Mar 19, 2010
विक्रम और बेताल - डिपार्टमेंट की इज्ज़त
जैसे ही वीक एंड पर अंधेर नगरी के आजीवन महाराजा चौपटादित्य संसद के कुंए से सत्य का शव निकाल कर ठिकाने लगाने के लिए चले तो शव में अवस्थित बेताल ने कहा- राजन, तुम बहुत जिद्दी हो मानोगे तो नहीं सो श्रम भुलाने के लिए मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ । कहानी के अंत में एक प्रश्न पूछूँगा । यदि जानते हुए भी तुमने उत्तर नहीं दिया तो तुम्हारा सिर टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा ।
तो सुनो- किसी शहर में एक पुलिस अधिकारी रहता था । वह बहुत सख्त था । उसके कार्यकाल में किसी भी नेता, पुलिसवाले और बाहुबली के घर पर चोरी नहीं हुई । हुई तो वापिस भी आ गई । जहाँ भी किसी अपराधी को लोग पकड़ लेते तो वह तत्काल वहाँ पहुँच कर तुरंत उसे हिरासत में ले लेता । इस तरह उसने कभी किसी को कानून हाथ में नहीं लेने दिया । उसे अपनी तत्परता के लिए कई पुरस्कार भी मिले थे ।
एक दिन, जैसा कि नियम है, वह पुलिस वाला रिटायर हो गया । एक बार उसके घर चोरी हो गई । माल तो ज्यादा नहीं गया पर पुलिस का रौब कम हो गया । लोग सोचने लगे कि जब पुलिस वाले के घर भी चोरी हो सकती है तो फिर देश और समाज की सुरक्षा की क्या गारंटी । चोरी नहीं पकड़ी गई । पुलिस वाले की चिंता, घुटन और कुंठा बढ़ती गई ।
एक दिन उसने निर्णय किया कि वह इस ज़िल्लत की ज़िंदगी से मुक्ति पाकर ही रहेगा । मौत तो अपने हिसाब से ही आती । बुलाने से थोड़े ही आती है । उस धर्म-प्राण पुलिस अधिकारी ने आमरण अनशन करके प्राण त्यागने का निश्चय किया । खबर आग की तरह फ़ैल गई ।
अब हे राजन, बताओ कि उस अधिकारी का क्या हुआ ? क्या वह आमरण अनशन करके मर गया या उसके सम्मान की रक्षा हो गई ?
महाराज चौपटादित्य ने काफी सोच विचार का उत्तर दिया- हे बेताल, अपराधी कितना भी बुरा हो पर उसमें भी आत्मा होती है । अधिकारी की इस न्याय भावना से उस चोर की आत्मा जाग उठी और उसने थाने में जाकर आत्मसमर्पण कर दिया और कहा कि उसने ही चोरी की थी । जितना माल वह खा चुका था उसके अतिरिक्त शेष उसने थाने में जमा करवा दिया ।
और कहा- साहब, मुझे मालूम नहीं था । मैंने यह चोरी भूल से कर ली थी । अब अधिकारी जी के अनशन से सारी बातों का पता चला तो मुझे मेरी आत्मा ने बहुत धिक्कारा । ठीक है, आदमी कुछ भी करे पर नियमों का ध्यान रखे । मैं स्टाफ के यहाँ चोरी करने के लिए क्षमा माँगता हूँ और इस गलती के कारण प्रायश्चित स्वरूप मुख्य धारामें शामिल होना चाहता हूँ ।
उस चोर की नैतिकता और विभागीय ईमानदारी के कारण उसे मुख्य धारा में शामिल कर लिया गया । उसे एक अच्छा सा पॅकेज दिया गया और पुलिस विभाग में नौकरी दी गई । और इस प्रकार उस कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी की प्राण और सम्मान दोनों की रक्षा हो गई ।
महाराजा चौपटादित्य के इस उत्तर को सुन कर बेताल की खोपड़ी के टुकड़े-टुकड़े हो गए ।
१२-३-२०१०
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
यह काम कश्मीर से चलेगा.
ReplyDeleteये विक्रम वेताल वाला आइडिया तो पहले पढ़ा है लेकिन सवाल और जवाब नए हैं...
ReplyDeleteएक और शानदार व्यंग्य
लिखते रहें... आपके मुरीद पढ़ने आ रहे हैं...