटो देख कर पेंशन दे देंगे ।

हमने कहा- पर तोताराम हम अपने दिमाग की नहीं औरों के दिमाग की बात कर रहे थे । तोताराम बोला- यही तो मुसीबत है । लोग अपने गिरेबान में नहीं झाँकते, दुनिया का हिसाब लगाते रहते हैं । अगर आदमी अपने काम में ध्यान दे तो दूसरों को उल्टा-सीधा कहने की ज़रूरत ही न पड़े । कहा भी है-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझ से बुरा ना कोय ॥

हमने कहा- फिर भी तोताराम हमें मनीष तिवारी और बाल ठाकरे जी से दिमाग ख़राब न होने का प्रमाण-पत्र तो ले ही लेना चाहिए । वक्त ज़रूरत काम आएगा ।

तोताराम बोला- सो तो ठीक है पर इन दोनों के पास अपना दिमाग ठीक होने का प्रमाण पत्र तो है क्या ?

हमने कहा- भैया, जिनके पास जो चीज़ नहीं होती वे ही उस चीज़ के होने का प्रमाण-पत्र बाँटते फिरते हैं । अरबों की ज़मीनें घेरकर साधु लोग संतोष का उपदेश दे रहे हैं, सांसद बारह रुपये में पूरी थाली खाकर महँगाई पर चर्चा कर रहे हैं, अरबों रुपये स्विस बैंक में जमा करवा कर जन सेवक सादगी पर भाषण झाड़ रहे हैं ।

तोताराम बोला- छोड़ यार, अब यह बता कि इतनी महँगाई बढ़ने पर भी अब की जनवरी में डी.ए. क्यों नहीं बढ़ा ? कहीं महा-नरेगा या सांसदों की तनख्वाह बढ़ाने में तो नहीं चला गया ?

८ -२ -२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach

3 comments:

  1. इटालियन में पत्र लिखने के लिए के लिए तो modi जी को क्वात्रोची चाचा कि मदद लेनी होगी।

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  2. जोशी जी आपकी धार गजब की है।

    एक सलाह बिना मांगें देना चाहता हूं।

    तीखे व्‍यंग को छोटा रखेंगे तो हर बार उतना ही धारदार दे पाएंगे।
    ऐसा मुझे लगा।

    अगर लम्‍बा भी लिखेंगे तो मैं तो पढ़ने आउंगा ही :)

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